प्रयोजनमूलक भाषा का अर्थ व प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्गीकरण ( Prayojanmulak Hindi Ka Vargikaran )

हम अपने दैनिक कार्यकलापों में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वह सामान्य व्यवहार की भाषा होती है परंतु विभिन्न औपचारिक कार्यों के लिए जैसे कार्यालय, बैंकिंग, तकनीकी आदि क्षेत्रों में परस्पर पत्र-व्यवहार के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है |

इस प्रकार किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा को प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं |

भाषा के सामान्य रूप से दो रूप होते हैं – मौखिक तथा लिखित | मौखिक भाषा आम बोलचाल की भाषा होती है | इसमें किसी प्रकार के व्याकरणिक नियमों के पालन करने का कोई बंधन नहीं होता | इसके विपरीत लिखित भाषा व्याकरण के नियमों के अनुसार लिखी जाती है | लिखित भाषा के तीन रूप हैं – सामान्य, साहित्यिक तथा विशिष्ट प्रयोजन हेतु |

हिंदी भाषा की भी यही स्थिति है | इसके भी मौखिक तथा लिखित दो रूप हैं | हिंदी की लिखित भाषा के भी तीन रूप – सामान्य, साहित्यिक तथा विशिष्ट प्रयोजन की भाषा हैं | इस प्रकार विशिष्ट प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली हिंदी भाषा को प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं | इसे कामकाजी हिंदी, व्यावहारिक हिंदी, अनुप्रयुक्त हिंदी आदि नामों से भी पुकारा जाता है |

डॉ नगेंद्र के अनुसार – “प्रयोजनमूलक हिंदी के विपरीत अगर कोई हिंदी है तो वह आनंदमूलक हिंदी है | आनंद व्यक्ति सापेक्ष है और प्रयोजन समाज सापेक्ष हैं | आनंद स्वकेन्द्रित केंद्रित होता है और प्रयोजन समाज की ओर इशारा करता है |”

मध्यकाल में जहां धार्मिक व सामाजिक जागरण के लिए सामान्य हिंदी का प्रयोग किया गया वहीं स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत करने के लिए बोलचाल की हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन विशिष्ट क्षेत्रों में हिंदी का प्रयोग उस समय तक प्रचलन में नहीं आया था |

भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया संविधान के अनुच्छेद 343 ( क ) के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और इस की लिपि देवनागरी स्वीकार की गई | हिंदी को राजभाषा का पद मिलने से सरकारी कामकाज में हिंदी का महत्व स्वीकार किया गया तथा सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को गति देने के लिए राजभाषा विभाग, राजभाषा कार्यान्वयन समिति आदि गठित की गई | विशिष्ट क्षेत्रों में हिंदी में कार्य करने के लिए इन भाषा आयोगों ने उल्लेखनीय कार्य किया |

विशिष्ट क्षेत्रों में हिंदी भाषा में काम करने के लिए हिंदी भाषा के जिस स्वरूप को विकसित किया गया उसे ही बाद में प्रयोजनमूलक हिंदी का नाम दिया जाने लगा |

वस्तुत: प्रयोजनमूलक हिंदी हिंदी भाषा का वह विशेष रूप है जिसे हम व्यावसायिक, कार्यालयी, तकनीकी, न्याय, उद्योग, विज्ञान आदि के क्षेत्र में प्रयोग करते हैं |

प्रयोजनमूलक भाषा अभिधा-प्रधान एकार्थी होती है | इसमें अलंकारों, लक्षणा-व्यंजना आदि का प्रयोग नहीं होता है |

डॉ नरेश मिश्र के अनुसार – “ज्ञान विज्ञान के विविध संदर्भों में हिंदी की विभिन्न प्रयुक्तियों का जो स्वरूप विकसित हुआ है उसे प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं |”

प्रयोजनमूलक हिंदी का वर्गीकरण

प्रयोजनमूलक हिंदी उस हिंदी को कहते हैं जिसका प्रयोग विभिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है | जिन विशिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग किया जाता है उन्हें उस क्षेत्र की प्रयुक्ति भी कहते हैं | प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग निम्नलिखित विशिष्ट प्रयोजनों के लिए किया जाता है : –

1. कार्यालयी हिंदी

सरकारी कामकाज तथा प्रशासनिक कार्यों में प्रयुक्त होने वाली हिंदी इस वर्ग में आती है | भारतीय संविधान में इसके कार्यान्वयन के लिए हैं कुछ नियम बनाए गए हैं | कार्यालयी प्रयोजनमूलक हिंदी की प्रयुक्ति में एक शब्द अथवा अपूर्ण वाक्य पूरे वाक्य का अर्थ देते हैं और प्रत्येक विशिष्ट शब्द किसी विशिष्ट अर्थ का द्योतक होता है | जैसे ‘गोपनीय’ , ‘तत्काल’ , ‘आवश्यक कार्यवाही के लिए’ आदि |

2. व्यावसायिक हिंदी

बैंकों, मंडियों तथा व्यवसाय से संबंधित कार्यों में प्रयुक्त की जाने वाली हिंदी इस वर्ग में आती है | इसे वाणिज्यिक प्रयोजनमूलक हिंदी भी कहते हैं | मुद्रा, उत्पादन, सहकारिता, पूंजी आदि शब्द व्यवसाय के क्षेत्र में प्रयुक्त होते हैं | इस क्षेत्र में प्रयुक्त अपूर्ण वाक्य व एक शब्द भी पूरे वाक्य का अर्थ देते हैं तथा प्रत्येक अभिव्यक्ति का एक विशिष्ट अर्थ होता है | जैसे – सोना लुढ़का, चांदी भड़की, सोनी ने चमक दिखायी, चना गरम, छोटी इलायची ने खुशबू बिखेरी, सूचकांक नीचे आदि |

3. तकनिकी हिंदी

विभिन्न तकनीकी विषयों जैसे – विज्ञान, विधि, इंजीनियरिंग, चिकित्सा आदि में प्रयुक्त प्रयोजनमूलक हिंदी इस वर्ग में आती है | इसके अंतर्गत रोमन, ग्रीक आदि संकेतों तथा प्रतीकों को यथावत ग्रहण कर लिया गया है तथा आवश्यकतानुसार पारिभाषिक शब्दों का निर्माण भी किया गया है | जैसे – अल्फा, बीटा, गामा, जड़त्व, घनत्व, परमाणु, अणु, अभियांत्रिकी आदि |

4. समाजी हिंदी

विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों को संबोधित की जाने वाली प्रयोजनमूलक हिंदी इस वर्ग में आती है | इसके अंतर्गत विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सामुदायिक सभाओं में जनता से संवाद करने के लिए विशेष प्रयोजन के कारण प्रयुक्त की जाने वाली शब्दावली सम्मिलित होती हैं | इसी कारण इसे समाजी प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं | इसकी शब्दावली आम जनता की समझ में आ सकने वाली व्यवहारिक हिंदी के समान होती है |

5. जनसंचारी हिंदी

वर्तमान समय में जनसंचार के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं | इन्हीं परिवर्तनों के कारण जनसंचार के क्षेत्र में कुछ विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग आवश्यक हो गया है | पत्रकारिता, आकाशवाणी, दूरदर्शन, विज्ञापन, इंटरनेट आदि के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिंदी को जनसंचारी हिंदी कहा जाता है | जनसंचार के क्षेत्र में प्रयुक्त शब्दावली का प्रत्येक शब्द और वाक्य एक विशिष्ट अर्थ को अभिव्यक्त करता है और कई बार एक शब्द पूरे वाक्य का अर्थ दे जाता है |

इस प्रकार प्रयोजनमूलक हिंदी को उसकी प्रयुक्तियों के आधार पर कार्यालयी, व्यावसायिक, तकनीकी, जनसंचारी और समाजी हिंदी के वर्गों में विभाजित किया जा सकता है |

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