देवनागरी लिपि की विशेषताएँ ( Devnagari Lipi Ki Visheshtayen )

हिंदी व संस्कृत की लिपि देवनागरी है | देवनागरी लिपि भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण लिपि है | संविधान में इसे राज लिपि का पद प्राप्त है | हिंदी व संस्कृत का संपूर्ण साहित्य इसी लिपि में मिलता है | पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं का साहित्य भी इसी लिपि में मिलता है | यह लिपि संसार की प्राचीन लिपियों में से एक है | अति प्राचीन लिपि होने पर भी विद्वानों ने देवनागरी लिपि को संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक ने स्वीकार किया है |

देवनागरी लिपि की विशेषताएं / Devnagari Lipi Ki Visheshtayen

देवनागरी लिपि की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित है जो इसे वैज्ञानिक लिपि सिद्ध करती हैं :-

  1. वर्णमाला की पूर्णता :- देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ | ब्राह्मी लिपि में जहां 64 लिपि चिह्न थे वहीं देवनागरी में केवल 52 लिपि चिह्न हैं | लेकिन फिर भी लिपि चिन्हों की यह संख्या संसार की अन्य भाषाओं से अधिक है | अंग्रेजी की लिपि में 26 चिह्न हैं, जर्मन भाषा की लिपि में 29 चिह्न हैं | यही कारण है कि देवनागरी लिपि में हर ध्वनि को लिखा जा सकता है |
  2. क्रमबद्धता :- देवनागरी लिपि में स्वर और व्यंजनों को क्रमबद्ध रूप से लिखा गया है | पहले स्वर आते हैं, उसके पश्चात व्यंजन आते हैं | अंत में संयुक्त व्यंजन क्ष, त्र, ज्ञ, श्र आते हैं |
  3. लिपि चिह्नों का आदर्श वर्गीकरण :- देवनागरी में वर्णों का वर्गीकरण पूर्ण तहा वैज्ञानिक ढंग से किया गया है पहले स्वर आते हैं उसके पश्चात व्यंजन तथा अंत में संयुक्त व्यंजन | उच्चारण स्थान के आधार पर भी वर्णों का आदर्श वर्गीकरण किया गया है |

स्वर

🔹ह्रस्व स्वर – अ, इ, उ, ऋ

🔹दीर्घ स्वर – आ, ई, ऊ,

🔹संयुक्त स्वर – ए, ऐ, ओ, औ

व्यंजनों का वर्गीकरण भी वैज्ञानिक आधार पर किया गया है |

व्यंजन

कवर्ग- क, ख, ग, घ, ङ

चवर्ग- च, छ, ज, झ, ञ 

टवर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण

तवर्ग- त, थ, द, ध, न 

पवर्ग- प, फ, ब, भ, म 

से तक 25 स्पर्श व्यंजन हैं |

य, र, ल, व अंत:स्थ व्यंजन हैं |

श, ष, स, ह ऊष्म व्यंजन हैं |

क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजन हैं |

क़, ख़, ग़, ज़, फ़ आगत ध्वनियाँ हैं |

4. गतिशीलता :- नागरी लिपि गत्यात्मक और व्यावहारिक है ||इसमें आवश्यकता अनुसार कुछ लिपि चिह्नों को शामिल कर लिया गया है | जैसे जिह्वामूलीय ध्वनियों, जैसे – क़, ख़, ग़, ज़, फ़ आदि को फारसी से ग्रहण कर लिया गया है | जिससे यह लिपि वैज्ञानिक बन गई है |

5. वर्णात्मकता :- नागरी लिपि वर्णात्मक है | इसका अर्थ यह है कि इसके वर्णों का लेखन में उच्चारण समान है | फारसी और रोमन लिपि में यह विशेषता नहीं मिलती | उदाहरण के लिए जीम, दाल आदि वर्णों का उच्चारण होता है लेकिन वर्णों को मिलाते समय ये ज, द की ध्वनि देते हैं | इसी प्रकार रोमन लिपि में H और S को क्रमशः एच और एस उच्चरित करते हैं | लेकिन यह वर्ण भी शब्द बनाने पर और की ध्वनि देते हैं |

6. एक ध्वनि के लिए एक चिह्न :- नागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए एक लिपि चिह्न की व्यवस्था है लेकिन अन्य लिपियों में यह व्यवस्था नहीं है | उदाहरण के लिए रोमन लिपि में ध्वनि के लिए K, C, Q, CH चार लिपि-चिह्न हैं | इसी प्रकार फारसी में भी एक ध्वनि के लिए अनेक लिपि चिह्न मिलते हैं |

7. एक चिन्ह से केवल एक ध्वनि :- नागरी लिपि में एक चिन्ह केवल एक ध्वनि को प्रकट करता है | उदाहरण के लिए नागरी लिपि में केवल की ध्वनि के लिए है लेकिन रोमन जैसी कई लिपियों में ऐसा नहीं होता है | उदाहरण के लिए रोमन लिपि में C चिह्न स, च, क आदि ध्वनियों के लिये प्रयोग होता है |

8. स्वरों की ह्रस्व-दीर्घ मात्राएँ उपलब्ध :- नागरी लिपि में केवल अ को छोड़कर सभी स्वरों की ह्रस्व-दीर्घ मात्राएं उपलब्ध हैं | व्यंजनों के साथ जोड़कर इन मात्राओं का प्रयोग किया जाता है |

अ – कोई मात्रा नहीं

आ -ा

इ – ि

ई – ी

उ – ु

ऊ – ू

ऋ – ृ

ए – े

ऐ – ै

ओ – ो

औ – ौ

9. प्रत्येक वर्ण का उच्चारण :- देवनागरी लिपि में हर वर्ण का उच्चारण किया जाता है अर्थात जो वर्ण लिखा जाता है ||उसका उच्चारण अवश्य किया जाता है परंतु रोमन लिपि में कुछ वर्ण लिखें तो जाते हैं परन्तु उनका उच्चारण नहीं किया जाता |

उदाहरण : Knife – नाइफ ( k का उच्चारण नहीं किया जाता )

Night – नाइट ( g का उच्चारण यहीं किया जाता )

10. वर्णों का निश्चित उच्चारण :- देवनागरी लिपि में वर्णों का उच्चारण निश्चित है परंतु रोमन लिपि में अनेक स्थानों पर वर्णों का उच्चारण बदल जाता है |

जैसे – Put – पुट

But – बट

Go – गो

To – टू

11. वर्ण का निर्माण उच्चारण– स्थान के अनुसार :- देवनागरी लिपि की एक विशेषता यह है कि इसमें वर्णों का निर्माण उच्चारण स्थान को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक ढंग से किया गया है |

यथा –

कवर्ग – क, ख, ग, घ, ङ ( कण्ठ )

चवर्ग – च, छ, ज, झ, ञ ( तालु )

टवर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण ( मूर्द्धा )

तवर्ग – त, थ, द, ध, न ( दन्त )

पवर्ग – प, फ, ब, भ, म ( ओष्ठ )

12. वर्णों का परिवर्तन स्वन-प्रक्रिया के नियमों पर आधारित – नागरी लिपि में वर्णों का परिवर्तन स्वन-प्रक्रिया के नियमों पर आधारित है |

13. लेखन, टंकण व मुद्रण की एकरूपता :- रोमन लिपि में लेखन, टंकण व मुद्रण में भिन्नता पाई जाती है परंतु नागरी लिपि में लेखन, टंकण व मुद्रण में एकरूपता है | रोमन में सभी वाक्य कैपिटल वर्ण से शुरू होते हैं | नागरी लिपि में यह समस्या भी नहीं है |

14. अनुस्वार व चंद्रबिंदु जैसे सूक्ष्म लिपि-चिह्नों की व्यवस्था :- देवनागरी लिपि में अनुस्वार व चंद्रबिंदु जैसे सूक्ष्म लिपि चिह्नों की व्यवस्था है | इन लिपि चिन्हों के माध्यम से हंस और हँस ; रंग और रँगना जैसे उच्चारण के सूक्ष्म भेदों को भी दर्शाया जा सकता है |

◼️ उपर्युक्त विवेचन के आलोक में यह निर्भ्रांत रूप से कहा जा सकता है कि देवनागरी लिपि एक व्यावहारिक, विकासशील और वैज्ञानिक लिपि है | इसके स्वनिमों और लेखिमों में एकरूपता है | यह लिपि हर ध्वनि को लिपिबद्ध करने में सक्षम है ||यही कारण है कि स्वदेशी और विदेशी भाषा वैज्ञानिक इस लिपि को सर्वाधिक उन्नत, समर्थ और वैज्ञानिक लिपि मानते हैं |

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