गोदान का मूल भाव / उद्देश्य या समस्याएं ( Godan Ka Mool Bhav / Uddeshy Ya Samasyayen )

गोदान : मूल भाव / उद्देश्य या समस्याएं

साहित्यकार जब किसी विषय पर लिखता है तो उसका कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है फिर उपन्यास तो साहित्य की एक ऐसी विधा है जो जीवन के विविध रंगों को हमारे सामने प्रस्तुत करती है | उपन्यास में जीवन की विभिन्न स्थितियों का वर्णन होता है | वे स्थितियां-परिस्थितियां अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी | प्रायः बुरी परिस्थितियाँ उपन्यास में ध्यानाकर्षण का केंद्र बन जाती हैं | यही उपन्यास में वर्णित समस्याएं होती हैं और इनसे ही उपन्यास का मूल भाव या उद्देश्य उभरकर सामने आता है | इस विषय में गोदान ( Godan ) कोई अपवाद नहीं है |

मुंशी प्रेमचंद ( Munshi Premchand ) जी ने अपने उपन्यासों में समाज में प्रचलित अनेक समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है | उनकी कोई भी रचना ऐसी नहीं है जो उद्देश्यपरक न हो | कुछ रचनाओं में वे आदर्शवादी हैं तो वे नैतिक संदेश देते हैं और कुछ रचनाओं में वे यथार्थवादी हैं तो वे जीवन व समाज में व्याप्त बुराइयों की तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हैं और उनको दूर करने का पाठकों से आग्रह करते हैं परंतु यह आग्रह है स्पष्ट नहीं है वरन पाठक खुद ही उन बुराइयों से नफरत करने लगता है और उन को समाप्त करने का पक्षधर बन जाता है |

वास्तव में प्रेमचंद ( Premchand ) जी कलम के सिपाही हैं जो समाज में व्याप्त बुराइयों से लड़ते हुए दिखाई देते हैं |

जहां तक गोदान ( Godan ) की बात है गोदान एक वृहद उपन्यास है | एक ऐसा उपन्यास है जिसमें एक साथ समाज में व्याप्त अनेक बुराइयों का समावेश हो गया है | वस्तुतः प्रेमचंद ( Premchand ) समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाना चाहते हैं परंतु वे ऐसा स्पष्ट रूप से आग्रह ना करके समाज में व्याप्त बुराइयों के दुष्प्रभावों को दिखाते हैं | वे दिखाते हैं कि किस प्रकार समाज की अनेक प्रथाएं होरी जैसे किसानों के लिए दमन और शोषण का साधन बन गई हैं |

गोदान में वर्णित समस्याएं व उद्देश्य

गोदान उपन्यास में वर्णित समस्याओं को दो भागों में बांटा जा सकता है – ( क ) ग्रामीण जीवन की समस्याएं तथा ( ख ) शहरी जीवन की समस्याएं |

( क ) ग्रामीण जीवन की समस्याएं

गोदान उपन्यास में ग्रामीण जीवन की कथा मूलत: होरी व उसकी पत्नी धनिया के जीवन पर केंद्रित है | होरी एक छोटे से गांव बेलारी का निवासी है | यह गांव रायसाहब अमरपाल सिंह की जमींदारी में आता है | इस गांव में अधिकांश किसान हैं व अनेक जातियों के लोग रहते हैं – बढ़ाइ, लुहार, साहूकार, ब्राह्मण और चमार आदि |

गोदान में ग्रामीण जीवन की निम्नलिखित समस्याएं वर्णित हैं :-

1. ऋण-समस्या

गोदान ( Godan ) की मूल समस्या ऋण संबंधी समस्या है | होरी जैसे किसानों को जमींदार राय साहब दोनों हाथों से लूटते हैं | लगान, बेगार, नजराना, शगुन आदि न जाने कितनी प्रथाएं हैं जिनके माध्यम से किसानों को लूटा जाता है | वह मजबूर होकर यह सब चुकाते हैं | कई बार उन्हें साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है | इस ऋण पर ब्याज बढ़ता जाता है | फिर यह ऋण कभी नहीं उतरता | उनका शोषण करने वाला गांव में केवल एक मगरमच्छ नहीं बल्कि दातादिन, झिंगुरी सिंह, सहुआइन दुलारी, नोखे राम आदि अनेक हैं | होरी ( Hori ) अकेला ही कर्जदार नहीं है बल्कि गांव के अन्य किसान भी इसी प्रकार ऋण के बोझ से दबे हैं | उनका ऋण भी लगातार बढ़ता जा रहा है | ऋण चुकाने की चिंता केवल होरी ( Hori ) की नहीं उस जैसे अनेक किसानों की है | एक स्थान पर लेखक कहता है – ” उसे संतोष था तो यही कि यह विपत्ति अकेले उसी के सिर पर न थी | प्राय: सभी किसानों का यही हाल था |”

अधिकांश की दशा तो उससे भी बदतर थी | शोभा और हीरा को होरी से अलग हुए अभी कुल तीन साल ही हुए थे मगर दोनों पर चार-चार सौ रुपये का बोझ लद लग गया था | झींगुर दो हल की खेती करता है परंतु उस पर भी एक हजार का ऋण है | जियावन मेहतो के घर भिखारी भी भीख नहीं पाता |

परंतु किसानों की इस ऋण की समस्या को प्रेमचंद ( Premchand ) ने मुख्यत: होरी के माध्यम से स्पष्ट किया है | होरी ऋण से इतना दब जाता है कि उसे बेदखली से बचने के लिए मानो अपनी बेटी रूपा को बेचना पड़ता है | वह एक प्रौढ़ व्यक्ति रामसेवक से रूपा का विवाह कर देता है और उससे 200 रुपये ले लेता है |

इस प्रकार गोदान उपन्यास में मुख्य रूप से ऋण की समस्या का चित्रण किया गया है | अन्य सभी समस्याओं के मूल में यही ऋण की समस्या है |

2. शोषण-समस्या

जमींदार प्रथा में शोषण अपने चरम पर था | दीन-हीन व बेबस व्यक्ति का चारों तरफ से शोषण किया जाता था | होरी एक गरीब व ईमानदार किसान है परंतु सभी उसका शोषण करते हैं | होरी के अतिरिक्त धनिया, हीरा, शोभा, सिलिया आदि सभी का किसी ने किसी प्रकार से शोषण होता है | इसका मूल कारण है उनकी रूढ़िवादिता, धर्मांधता व मर्यादा का बंधन | किसान बेचारा गर्मी-सर्दी, आंधी, लू, वर्षा के थपेड़ों को सहकर खेत में अन्न उपजाता है परंतु उसका अन्न खेतों से ही उठ जाता है | जमींदार, पटवारी, पंडित, दरोगा सभी तो उसको लूटते हैं |

रामसेवक एक स्थान पर कहता है – ” थाना पुलिस कचहरी सब हैं हमारी रक्षा के लिए लेकिन रक्षा कोई नहीं करता | चारों तरफ से लूट है | जो गरीब है, बेबस है, उसकी गर्दन काटने के लिए सभी तैयार रहते हैं |”

वस्तुतः यह शोषण इतना अधिक था कि ग्राम की दशा बहुत दुखद थी होरी जैसे किसान अपना सब कुछ लुटा बैठे थे |

3. अछूत-समस्या

अस्पृश्यता की समस्या प्रेमचंद ( Premchand ) के युग से भी बहुत पुरानी है | प्रेमचंद ने अपने अनेक उपन्यासों में इस बुराई पर आघात किया है | उन्होंने अपने आप को श्रेष्ठ समझने वाले ब्राह्मणों व पंडितों के काले कारनामों को अपने उपन्यासों में उजागर किया है | गोदान ( Godan ) उपन्यास में भी इस समस्या पर पर्याप्त विचार किया गया है | मातादीन ब्राह्मण है और सीलिया चमारिन | मातादीन सीलिया की मजबूरी का लाभ उठाकर अपने प्रेम-जाल में उसे फंसा लेता है | वह अपने जनेऊ की कसम खाकर उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करता है परंतु सिलिया का सतीत्व लूटकर उसे कहीं का नहीं छोड़ता और उसे स्वीकार करने से मना कर देता है परंतु प्रेमचंद इस समस्या को यहीं तक सीमित नहीं रखता | उनकी नजर में ऐसे ब्राह्मणों को सबक अवश्य मिलना चाहिए यही कारण है कि एक दिन सिलिया की मां के साथ कुछ चमार आते हैं और मातादीन की जनेऊ तोड़ देते हैं | उसकी खूब दुर्गति करते हैं उसके मुंह में हड्डी देकर उसका ब्राह्मणत्व नष्ट कर देते हैं |

होरी ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखता है परंतु मातादीन की कहानी सुनकर वह भी उसको धिक्कारने लगता है – ” कसाई कहीं का कैसा तिलक लगाए हुए हैं | मानो भगवान का असली भगत है | रंगा हुआ सियार |”

इस प्रकार प्रेमचंद ने गोदान उपन्यास में तथाकथित श्रेष्ठ जातियों को बेनक़ाब किया है |

शहरों में भी छुआछूत है | वहां अछूतों को रहने के लिए न रहने योग्य स्थान दिया जाता है | यही कारण है कि शहर में गोबर को एक छोटी अंधेरी कोठरी में रहना पड़ता है | प्रेमचंद ने इस अछूत समस्या का निराकरण तो नहीं किया परंतु यह दर्शाने की कोशिश अवश्य की कि श्रेष्ठ जातियों के लोग एक तरफ तो निम्न जातियों को अछूत मानते हैं और दूसरी तरफ उनसे अपने खेतों-कारखानों में नाममात्र वेतन देकर काम करवाते हैं, उनकी बहू-बेटियों पर बुरी नजर रखते हैं |

4. अंतरजातीय विवाह की समस्या

प्रेमचंद ( Premchand ) ने गोदान ( Godan ) उपन्यास में कुछ उपकथाओं के माध्यम से अंतरजातीय विवाह की समस्या को भी उजागर किया है क्योंकि उस समय इस प्रकार के विवाह मान्य नहीं थे | ऐसे विवाह करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था | गोबर मेहतो है तथा झुनिया अहिरन | गोबर और झुनिया का परस्पर प्रेम हो जाता है | झुनिया गर्भवती हो जाती है और गोबर शहर भाग जाता है | एक बार तो होरी और धनिया भी झुनिया को अपने घर शरण नहीं देना चाहते लेकिन बाद में होरी दयामूर्ति होने के कारण झुनिया को अपने घर में शरण देता है | इसका भयंकर परिणाम होरी को भुगतना पड़ता है | पंच उस पर ₹100 नकद तथा 30 मन अनाज का दंड लगाते हैं | होरी असमर्थ होते हुए भी यह दंड स्वीकार कर लेता है |

अंतरजातीय विवाह के अनेक उदाहरण इस उपन्यास में मिलते हैं – पंडित मातादीनसिलिया चमारिन, गौरीराम मेहतो व चमारिन का विवाह, झिंगुरी सिंह व ब्राह्मणी का विवाह आदि |

मुंशी प्रेमचंद( Munshi Premchand )p इस अंतर्जातीय विवाह-परंपरा का समर्थन करते हुए नजर आते हैं | वे यह काम अपने उपन्यास के कुछ पात्रों के संवादों के माध्यम से करते हैं | एक स्थान पर मातादीन कहता है – ” मैं ब्राह्मण नहीं चमार ही रहना चाहता हूँ | जो अपना धर्म माने वह ब्राह्मण, जो धर्म से मुंह मोड़े वह चमार |”

5. नारी-दुर्दशा

गोदान उपन्यास में नारी-दुर्दशा के भयावह चित्र मिलते हैं | धनिया, झुनिया, सिलिया आदि सभी नारी पात्र प्रताड़ित हैं | निम्न वर्ग की नारियां तो प्रताड़ित हैं ही बड़े महाजनों, जमींदारों और साहूकारों की नारियों भी प्रताड़ित हैं | मानो सभी मर्यादाएं, सभी बंधन, सभी रीति-रिवाज और परंपराएं केवल नारी शोषण के शस्त्र मात्र हैं | कोई गरीबी के कारण मजबूर होकर अपनी बेटियों को बेच रहा है, कोई लालच के कारण | कोई अपने धन और पद की धौंस दिखा कर नारी का दैहिक शोषण कर रहा है तो कोई अपनी वर्णगत श्रेष्ठता के कारण किसी निर्धन स्त्री पर नजर गड़ाए है | चाहे कोई शोषक हो या शोषित | पिसती केवल नारी ही है | उपन्यास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जहां नारी का यौन शोषण होता है और ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जब अनेक पात्रों की कुदृष्टि नारी की देह पर रहती है | यौन शोषण की पीड़ा और भयानक परिणामों को संभवत: पाठक भली-भांति समझ सकें लेकिन उस मानसिक शोषण की पीड़ा को समझ पाना सहज नहीं जिसे रूपा, झुनिया जैसी नारी पात्रों ने इस उपन्यास में भोगा है |

( ख ) शहरी जीवन की समस्याएं

नागरिक जीवन में प्रेमचंद ( Premchand ) ने दर्शनशास्त्र के प्रवक्ता प्रोफ़ेसर मेहतो, डॉक्टर मिस मालती, जमींदार राय साहब अमरपाल सिंह, मिल मालिक मिस्टर खन्ना आदि पात्रों का उल्लेख किया है | इन के माध्यम से प्रेमचंद ने निम्नलिखित समस्याओं को चित्रित किया है :-

1. जमींदार वर्ग की समस्या

उपन्यास में रायसाहब अमरपाल सिंह अवध प्रांत के जमींदार हैं | उनके अधीन सभी किसान उनका कहना मानते हैं | रायसाहब के कारिंदे किसानों से लगान, नजराना आदि वसूल करते हैं | किसानों से इतना अधिक वसूला जाता था जितना उन्हें खेती से नहीं मिलता था | अतः सभी किसान दुखी थे |

इसमें कोई संदेह नहीं कि जमींदार वर्ग किसानों का शोषण करता था परंतु जमींदारों की भी अपनी कुछ समस्याएं थी | उन्हें भी बड़े अफसरों को रिश्वत देनी पड़ती थी | बड़े अफसरों के दौरे पर आने पर व शिकार खेलने जाने पर जमींदार उनके पीछे लगे रहते थे |जिस प्रकार रायसाहब दूसरों का शोषण करते थे उसी प्रकार रायसाहब जैसे जमींदारों का भी शोषण होता था परंतु यह सारा धन आगे किसानों से प्राप्त करते थे भले ही उनके पास कुछ हो या ना हो |

मुंशी प्रेमचंद( Munshi Premchand ) इस समस्या का समाधान देते हुए कहते हैं कि यदि जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी जाए तो न तो इन जमींदारों को कष्ट होगा और न ही किसानों को |

2. मिल मजदूरों की समस्याएं

गोदान उपन्यास में मिस्टर खन्ना चीनी मिल के मालिक हैं | उनकी मिल में वेतन को लेकर मजदूर हड़ताल कर देते हैं | मिस्टर खन्ना मजदूरी कम देते हैं तो हड़ताल भयंकर रूप धारण कर लेती है | जिसका प्रभाव मिस्टर खन्ना पर भी पड़ता है और मिल मजदूरों पर भी | मजदूरों की नौकरी चली जाती है | गोबर की नौकरी भी चली जाती है और उसे चोट भी लगती है |

इस प्रकार गोदान उपन्यास में मजदूरों की समस्याओं को भी उठाया गया है | उनके दर्द को भी अभिव्यक्ति मिली है परंतु कोई समाधान नहीं निकल पाता | जीत पूंजीपतियों की ही होती है परंतु मुंशी प्रेमचंद( Munshi Premchand ) मजदूरों की समस्याओं को पाठकों तक लाने में सफल सिद्ध हुए हैं |

3. नारी-शिक्षा

प्रेमचंद ( Premchand ) से पूर्व ही भारत में नारियाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करने लगी थी परंतु ऐसी नारियों की संख्या बहुत कम थी | मिस मालती इंग्लैंड में पढ़ी है और एम बी बी एस की परीक्षा पास करके डॉक्टर बन गई है | वह पाश्चात्य रंग में रंगी है | परंतु प्रेमचंद ऐसा नहीं चाहते | वह नारी शिक्षा के तो समर्थक हैं परंतु पाश्चात्य सभ्यता के नहीं |

एक स्थान पर प्रोफेसर मेहता कहते हैं – ” मैं नहीं कहता देवियों को विद्या की आवश्यकता नहीं है | है और पुरुषों से अधिक है, मैं नहीं कहता देवियों को शक्ति की आवश्यकता नहीं है | है और पुरुषों से अधिक है लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं जिससे पुरुषों ने संसार को हिंसा-क्षेत्र बना डाला है |”

वस्तुतः प्रेमचंद ( Premchand ) स्त्रियों को शिक्षित भी बनाना चाहते थे और उन्हें सेवा व त्याग की मूर्ति भी बनाना चाहते हैं |

4. नारी-स्वतंत्रता और अधिकारों की समस्या

प्रेमचंद ( Premchand ) ने नारी-स्वतंत्रता और अधिकारों की समस्या को एक अलग ढंग से लिया है | प्रेमचंद नारी-स्वतंत्रता के पक्षधर थे परंतु उन्हें वे अधिकार न देना चाहते थे जो पुरुषों को प्राप्त हैं | वे नहीं चाहते थे कि नारी पाश्चात्य-सभ्यता से परिपूर्ण हो | वे चाहते थे कि नारी पर कोई अत्याचार न हो, अनुचित बंधन न हो परंतु एक मर्यादा अवश्य हो |

मिस्टर खन्ना की पत्नी गोविंदी समझदार भारतीय नारी है | वह पति द्वारा तिरस्कृत है परंतु प्रोफ़ेसर मेहता उसे न्यायालय जाने से रोकते हैं और उसे गृहस्थ जीवन को सार्थक बनाने का उपदेश देकर घर वापस भेज देते हैं |

अतः प्रेमचंद नारी स्वतंत्रता तो चाहते हैं परंतु उसे पाश्चात्य संस्कृति से दूर रखना चाहते हैं | वास्तव में मुंशी प्रेमचंद( Munshi Premchand ) जी की नारी-स्वतंत्रता की परिभाषा उस परिभाषा से भिन्न है जो प्राय: आधुनिक विचारक प्रस्तुत करते हैं | इस दृष्टिकोण से मुंशी प्रेमचंद( Munshi Premchand ) कितने सही हैं यह एक अलग विषय है |

5. स्वच्छंद प्रेम की समस्या

प्रेमचंद ( Premchand ) ने गोदान उपन्यास में स्वच्छंद प्रेम का विरोध किया है | मिस मालती एक पाश्चात्य सभ्यता में पली नारी है | विदेशी शिक्षा के कारण वह तितली बनकर रहती है | मिल मालिक मिस्टर खन्ना उस पर लट्टू हैं | वह दिल से प्रोफेसर मेहता को चाहती है | वह स्वयं मिस्टर खन्ना से कहती है – “मैं रूपवती हूं | तुम भी मेरे चाहने वालों में से एक हो |”

परंतु प्रेमचंद ( Premchand ) इस प्रकार की नारी को भारतीय गुणों से युक्त नारी नहीं मानते | स्वच्छंद प्रेम उन्हें उचित प्रतीत नहीं होता | वह मालती के जीवन में परिवर्तन लाकर उसे सेवा व त्याग की मूर्ति बना देते हैं | उसकी दृष्टि में सेवा और त्याग नारी के सबसे बड़े गुण हैं | संभवत: इसी कारण प्रेमचंद ने मालती का प्रेम-संबंध प्रोफेसर मेहता से भी स्थापित नहीं करवाया |

◼️ इस प्रकार प्रेमचंद ( Premchand ) ने गोदान ( Godan ) उपन्यास में अनेक समस्याओं का वर्णन किया है | उन्होंने सभी समस्याओं का समाधान तो प्रस्तुत नहीं किया परंतु उन समस्याओं के विषय में सोचने के लिए पाठकों को मजबूर अवश्य किया है | संभवत: यही उनका उद्देश्य है कि पाठक स्वयं इन समस्याओं के निराकरण के लिए क्रांतिकारी कदम उठाएं | उपन्यास में कुछ ऐसी बड़ी समस्याओं को भी प्रस्तुत किया गया है जिनके निराकरण के लिए बड़े आंदोलन की आवश्यकता है लेकिन कुछ ऐसी छोटी-छोटी समस्याएं भी हैं जिनका निराकरण केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन लाकर कर सकते हैं |

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