कितनी नावों में कितनी बार ( Kitni Navon Mein Kitni Bar ) : अज्ञेय

कितनी दूरियों से कितनी बार

कितनी डगमग नावों में बैठकर

मैं तुम्हारीओर आया हूँ

ओ मेरी छोटी-सी ज्योति !

कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी

पर कुहासे की ही छोटी सी रुपहली झलमल में

पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल |

कितनी बार मैं,

धीर, आश्वस्त अक्लांत

ओ मेरे अनबुझे सत्य ! कितनी बार…… (1)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘समकालीन हिंदी कविता’ में संकलित आधुनिक प्रयोगवादी कवि अज्ञेय द्वारा रचित कविता ‘कितनी नावों में कितनी बार’ से अवतरित है | प्रस्तुत कविता में कवि सत्य के स्वरूप को जानने के अपने प्रयासों के विषय में बताता है |

व्याख्या — कवि कहता है कि हे सत्यस्वरूप प्रकाश! मैं तुम्हें पाने के लिए न जाने कितनी दूर से कितनी बार जगमगाती नौकाओं में बैठकर तुम्हारी ओर आया हूँ | अनेक बार ऐसा भी हुआ है कि हे मेरी नन्हीं सी किरण! तुम मुझे धुंधलके में कुछ छुपी हुई अस्पष्ट सी लगी है परंतु उस धुंध के ही चमकदार धुंधलके में मैंने तुम्हारा प्रभा मण्डल देखा है | कवि कहता है कि उसने अनेक बार धैर्यवान बनकर, आश्वस्त होकर और बिना थकी दृष्टि से इस अनबूझे सत्य को देखा है |

विशेष — (1) कवि कहता है कि वह सत्य को पूर्णत: न जानते हुए भी उसकी हल्की सी झलक अनेक बार अनुभव करता रहा है |

(2) प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है |

(3) तत्सम प्रधान शब्दावली की प्रधानता है |

(4) मुक्त छन्द है |

(5) भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक एवं विषयानुकूल है |

और कितनी बार कितने जगमग जहाज

मुझे खींच कर ले गए हैं कितनी दूर

किन पराये देशों की बेदर्द हवाओं में

जहां नंगे अंधेरों को

और भी उघाड़ता रहता है

एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश

जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते

केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य-तथ्य –

कितनी बार मुझे

खिन्न, विकल, संत्रस्त –

कितनी बार ! (2)

प्रसंग — पूर्ववत |

व्याख्या — कवि के अनुसार अनेक बार सत्य को जानने के लिए निकले साधक को सांसारिक आकर्षण रूपी जगमग जहाज खींचकर विपरीत दिशा में बहुत दूर ले जाते हैं | जहाँ उसे पराए देशों की बेदर्द हवाओं का अनुभव होता है | जहाँ उसे लगता है जैसे पहले से व्याप्त घना अन्धकार और अधिक घना हो गया है जहाँ नग्न, तीखा और निर्मम प्रकाश उस अन्धकार को और अधिक प्रबल बना देता है | तब उस वातावरण में कोई प्रभा-मंडल नहीं बनता | तब वहां कोई सत्य दिखाई नहीं देता बल्कि केवल चौँधियाते हुए तथ्य और आंकड़े नजर आते हैं और उन आंकड़ों के माध्यम से प्रकट होने वाली अंतहीन सच्चाइयाँ नजर आती हैं ; जो मुझे कई बार पूरी तरह से खिन्न, विकल और संतप्त कर देती हैं |

विशेष — (1) सांसारिक आकर्षण और जगमग सत्य को जानने के लिए निकले साधक के मार्ग में बाधा बनते हैं |

(2) प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है |

(3) मुक्त छन्द है |

(4) भाषा सरल, सहज, स्वाभाविक एवं विषयानुकूल है |

‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता का प्रतिपाद्य ( Kitni Navon Me Kitni Bar’ Kavita Ka Pratipadya )

‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता अज्ञेय जी की सुप्रसिद्ध कविता है | इस कविता में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि व्यक्ति कई बार सत्य की खोज में भटक जाता है | वह सत्य को अपने पास खोजने की अपेक्षा दूर-दूर स्थानों पर ढूंढने जाता है | कवि कहता है कि वह कई बार इसी उद्देश्य से विदेशों में गया किंतु वहां विदेशों की चकाचौंध में खो गया | उस निर्मम प्रकाश ने उसके अंधकार को और बढ़ा दिया | अर्थात उस चौंधियाते प्रकाश ने उसे सत्य से और अधिक दूर कर दिया |

जहां नंगे अंधेरों को

और भी उघाड़ता रहता है

एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश |

इसके विपरीत कवि को अपने देश की शांति और धुंधलेपन में अपनेपन की भावना अनुभव होती है जिससे आत्मा को एक अनुपम संतुष्टि मिलती है | इस प्रकार कवि को अपने देश में ही परम शांति और सत्य का अनुभव होता है | कवि के अनुसार अपने देश जैसा सत्य और प्रकाश अन्यत्र दुर्लभ है | कवि के अनुसार विदेशों में केवल नकली चमक और मानवता के विकास के कृत्रिम आंकड़े हैं | कवि ने अपने अनुभव से जान लिया है कि भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्य विश्व में सर्वोत्तम हैं |

Other Related Posts

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय ( Agyey Ka Sahityik Parichay )

गैंग्रीन ( सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ) : कहानी की तात्विक समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Tatvik Samiksha )

उड़ चल, हारिल ( Ud Chal Haaril ) : अज्ञेय

नाच ( Naach ) : अज्ञेय

साँप ( Saanp ) : अज्ञेय

यह दीप अकेला ( Yah Deep Akela ) : अज्ञेय

नदी के द्वीप ( Nadi Ke Dvip ) : अज्ञेय

हमारा देश ( Hamara Desh ) : अज्ञेय

सूनी सी सांझ एक ( Sooni Si Sanjh Ek ) : अज्ञेय

डॉ धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय ( Dr Dharamvir Bharati Ka Sahityik Parichay )

2 thoughts on “कितनी नावों में कितनी बार ( Kitni Navon Mein Kitni Bar ) : अज्ञेय”

Leave a Comment