जैनेंद्र कुमार के उपन्यास ( Jainendra Kumar Ke Upanyas )

जैनेंद्र कुमार ( 2 जनवरी, 1905 – 24 दिसंबर, 1988 ) हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं उन्होंने हिंदी उपन्यास को नई पहचान दिलाई उनके प्रमुख उपन्यास निम्नलिखित हैंं : –

🔹 परख ( 1929 ) – यह जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित प्रथम उपन्यास है | कट्टो, सत्यधन, बिहारी और गरिमा इस उपन्यास के प्रमुुुख पात्र हैं | इस उपन्यास की विषयवस्तु विधवा विवाह से संबंधित है |

🔹 सुनीता ( 1934 ) – ‘सुनीता’ जैनेन्द्र ( Jainendra Kumar ) द्वारा रचित दूसरा उपन्यास है | अपनी एक अलग उपन्यास शैली के कारण यह उपन्यास हिन्दी साहित्य जगत में एक विशिष्ट स्थान रखता है | इस उपन्यास के प्रमुख पात्र सुनीता, श्रीकांत और हरिप्रसन्न हैं | इस उपन्यास के कारण जैनेन्द्र कुमार पर नग्नता परोसने का आरोप लगाया जाता है |

🔹 त्यागपत्र ( 1937 ) – त्यागपत्र’ जैनेन्द्र कुमार ( Jainendra Kumar ) द्वारा रचित तीसरी औपन्यासिक कृति है | मृणाल ( नारी पात्र ) और प्रमोद इस उपन्यास के प्रमुख पात्र हैं | मृणाल के मानसिक द्वंद्व और चारित्रिक दुविधाओं को इस उपन्यास में जिस ढंग से चित्रित किया गया है उसने इस उपन्यास को एक विशिष्ट मनोवैज्ञानिक उपन्यास का रूप दे दिया है |

🔹 कल्याणी ( 1939 ) – ‘कल्याणी’ जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित उपन्यास है | यह उपन्यास आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है | असरानी इस उपन्यास की मुख्य पात्र है |

🔹 सुखदा ( 1952 ) – सुखदा‘ उपन्यास आरम्भ में ‘धर्मयुग‘ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था | इस उपन्यास के मुख्य पात्र सुखदालाल हैं | इस उपन्यास की विषयवस्तु पति-पत्नी के वैचारिक भिन्नता से उत्पन्न तनाव पर आधारित है | लेकिन अनेक घटनाओं, प्रसंगों, नाटकीय मोड़ों के बावजूद अन्त तक उपन्यास का उद्देश्य अप्रकट ही रहता है | कुछ आलोचक इन घटनाओं और प्रसंगों को अनावश्यक मान इस उपन्यास की आलोचना करते हैं जो कुछ मायनों में सही भी है परन्तु ये प्रसंग उपन्यास में जो नाटकीय मोड़ लाते हैं वे सुखदा व अन्य पात्रों की मानसिक दशा को अभिव्यक्त करने में सहायक सिद्ध होते हैं, जिसे मनोविश्लेषणवादी उपन्यास के दृष्टिकोण से सर्वथा उचित कहा जा सकता है |

🔹 विवर्त ( 1953 ) – जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित यह उपन्यास आरम्भ में ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था | इस उपन्यास के प्रमुख पात्र जितेन, भुवनमोहिनी और नरेशचंद्र हैं |

🔹 व्यतीत ( 1953 ) – इसके मुख्य पात्र अनीता और जयंत हैं | इस उपन्यास में प्रेम में असफल जयंत की मनोदशा का चित्रण किया गया है |

🔹 जयवर्धन ( 1956 ) – यह उपन्यास डायरी के रूप में लिखा गया है |

🔹 मुक्तिबोध ( 1965 ) – सहाय, राजश्री और नीलिमा इसके मुख्य पात्र हैं | इस उपन्यास से जैनेन्द्र कुमार जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार (1966 ) मिला |

🔹 अनन्तर ( 1968 ) – अपराजिता, प्रसाद और रामेश्वरी इसके मुख्य पात्र हैं |

🔹 अनामस्वामी ( 1974 ) – वसुंधरा, कुमार और शंकर उपाध्याय इसके प्रमुख पात्र हैं |

🔹 दशार्क ( 1985 ) – दशार्कजैनेन्द्र कुमार ( Jainendra Kumar ) का अंतिम उपन्यास है | ‘सरस्वती‘ इस उपन्यास की केंद्रीय पात्र है | इस उपन्यास में एक ऐसी नारी का चित्रण है जो अपनी असंतुष्ट प्रवृत्ति और महत्त्वाकांक्षाओं के कारण व्यभिचारिणी बन जाती है |

वस्तुत: उनके उपन्यासों में व्यक्ति के मन की उथल-पुथल का वर्णन अधिक मिलता है | उन्होंने अपने उपन्यासों में पात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं का वर्णन अधिक किया है | अधिकांश समस्याएं पात्रों की अपनी दुविधा का परिणाम है | सुनीता, कल्याणी, परख, त्यागपत्र, मुक्तिबोध आदि सभी उपन्यासों में पात्रों का अंतर्द्वंद उभरकर सामने आया है | उन्होंने मन की चेतन, अवचेतन और अचेतन अवस्थाओं का वर्णन किया है | उन्होंने मानव मन का विश्लेषण अपने उपन्यासों में किया है | उनके इन उपन्यासों में दार्शनिक विचारों व मनोविज्ञान की प्रधानता है | आत्ममंथन, आत्म पीड़ा, अंतर्द्वंद्व, कामवासना, आत्महीनता आदि उनके उपन्यासों की प्रमुख प्रवृत्तियां हैं | संक्षेप में उनके उपन्यासों को मनोवैज्ञानिक उपन्यास या मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास माना जा सकता है |

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