हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास ( Hindi Patrakarita Ka Udbhav Evam Vikas )

प्राक्कथन

पत्रकारिता का संबंध समाचार पत्रों से है | समाचार पत्र समाचारों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाते हैं | समाचार पत्र किसी घटना या सूचना को मुद्रित रूप में पाठकों के सामने लाते हैं | इस प्रकार देश के किसी कोने की घटना की सूचना दिल्ली या चंडीगढ़ के समाचार पत्रों के माध्यम से हम तक पहुंचती है | अगर इसे पत्रकारिता कहा जाए तो इसके दर्शन हमें अपने मिथकों या पौराणिक कथाओं में हो जाते हैं जिन्हें तर्क के आधार पर सत्य नहीं माना जा सकता | महर्षि नारद ‘आदि पत्रकार’ माने जाते हैं जो एक दिशा की बात को दूसरी दिशाओं में पहुंचाने की कला में दक्ष थे |

कालांतर में आरंभिक पत्रकारिता के प्रामाणिक साक्ष्य मिलते हैं | प्राचीन काल में राजा महाराजा ढोल पीटकर सूचना का आदान प्रदान करवाते थे | प्राचीन भारत में गुप्तचरो के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त होती थी | महाजनपदकाल में गुप्तचरों द्वारा ही सूचनाएं मिलती थी | मौर्य काल में चाणक्य ने गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया | मध्यकाल में मराठा और मुगल दरबारों में ‘वाकया-नवीस’ होते थे | सिख, मराठा और राजपूत दरबारों में भी शासन के लिये उपयोगी आंकड़ों व सूचनाओं का संग्रहण और लेखन होता था | मुगलों के भारत में आगमन के उपरांत समाचार क्षेत्र में कुछ परिवर्तन आने शुरू हुए | इन्होंने गुप्तचर व्यवस्था को नया रूप देकर प्रभावशाली बनाया | मुगलों की अंतिम डायरी ‘उर्दू अखबार’ थी जो 1857 तक प्रचलित रही | इन प्रयासों को समाचार पत्र तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनमें से अधिकांश सूचनाएं जनसामान्य तक नहीं पहुंच पाती थी या उन्हें जानबूझकर उनसे दूर रखा जाता था परंतु इसे पत्रकारिता की पूर्वपीठिका अवश्य कहा जा सकता है |

भारत में पत्रकारिता का आरंभ

पत्रकारिता का वास्तविक आरंभ कागज और मुद्रण के आविष्कार के साथ हुआ | भारत में पहली प्रेस 1550 में पुर्तगाली मिशनरियों द्वारा शुरू की गई 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की शासक बन गई | इसके कुछ वर्ष बाद अंग्रेजों द्वारा अंग्रेजी भाषा में अंग्रेजों के लिए समाचार पत्र का आरंभ हुआ | पहले पत्रकार विलियम का 1768 में चिपकाया गया नोटिस ही पत्रकारिता का आरंभ माना जाता है इसके बाद 1787 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक एक साप्ताहिक पत्रिका निकाली | अंग्रेजी भाषा में रचित बंगाल गजट को भारत का पहला समाचार पत्र या पत्रिका माना जाता है |

भारतीय भाषाओं में रचित प्रथम पत्रिका

‘बंगाल गजट’ से भारत में पत्रकारिता का आरंभ माना जाता है लेकिन वह अंग्रेजी भाषा में रचित थी | भारतीय भाषाओं में रचित प्रथम पत्रिका ‘दिग्दर्शन’ थी जो 1818 में ईसाई मिशनरियों द्वारा निकाली गई | यह अंग्रेजी बांग्ला तथा हिंदी में प्रकाशित होती थी परंतु इसका कोई अंक उपलब्ध नहीं है | इसी समय बूंदी से प्रकाशित ‘दरबार रोजनामचा’ का नाम भी आता है परंतु उसकी भी कोई प्रति अब उपलब्ध नहीं होती |

हिंदी की प्रथम पत्रिका या हिंदी का समाचार पत्र

कोलकाता से प्रकाशित ‘उदंत मार्तंड’ को हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता है | इसका प्रकाशन 1826 ईo में आरंभ हुआ | इसके संपादक, मुद्रक तथा प्रकाशक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे जो मूलत: कानपुर के रहने वाले थे और दीवानी अदालत में रीडर के पद पर कार्यरत थे | इस पत्र में हिंदुस्तानियों के हित को ध्यान में रखा गया था |

हिंदी पत्रकारिता का काल विभाजन / हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा

यद्यपि भिन्न-भिन्न विद्वानों ने हिंदी पत्रकारिता के काल को अलग-अलग ढंग से बांटा है फिर भी मुख्य रूप से इसका विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है : –

1️⃣ उदयकाल/ आरंभिक काल ( 1826 से 1867 तक )

2️⃣ भारतेंदु युग ( 1867 से 1900 तक )

3️⃣ द्विवेदी युग ( 1900 से 1920 तक )

4️⃣ स्वतंत्रता पूर्व युग ( 1920 से 1947 तक )

5️⃣ स्वातंत्र्योत्तर युग ( 1947 से अब तक )

1️⃣ उदयकाल/आरंभिक काल ( 1826- 1867 )

आरंभ में भारत में समाचार पत्रों की कोई परंपरा नहीं थी | अत: पत्रकारिता के उदय काल में समाचार पत्र के संपादक इसके संचालक भी स्वयं थे | वही इसका मुद्रण करते थे, वही इसका प्रकाशन करते थे | उनके पास सीमित संसाधन थे | इस संबंध में डॉक्टर कृष्ण बिहारी मिश्र का कहना है – “हिंदी पत्रकारिता के आदी उन्नायकों का आदर्श बड़ा था किंतु साधन-शक्ति सीमित थे | वह नई सभ्यता के संपर्क में आ चुके थे और अपने देश तथा समाज के लोगों को नवीनता से संयुक्त करने के आकुल आकांक्षी थे | उन्हें न तो सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन प्राप्त था और ना ही हिंदी समाज का सक्रिय योगदान |”

यही कारण है कि 1826 ईo में प्रकाशित हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ अधिक समय तक प्रकाशित न हो पाया | इस पत्र के संपादक पंडित युगल किशोर शुक्ल ने 1850 ईo में ‘सामदंड मार्तंड’ नामक एक और समाचार पत्र निकाला |

‘उदंत मार्तंड’ में सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण कोलकाता बाजार के भाव आदि से सबंधित समाचार होते थे | इसकी भाषा जनसामान्य की भाषा थी | इसकी भाषा में वर्तनी की शुद्धता पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया था | इसमें विराम चिह्नों का प्रयोग नहीं किया जाता था |

‘उदंत मार्तंड’ की सफलता से प्रभावित होकर राजा राममोहन राय ने 1829 ईo में ‘बंगदूत’ प्रकाशित किया | यह बंगला और फारसी भाषा में छपता था इसकी भाषा पर बंगला का प्रभाव अधिक दिखाई देता है |

1845 ईo में ‘बनारस अखबार’ का प्रकाशन आरंभ हुआ | इसके प्रकाशक शिवप्रसाद सितारे हिंद थे तथा पंडित गोविंद रघुनाथ इसके संपादक थे | राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद जी हिंदुस्तानी भाषा के समर्थक थे | इस समाचार पत्र की भाषा में हिंदी से अधिक उर्दू भाषा सम्मिलित थी | इसकी लिपि नागरी थी परन्तु भाषा उर्दू-मिश्रित थी |

1848 में हिंदी-उर्दू भाषा में ‘मालवा’ और 1849 में हिंदी-बंगला में ‘जगदीप-भास्कर’ का प्रकाशन हुआ | 1850 में बनारस से ‘सुधाकर पत्र’ निकला जो पहले बंगला और हिंदी में तथा 1853 से केवल हिंदी में ही छापना शुरू हुआ | इसमें ज्ञान और मनोरंजन के विषय होते थे | इसकी भाषा ‘बनारस अखबार’ की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट तथा परिष्कृत थी | 1852 में आगरा से ‘बुद्धि प्रकाश्य’ का प्रकाशन मुंशी सदा सुख लाल ने किया | इसमें इतिहास, गणित, भूगोल पर अच्छे लेख होते थे | इस समाचार पत्र की आचार्य शुक्ल ने बड़ी प्रशंसा की है |

बांग्ला तथा हिंदी भाषा में पहला दैनिक समाचार पत्र ‘समाचार सुधा वर्षण’ 1854 ईo में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ | इसका संपादन श्याम सुंदर सेन ने किया | इसे हिंदी का प्रथम दैनिक समाचार पत्र होने का गौरव प्राप्त है | इसके प्रथम दो पृष्ठ हिंदी के तथा अंतिम दो पृष्ठ बंगला के थे | इसमें व्यापारिक समाचारों के साथ-साथ परा-वैज्ञानिक सूचनाएं भी होती थी | इस समाचार पत्र में युगीन परिवेश की अभिव्यक्ति और जातीय स्वाभिमान का स्वर प्रबल था | इसी कारण इसे अंग्रेजों के कोप का शिकार होना पड़ा | यह 14 वर्ष तक चला | बंगाली से प्रभावित होते हुए भी इसकी भाषा आधुनिक हिंदी के निकट थी |

1857 में दिल्ली से ‘पयामे-आजादी’ का हिंदी संस्करण निकला | यह समाचार पत्र जनसामान्य में राष्ट्रप्रेम और स्वतंत्रता के भावों को जागृत करने का मिशन लिये था | यही कारण है कि यह समाचार पत्र जल्दी ही अंग्रेज सरकार की आंखों में खटकने लगा और इसके संपादक अजीमुल्ला खां को अपनी जान गंवानी पड़ी |

1858 में अहमदाबाद से ‘धर्म-प्रकाश’ का प्रकाशन हुआ | 1861 आगरा से ‘सूरज प्रकाश’ , अजमेर से ‘प्रजाहित’, आगरा से ‘ज्ञान दीपक’ प्रकाशित हुए | 1863 में आगरा से ‘लोकहित’ का प्रकाशन हुआ | 1864 में आगरा से ‘भारत खंडामृत’ तथा 1865 में बरेली से ‘तत्वबोधिनी’ का हिंदी में प्रकाशन हुआ | 1866 में लाहौर से ‘ज्ञानदायिनी’ तथा मुंबई से ‘शक्ति दीपक’ प्रकाशित हुए |

◼️ हिंदी पत्रकारिता के आरंभिक काल अथवा उदय काल में प्रकाशित समाचार पत्रों के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि इस काल में हिंदी पत्रकारिता का धीरे-धीरे उदय हुआ | अधिकांश आरंभिक पत्रिकाएं उर्दू-मिश्रित हिंदी में या बांग्ला से प्रभावित हिंदी भाषा में थी | कुछ ऐसी पत्रिकाएं भी थी जो उर्दू और बांग्ला के साथ-साथ हिंदी में प्रकाशित हो रही थी | ‘समाचार सुधा वर्षण’ को अगर छोड़ दें तो बहुत कम पत्रिकाएं ऐसी थी जो हिंदी पत्रकारिता के विकास और उत्थान का मार्ग प्रशस्त करें लेकिन फिर भी इन पत्रिकाओं का एक महत्वपूर्ण योगदान यह है कि इन पत्रिकाओं ने आने वाले समय में पत्रकारों, संपादकों तथा प्रकाशकों को हिंदी भाषा में पत्र-पत्रिकाएं निकालने के लिए प्रेरित किया |

2️⃣ भारतेंदु युग ( 1867 से 1900 तक )

इस काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1867 ईo में काशी से ‘कविवचन सुधा’ का मासिक प्रकाशन आरंभ किया | इस पत्रिका की लोकप्रियता को देखते हुए शीघ्र ही इसे पाक्षिक बना दिया गया | इस पत्रिका में पद्य के साथ-साथ गद्य भी प्रकाशित होता था | यह पत्रिका 1885 तक चली |

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1873 ईस्वी में ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ पत्रिका शुरू की जिसका बाद में नाम बदलकर ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ कर दिया गया | यह पत्रिका भी अत्यंत लोकप्रिय हुई | इसमें कविता, कहानी, आलोचना आदि विविध विषयों पर लेख होते थे | 1774 में भारतेंदु ने भारत की स्त्रियों में जागृति पैदा करने के उद्देश्य से ‘बाल बोधिनी’ पत्रिका का प्रकाशन किया |

1877 ईo में बालकृष्ण भट्ट ने ‘हिंदी प्रदीप’ मासिक पत्रिका का प्रारंभ किया | ‘हिंदी प्रदीप’ का प्रकाशन पत्रकारिता की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना थी | इस पत्रिका ने हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान की | इस पत्र का मुख्य स्वर राष्ट्रवाद था | अतः इस पत्रिका को कई बार ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनना पड़ा |

इसी अंतराल में प्रयाग से ‘विविध विषय विभूषित’, ‘वृतांत दर्पण’, कानपुर से ‘हिंदू प्रकाश’, ललितपुर से ‘बुंदेलखंड अखबार’ का भी प्रकाशन हुआ | 1871 में प्रकाशित ‘अल्मोड़ा अखबार’ लगभग 47 वर्ष तक किसी न किसी रूप में चलता रहा | इसने अंग्रेज शासन के अत्याचारों से पीड़ित पर्वतीय लोगों की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी | इसमें विभिन्न विषयों पर सामग्री होती थी |

1872 में ‘हिंदी दीप्ति प्रकाश’, 1874 में बिहार से ‘बिहार बंधु’, 1873 में जबलपुर से ‘जबलपुर समाचार’, लखनऊ से ‘भारत पत्रिका’ प्रकाशित हुए | 1874 में प्रयाग से ‘नाटक प्रकाश’, मेरठ से ‘नागरी प्रकाश’, अलीगढ़ से ‘भारत बंधु’ और दिल्ली से ‘सदादर्श’ प्रकाशित हुए | 1875 में प्रयाग से ‘धर्म प्रकाश’, 1876 में ‘काशी पत्रिका’ तथा 1877 में ‘मित्र विलास’ तथा ‘भारत दीपिका’ का प्रकाशन हुआ |

इसी युग में 1878 में ‘भारत मित्र’, 1879 में ‘सार सुधा निधि’ और 1880 में ‘उचित वक्ता’ का प्रकाशन हुआ | ‘भारत मित्र’ आरम्भ में पाक्षिक पत्र के रूप में प्रकाशित हुआ था परंतु शीघ्र ही साप्ताहिक हो गया | इसमें संवाददाताओं से प्रेषित ताजा समाचार होते थे | पाठकों की प्रतिक्रिया को भी इस में स्थान दिया जाता था | सन 1897 में इसे छोटे आकार का दैनिक पत्र बना दिया गया पर यह शीघ्र ही बंद हो गया | 1899 से यह बड़े आकार और कम मूल्य में फिर से निकलने लगा | इसने राष्ट्रीयता के साथ राजनीतिक चेतना को भी विकसित करने का प्रयास किया | इस पत्र ने हिंदी पत्रकारिता को विकसित किया | इसकी भाषा परिष्कृत हिंदी थी | इसकी भाषा सरल, सहज व स्वाभाविक थी |

1879 ईस्वी में ही पंडित दुर्गा प्रसाद मिश्र ने कलकत्ता से ‘सार सुधा निधि’ नामक सप्ताहिक पत्रिका शुरू की | आर्थिक संकट के कारण यह पत्र 1890 में बंद हो गया | युगीन समस्याओं के प्रति सजग रहने के कारण इस समाचार पत्र का हिंदी पत्रकारिता में महत्वपूर्ण स्थान है | इसकी भाषा संस्कृत से प्रभावित हिंदी थी परंतु सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण थी | यह उस समय का एक प्रतिष्ठित पत्र था |

1880 में दुर्गा प्रसाद मिश्र ने ‘उचित वक्ता’ का प्रकाशन किया | देश की उन्नति की चिंता करना इस पत्र का मुख्य उद्देश्य था | इस पत्र में राजनीति, साहित्य, आलोचना आदि पर लेख होते थे | इसकी टिप्पणियां अत्यधिक पसंद की जाती थी | इसकी भाषा सरल व सहज थी |

1890 में हिंदी का महत्वपूर्ण समाचार पत्र ‘हिंदी बंगवासी’ प्रारंभ हुआ | इस पत्र में बालमुकुंद गुप्त, बाबूराव विष्णु पराड़कर आदि पत्रकारों ने काम किया | इसमें नवीनतम समाचार तथा गंभीर लेख होते थे | इसका आकार बड़ा और मूल्य कम था | बालमुकुंद गुप्त के शब्दों में – “हिंदी बंगवासी एकदम नए ढंग का अखबार निकला | हिंदी में पहले ऐसा अख़बार कभी नहीं निकला था |” परन्तु इस पत्र की नीति प्रगतिशील न होने के कारण धीरे-धीरे विख्यात पत्रकार इस पत्र को छोड़कर चले गए | इसके बावजूद यह उस समय का एक चर्चित पत्र था |

1896 में काशी से ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का प्रकाशन शुरू हुआ | यह त्रैमासिक शोध पत्रिका थी और इसमें हिंदी साहित्य को प्रभावित करने वाले लेख प्रकाशित होते थे | यह उस समय की एक युग प्रवर्तक घटना थी | इस पत्रिका ने हिंदी पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी साहित्य को भी प्रभावित किया | बाबू श्यामसुंदर दास, सुधाकर द्विवेदी, राधा कृष्णदास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, हीराचंद ओझा जैसे विद्वान इस पत्रिका से जुड़े रहे |

इस युग के पत्रकार आदर्शवादी थे | इन्होने न केवल देश की उन्नति के लिए पत्रकारिता की बल्कि हिंदी पत्रकारिता व हिंदी साहित्य के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया |

3️⃣ द्विवेदी युग ( 1900 से 1920 तक )

इसी युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से भाषा का संस्कार किया | उन्होंने इस पत्रिका के संपादन को 1903 में संभाला और व्याकरण की अशुद्धियों और भाषा की अस्थिरता को दूर किया | दिवेदी जी ने 20 वर्ष तक विद्वता तथा श्रमशीलता से इस पत्रिका का संपादन किया तथा हिंदी पत्रकारिता को नए आयाम प्रदान किए | उन्हीं की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, रामनरेश त्रिपाठी, गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’ जैसे लेखक हिंदी में आए | ‘सरस्वती’ पत्रिका से प्रभावित होकर तत्कालीन पत्रिकाओं ‘प्रभा’, ‘चांद’, ‘माधुरी’ आदि ने अपने स्वरूप को निखारा |

इस युग के पत्र-पत्रिकाओं में भारत मित्र, हिंदी केसरी, नृसिंह, अभ्युदय, मारवाड़ी बंधु, प्रताप, कर्मयोगी, कर्मवीर, सिपाही आदि का नाम उल्लेखनीय है | बालमुकुंद गुप्त के सम्पादकत्व में ‘भारत मित्र’ में राष्ट्रीय स्वर लिए हुए रचनाएं छपती थी | इसमें साहित्य, भाषा, व्याकरण, धर्म आदि से संबंधित लेख भी प्रकाशित होते थे | ‘हिंदी केसरी’ तिलक के ‘केसरी’ का हिंदी संस्करण था | तिलक को राजद्रोह के मामले में दंड दिया गया परंतु इसके संपादक माधवराव सप्रे ने क्षमा मांग ली जिससे तिलक ने इस पत्र को बंद कर दिया | ‘नृसिंह’ में अंबिका प्रसाद बाजपेई उग्र राष्ट्रवाद का समर्थन करते थे | उनकी नीति कांग्रेस के गरम दल वालों जैसी थी | ‘अभ्युदय’ मदन मोहन मालवीय जी के संपादकत्व में प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पत्र था जिसकी विचारधारा राष्ट्रवाद थी | साप्ताहिक ‘प्रताप’ गणेश शंकर विद्यार्थी का अविस्मरणीय पत्र था | इस पत्र ने देश पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले युवकों को प्रेरणा दी | किसानों के पक्ष का समर्थन करने के कारण विद्यार्थी जी को कारावास भी भोगना पड़ा | ‘कर्मयोगी’ क्रांतिकारी विचारधारा का समाचार पत्र था | इसे पढ़ने के कारण अनेक विद्यार्थियों को महाविद्यालय छोड़ना पड़ा | सरकार ने इस समाचार पत्र को बंद करवा दिया | ‘कर्मवीर’ को माखनलाल चतुर्वेदी ने 1919 में शुरू किया | यह साप्ताहिक पत्र राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत था | इसी युग में आगरकर ने ‘स्वराज्य’ और मूलचंद अग्रवाल ने ‘दैनिक विश्वमित्र’ निकाला |

इस युग में बड़ी संख्या में साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं भी प्रकाशित हुई | ‘समालोचक’, ‘हित वार्ता’, ‘सारस्वत सर्वस्व’, ‘देवनागर’, ‘इंदु’, ‘मर्यादा’, प्रभा, आदि ऐसी ही पत्रिकाएं थी | ‘देवनागर’ में नागरी लिपि और हिंदी का समर्थन था | ‘इंदु’ जयशंकर प्रसाद की पत्रिका थी | ‘मर्यादा’ राजनीति से संबंधित लेखों को छापती थी | ‘प्रभा’ अनेक विषयों को प्रस्तुत करती थी |

द्विवेदी युग के पत्र और पत्रिकाओं के विश्लेषण के बाद कहा जा सकता है कि इनमें विषय की विविधता थी और भाषा के संस्कार पर बल दिया गया था | इस युग ने हिंदी पत्रकारिता को स्थायित्व प्रदान किया |

4️⃣ स्वतंत्रता पूर्व युग ( 1920 से 1947 तक )

1917 में महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति में सक्रिय प्रवेश किया | उनका भारतीय राजनीति में आगमन भारतीय इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है | इन्होंने राष्ट्र को न केवल राजनीतिक दिशा ही प्रदान की अपितु सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दिशा भी दी | इस कार्य के लिए गांधीजी ने पत्रकारिता का सहारा लिया | उन्होंने ‘नवजीवन’, ‘हरिजन, ‘यंग इंडिया’ पत्रों के माध्यम से रचनात्मक कार्यक्रम को देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत किया | यह पत्र विज्ञापन प्रकाशित नहीं करते थे क्योंकि इससे समाचार पत्रों की स्वतंत्रता घटती थी |

सस्ता साहित्य मंडल अजमेर ने ‘त्यागभूमि’ का प्रकाशन किया जो गांधीवादी विचारधारा को लिए हुए था | आगरा से प्रकाशित ‘सैनिक’ भी इसी काल में निकला जो अत्यंत निर्भीक पत्र था | इस युग में साहित्य में छायावाद का आगमन हो रहा था तथा बाद में प्रगतिवाद के स्वर भी गूंजने लगे थे | ‘माधुरी’ और ‘चांद’ 1922 में प्रकाशित हुई | ‘सरस्वती’ के बाद ‘माधुरी’ को उच्चस्तरीय पत्रिका का सम्मान प्राप्त हुआ | इस युग की साहित्यिक पत्रिकाओं में ‘मतवाला’, ‘हंस’, ‘सुधा‘ तथा ‘विशाल भारत’ का नाम उल्लेखनीय है | इन पत्रिकाओं पर महात्मा गांधी की विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है |

इसी युग की अन्य उल्लेखनीय पत्रिकाओं में कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय‘, ‘हिंदू मंच’, ‘सेनापति’, ‘लोकमान्य तिलक’, पटना से प्रकाशित ‘योगी’, ‘नवशक्ति’, ‘साहित्य’, ‘जनता‘, कलकत्ता ( शान्ति निकेतन ) से प्रकाशित ‘विश्वभारती’, लखनऊ से प्रकाशित ‘संघर्ष’, टीकमगढ़ से प्रकाशित ‘मधुकर’ तथा सहारनपुर की ‘नवजीवन’ प्रमुख थी | इन पत्रिकाओं ने भारत की सांस्कृतिक चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया |

गांधी जी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए गैर हिंदी प्रदेशों में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ( वर्धा ) तथा दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ( मद्रास ) की स्थापना भी की | गैर हिंदी प्रदेशों में हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए पत्रिकाओं का सहारा भी लिया गया | इस संबंध में हिंदुस्तानी अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका ‘हिंदुस्तानी’ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है |

इस युग में समाचार पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या बढ़ने लगी थी | यही कारण है कि इस युग में दैनिक समाचार पत्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई | 1920 में ‘आज’( काशी ) प्रकाशित हुआ | 1923 में ‘अर्जुन’, 1925 में ‘सैनिक’ ( आगरा), 1930 में ‘प्रताप’ को साप्ताहिक से दैनिक बनाया गया, 1933 में ‘दैनिक नवयुग’ ( दिल्ली), 1936 में ‘इंदौर समाचार’ ( इंदौर ), 1938 में ‘नवभारत दैनिक’ ( नागपुर ), 1942 में ‘आर्यवर्त’ ( पटना ), ‘विश्व बंधु’ ( लाहौर ), ‘दैनिक जागरण’ ( झांसी ), 1947 में ‘नवभारत’ ( आज का नवभारत टाइम्स ) तथा ‘नई दुनिया’ ( इंदौर ) का प्रकाशन हुआ |

इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के आगमन के पश्चात तथा स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में अनेक हिंदी पत्र तथा पत्रिकाएं आयी | इस युग में राष्ट्रीयता और देशभक्ति का स्वर प्रबल था | इसके साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान को भी उल्लेखनीय स्थान प्राप्त था | हिंदी को सबल, सशक्त और प्रौढ़ बनाने में इस युग के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने महती भूमिका निभाई |

5️⃣ स्वातंत्र्योत्तर युग ( 1947 से अब तक )

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अन्य क्षेत्रों की भांति पत्रकारिता के क्षेत्र में भी परिवर्तन आए | भारत की जनता की स्वतंत्रता के अनुरूप नयी भाव भूमि तैयार करने का कार्य पत्रकारों के कंधों पर आ गया | इससे पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्यों में भी परिवर्तन हुए | यह उद्देश्य बहुविध थे | नए भारत का निर्माण, हिंदी माध्यम से ज्ञान विज्ञान का उद्घाटन, भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास, विभिन्नता में एकता का प्रचार, सांप्रदायिक सहिष्णुता का विकास, साहित्यकारों की रचनात्मकता का जागरण, मौलिक शोध को प्रोत्साहन तथा नये युग की मांग के अनुरूप नए विषयों का अनावरण |

हिंदी के पत्र-पत्रिकाएं इन उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़े जिससे इनकी संख्या में अत्यंत वृद्धि हुई | पत्रिकाओं में विषय की विविधता में भी वृद्धि हुई | साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, महिला, बाल, कला, फिल्म, नाटक, रंगमंच, खेलकूद, ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा, समाज-कल्याण, स्वास्थ्य, आयुर्वेद, योग, वाणिज्य, उद्योग, बीमा, बैंकिंग, कानून, पशुपालन, कृषि, परिवहन, संचार, ज्योतिष आदि अनेक विषयों पर पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी |

इस युग में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई | दैनिक ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘पंजाब केसरी’ इस समय भारत के दो बड़े हिंदी समाचार पत्र हैं | ‘दैनिक जागरण’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘अमर उजाला’ आदि पत्र भी विशेष रूप से लोकप्रिय हैं | इनकी प्रतियां लाखों में छपती हैं | आधुनिक भारत के लोकप्रिय समाचार पत्रों में ‘नवभारत टाइम्स’, ‘पंजाब केसरी’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘दैनिक जागरण’, ‘दैनिक ट्रिब्यून’, ‘अमर उजाला‘ आदि का नाम लिया जा सकता है |

इस युग में हिंदी पत्रों और पत्रिकाओं ने नवीनतम विधियों को अपनाकर उनके रूप को आकर्षक और मनमोहक बनाया है | साहित्यिक पत्रिकाओं में ‘धर्मयुग’, ‘माधुरी’, ‘सारिका’, ‘नवनीत’, ‘कादंबिनी’, ‘नंदन, पराग’, ‘चंदा मामा’ आदि अनेक पत्रिकाएं इस समय प्रकाशित हो रही हैं |

◼️ अतः स्पष्ट है कि स्वातंत्र्योत्तर युग में हिंदी पत्रकारिता का बहुत विकास हुआ परंतु छोटी पत्रिकाओं की प्रसार संख्या को बढ़ाने और उनके आर्थिक आधार को सुदृढ़ बनाने की अभी आवश्यकता है |

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