मैथिलीशरण गुप्त ( Maithilisharan Gupt )

जन्म – 3 अगस्त, 1886 ( चिरगांव, झाँसी )
प्रति वर्ष 3 अगस्त को उनकी जयंती ‘कवि दिवस’ के रूप में मनायी जाती है | लक्ष्मीकांत शर्मा ने उनकी जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाने का विचार दिया था |

मृत्यु – 12 दिसम्बर, 1964 ( झाँसी )

पिता – रामचरण गुप्त ( कनकलता उपनाम से भक्तिपूर्ण कविताएं लिखते थे )

माता – श्रीमती काशीबाई

भाई – सियाराम शरण गुप्त ( प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार )

पत्नी – श्रीमती सरजू देवी

1935 ईस्वी में हिंदुस्तान अकादमी द्वारा ( साकेत के लिए ) पुरस्कृत किया गया

महात्मा गांधी ने उन्हें 1936 में राष्ट्रकवि की उपाधि दी |

हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा 1937 ईस्वी में ( साकेत के लिये ) मंगला प्रसाद पारितोषिक दिया गया |

1946 ईस्वी में ‘साहित्य वाचस्पति’ पुरस्कार से सम्मानित |

1952 में राजयसभा सदस्य बने ( दो बार राज्यसभा सदस्य मनोनीत हुए, 1952 से देहावसान तक राज्यसभा सदस्य रहे )

1954 में पद्मभूषण अलंकार से सम्मानित

काव्य रचनाएँ

🔹 कविता कलाप ( 1909 ) – ( महावीर प्रसाद द्विवेदी और गुप्त जी की कविताओं का संग्रह )

🔹 रंग में भंग ( 1910 ) – खड़ी बोली में रचित प्रथम रचना, बूंदी और चित्तौड़ के राजाओं के शौर्य का वर्णन

🔹 जयद्रथ वध ( 1910 ) – महाभारत पर आधारित

🔹 पद्य प्रबंध ( 1912 )

🔹 भारत भारती (1912 ) – राष्ट्रीय चेतना की भावना से लिखा गया काव्य |

🔹 शकुंतला ( 1914 ) – कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शाकुंतलम् का अनुवाद

🔹 तिलोत्तमा ( 1915 )

🔹 चन्द्रहास ( 1916 )

🔹किसान ( 1916 ) – भारतीय किसान की करुण गाथा का वर्णन

🔹 वैतालिक ( 1917 )

🔹 पत्रावली ( 1917 )

🔹 शकुंतला ( 1923 )

🔹 अनघ ( 1925 )

🔹 पंचवटी ( 1925 ) – रामायण के लक्ष्मण-शूर्पणखा प्रसंग पर आधारित

🔹 स्वदेश संगीत ( 1925 )

🔹 हिन्दू ( 1927 )

🔹 सैरंध्री ( 1927 ) – महाभारत के कीचक प्रसंग पर आधारित

🔹 वन वैभव ( 1927 ) – महाभारत की कथा पर आधारित, गंधर्व चित्रयेन द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा अर्जुन की विजय का प्रसंग

🔹 वक संहार ( 1927 ) – महाभारत की कथा पर आधारित, बकासुर वध के प्रसंग का वर्णन

🔹 त्रिपथगा ( 1927 )

🔹 शक्ति ( 1927 ) – देवी दुर्गा द्वारा दानवों का संहार

🔹 विकटभट ( 1928 )

🔹 गुरुकुल ( 1928 ) – सिख गुरुओं की जीवनी

🔹 झंकार ( 1929 )

🔹 साकेत ( 1932) – 12 सर्ग, रामचरितमानस पर आधारित, गुप्त जी को इसकी प्रेरणा 1908 में ‘सरस्वती‘ में प्रकाशित महावीर प्रसाद द्विवेदी (भुजंगभूूषण भट्टाचार्य नाम से ) के ‘उर्मिला विषयक कवियों की उदासीनता’ से मिली थी , 1937 ईस्वी में इस पुस्तक के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से उन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया |

🔹 यशोधरा ( 1932 ) – गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की करुण गाथा

🔹 उच्छ्वास ( 1935 )

🔹 सिद्धराज ( 1936 ) – सिद्धराज जयसिंह की कथा

🔹 द्वापर ( 1936 ) – श्रीमद्भागवत पर आधारित

🔹 मंगलघट ( 1937 )

🔹 नहुष ( 1940 ) – महाराज नहुष की कथा

🔹 कुणालगीत ( 1942 ) – कुणाल के चरित्र पर आधारित

🔹 अर्जन और विसर्जन ( 1942 )

🔹 काबा और कर्बला ( 1942 ) – मुस्लिम समुदाय पर आधारित, हिंदू मुस्लिम एकता के उद्देश्य से

🔹 विश्व-वेदना ( 1943 )

🔹 अजित ( 1946 )

🔹 प्रदक्षिणा ( 1950 )

🔹 पृथिवीपुत्र ( 1950 )

🔹 अंजलि और अर्घ्य ( 1950 )

🔹 हिडिम्बा ( 1950 ) – राक्षसी हिडिंबा और भीम की कथा

🔹 जय भारत ( 1952 )

🔹 भूमि भाग ( 1953 )

🔹 राजा-प्रजा ( 1956 )

🔹 युद्ध ( 1956 ) – महाभारत के युद्ध पर आधारित

🔹 विष्णु-प्रिया ( 1957 ) – चैतन्य महाप्रभु की पत्नी विष्णु प्रिया के त्याग की महिमा

🔹 रत्नावली ( 1960 ) – तुलसीदास की पत्नी रत्नावली की मनोदशा पर आधारित

नाट्य रचनाएँ

मौलिक नाटक

🔹 लीला ( अप्रकाशित )

🔹 तिलोत्तमा ( 1916 )

🔹 चन्द्रहास ( 1918 )

🔹 अनघ ( 1927 )

🔹चरणदास

🔹निष्क्रिय प्रतिरोध

संस्कृत नाटकों का अनुवाद

🔹 स्वप्नवासवदत्ता ( भास द्वारा रचित )

🔹 प्रतिमा ( भास द्वारा रचित )

🔹 अभिषेक ( भास द्वारा रचित )

🔹 आविमारक ( भास द्वारा रचित )

🔹 रत्नावली ( हर्ष द्वारा रचित )

बंगाली नाटकों का अनुवाद

🔹 मेघनाथ वध ( माइकल मधुसूदन दत्त द्वारा रचित )

🔹 बिरहिणी वज्रांगना ( माइकल मधुसूदन द्वारा रचित )

🔹 प्लासी का युद्ध ( नविन चंद्र सेन कृत )

मैथिलीशरण गुप्त संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य

🔹 आरम्भ में उन्होंने ‘मधुप‘ उपनाम से कविताओं का अनुवाद किया |

🔹 हिंदी साहित्य क्षेत्र में पदार्पण करने से पहले उन्होंने ‘रसिकेंद्र‘ नाम से ब्रज भाषा में कविताएं, दोहे, चौपाई, छप्पय आदि लिखे |

🔹 खड़ी बोली में छपी प्रथम कविता – हेमंत ( 1906 )( सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित )

🔹 महवीर प्रसाद द्विवेदी जी इनके गुरु थे जिनको ये अपना प्रेरणास्रोत मानते थे | उनकेेेेे कहने पर ही गुप्त जी ने खड़ी बोली में कविता रचना करना आरंभ किया |

🔹 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के आग्रह पर इन्होंने ‘व्यासस्तवन‘ नामक कविता लिखी |

🔹 गुप्त जी को प्रबंध शिरोमणि की उपाधि से अलंकृत किया गयाा |

🔹 उपेक्षित नारी पात्रों पर सर्वाधिक लिखने वाले कवि | ( रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में रचित ‘काव्येर उपेक्षित नार्या‘ लेख सेेे प्रभावित होकर )

🔹 गुप्त जी का प्रिय छंद हरिगीतिका था | उन्हें हरिगीतिका छंद का बादशाह कहा जाता है |

🔹वासुदेव शरण गुप्त ने इन्हें ‘युग कवि’ की उपाधि दी |

🔹 उपनाम – कनकलता, स्वर्णलता, हेमलता, मधुप

🔹 साहित्य- जगत में उन्हें दद्दा नाम से सम्बोधित किया जाता था |

🔹 मुंशी अजमेरी से भी इन्हें बड़ा प्रोत्साहन मिला | इनकी मृत्यु पर इन्होंने ‘समाधी‘ नामक कविता की रचना की |

🔹 गुप्त जी की आरंभिक रचनाएँ कोलकाता से प्रकाशित ‘वैश्योपकारक‘ पत्र में प्रकाशित होती थी |

🔹 ‘भारत भारती’ रचना के बाद राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए |

🔹 मैथिलीशरण गुप्त को आधुनिक युग का तुलसीदास कहा जाता है |

🔹 मैथिलीशरण गुप्त ने स्वयं को ‘कौन्डविक कविमान‘ कहा है |

🔹 गुप्त जी को अन्त्यानुप्रास का स्वामी कहा जाता है |

🔹 गुप्त जी स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहे | वे जेल भी गये | स्वतंत्रता के पश्चात् वे राजयसभा सदस्य भी रहे |

🔹 शुक्ल जी ने कहा है – “साकेत और यशोधरा गुप्त जी के दो बड़े प्रबंध हैं | दोनों में काव्यतत्व का पूरा विकास है परन्तु प्रबंधन में कमी है |”

🔹 शुक्ल जी के अनुसार – “हिंदी कविता की नयी धारा का प्रवर्त्तक मैथिलीशरण गुप्त और मुकुटधर पाण्डेय को समझना चाहिए |”

🔹 शुक्ल जी के अनुसार – “गुप्त जी वास्तव में सामंजस्यवादी कवि हैं | प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में में झूमने वाले कवि नहीं |”

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