गोदान में कृषक जीवन ( Godan Mein Krishak Jivan )

गोदान मुंशी प्रेमचंद जी का सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास है | गोदान ग्रामीण जीवन की कहानी है जिसका नायक होरी एक निर्धन किसान है | होरी की कथा वास्तव में तत्कालीन भारत के अनेक किसानों की दुखद कथा है | किसान अपने परिवार के साथ खेतों में जी तोड़ मेहनत करते हैं परंतु समाज के शोषक उनका जीवन दूभर कर देते हैं | उनका इतना शोषण किया जाता है कि वे ऋण-ग्रस्त हो जाते हैं | वे खेतोंं में अन्न पैदा करते हैं परंतु खुद दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं | उनका जीवन इतना अभावग्रस्त होता है कि एक गाय की अभिलाषा भी कभी पूरी नहीं हो पाती | गोदान में कृषक जीवन की सजीव झाँकी प्रस्तुत की गई है जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है :-

1. ऋण-ग्रस्त किसान

ऋण की समस्या को गोदान में कृषक जीवन की सबसे बड़ी समस्या के रूप में दिखाया गया है | गोदान की मूल समस्या ऋण संबंधी समस्या है | होरी जैसे किसानों को जमींदार राय साहब दोनों हाथों से लूटते हैं | लगान, बेगार, नजराना, शगुन आदि न जाने कितनी प्रथाएं हैं जिनके माध्यम से किसानों को लूटा जाता है | वह मजबूर होकर यह सब चुकाते हैं | कई बार उन्हें साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है | इस ऋण पर ब्याज बढ़ता जाता है | फिर यह ऋण कभी नहीं उतरता | उनका शोषण करने वाला गांव में केवल एक मगरमच्छ नहीं बल्कि दातादिन, झिंगुरी सिंह, सहुआइन दुलारी, नोखे राम आदि अनेक हैं | होरी ( Hori ) अकेला ही कर्जदार नहीं है बल्कि गांव के अन्य किसान भी इसी प्रकार ऋण के बोझ से दबे हैं | उनका ऋण भी लगातार बढ़ता जा रहा है | ऋण चुकाने की चिंता केवल होरी ( Hori ) की नहीं उस जैसे अनेक किसानों की है | एक स्थान पर लेखक कहता है – “उसे संतोष था तो यही कि यह विपत्ति अकेले उसी के सिर पर न थी | प्राय: सभी किसानों का यही हाल था |”

अधिकांश की दशा तो उससे भी बदतर थी | शोभा और हीरा को होरी से अलग हुए अभी कुल तीन साल ही हुए थे मगर दोनों पर चार-चार सौ रुपये का बोझ लद लग गया था | झींगुर दो हल की खेती करता है परंतु उस पर भी एक हजार का ऋण है | जियावन मेहतो के घर भिखारी भी भीख नहीं पाता |

परंतु किसानों की इस ऋण की समस्या को प्रेमचंद ( Premchand ) ने मुख्यत: होरी के माध्यम से स्पष्ट किया है | होरी ऋण से इतना दब जाता है कि उसे बेदखली से बचने के लिए मानो अपनी बेटी रूपा को बेचना पड़ता है | वह एक प्रौढ़ व्यक्ति रामसेवक से रूपा का विवाह कर देता है और उससे 200 रुपये ले लेता है |

इस प्रकार गोदान उपन्यास में प्रायः सभी किसानों की हालत दयनीीय है | सभी ऋण ग्रस्त हैं और महाजनों, साहूकारों और जमींदारोंं के चंगुल फंसे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं |

2. शोषण के शिकार

जमींदार प्रथा में शोषण अपने चरम पर था | दीन-हीन व बेबस व्यक्ति का चारों तरफ से शोषण किया जाता था | होरी एक गरीब व ईमानदार किसान है परंतु सभी उसका शोषण करते हैं | होरी के अतिरिक्त धनिया, हीरा, शोभा, सिलिया आदि सभी का किसी ने किसी प्रकार से शोषण होता है | इसका मूल कारण है उनकी रूढ़िवादिता, धर्मांधता व मर्यादा का बंधन | किसान बेचारा गर्मी-सर्दी, आंधी, लू, वर्षा के थपेड़ों को सहकर खेत में अन्न उपजाता है परंतु उसका अन्न खेतों से ही उठ जाता है | जमींदार, पटवारी, पंडित, दरोगा सभी उसको लूटते हैं |

रामसेवक एक स्थान पर कहता है – ” थाना पुलिस कचहरी सब हैं हमारी रक्षा के लिए लेकिन रक्षा कोई नहीं करता | चारों तरफ से लूट है | जो गरीब है, बेबस है, उसकी गर्दन काटने के लिए सभी तैयार रहते हैं |”

वस्तुतः यह शोषण इतना अधिक था कि किसानों की दशा बहुत दुखद थी होरी जैसे किसान अपना सब कुछ लुटा बैठे थे | किसान महाजनों, जमींदारों आदि के लिये ऐश्वर्य के साधन जुटाने के उपकरण मात्र थे | उन्हें केवल इतना मिलता था कि वे केवल जीवित रह सकें |

3. मर्यादा के रक्षक

भारतीय किसान सदा अपनी मर्यादा के रक्षक रहे हैं | समाज के नियम, जाति-बिरादरी के नियम, बड़ों का मान-सम्मान, जमींदार की जी-हुजूरी आदि ऐसी कुछ मर्यादाएं हैं जिनकी रक्षा करना उनका कर्तव्य है | वह अपने कर्तव्य के साथ न्याय करता है परंतु कोई भी उसके साथ न्याय नहीं करता | सभी उसका शोषण करने के लिए तत्पर हैं | एक स्थान पर रामसेवक कहता है – “थाना पुलिस कचहरी सब हैं हमारी रक्षा के लिए लेकिन रक्षा कोई नहीं करता | चारों तरफ से लूट है | जो गरीब है, बेबस है, उसकी गर्दन काटने के लिए सभी तैयार रहते हैं |”

खेती करके उन्हें परिश्रम करने पर भी कुछ नहीं मिलता | उन्हें जमींदार के पैरों की जूती बनकर रहना पड़ता है | जमींदार के कारिंदों की सलामी करनी पड़ती है और पुलिस की मार खानी पड़ती है | वह सब दुख ‘मरजाद’ ( मर्यादा ) के कारण सहते जाते हैं | खेती छोड़ मजदूरी करने के प्रश्न पर स्वयं होरी अपने पुत्र गोबर से कहता है – लेकिन खेतों को छोड़ा नहीं जाता……… फिर मरजाद भी तो पालना पड़ता है | खेती में जो मरजाद है, वह नौकरी में नहीं |”

किसान खेती को सम्मानजनक कार्य समझता है | होरी भी एक किसान है | वह भी खेती को सम्मानजनक मानता है | सब उसका शोषण करते हैं | वह खेतिहर मजदूर बनकर रह जाता है | दाने-दाने को मोहताज हो जाता है परंतु खेती छोड़कर मजदूरी नहीं करना चाहता | एक बार विवश होकर वह मजदूरी करना चाहता है तो उसकी पत्नी धनिया कहती है – “कौन मुंह लेकर मजूरी करोगे, महतो नहीं कहलाओगे |” वह बेचारा फिर खेती की मर्यादा का पालन करने लगता है | गोदान उपन्यास के सभी किसान उसी मर्यादा का पालन कर रहे हैं |

4. ब्राह्मणों व पंचों के उपासक

भारतीय परंपरा के अनुसार ब्राह्मणों का विशेष स्थान है | चाहे अवसर शुभ हो या अशुभ ; बिना ब्राह्मणों के पूरा नहीं माना जाता | उपन्यास के अंत में जब उपन्यास के नायक होरी की मृत्यु होने वाली है तो उसका भाई हीरा रोते हुए कहता है – “भाभी, दिल कड़ा करो, गोदान करा दो | दादा चले |”

और भी कई आवाजें आती हैं – “गोदान करा दो, अभी समय है |” तब धनिया उठती है और आज ही जो सुतली बेची थी उससे मिले 20 पैसे लाती है और होरी की हथेली पर रखकर सामने खड़े पंडित दातादीन से कहती है – ” घर में न गाय है और न बछिया | यही पैसे हैंं , यही इनका गोदान है |”

पूरा दृश्य आंखों में आंसू ला देता है | दिल भर आता है | होरी के इलाज तक के पैसे नहीं पर गोदान करना पड़ता है और ब्राह्मण को देना पड़ता है | यही भारतीय परंपरा है जबकि सभी जानते हैं कि दातादीन अनाचारी है पर है तो ब्राह्मण | ब्राह्मण के इसी ब्राह्मणत्त्व के कारण सभी किसान उन्हें दान देते हैं | एक स्थान पर दातादीन कहता है – ” जब तक हिंदू जाति रहेगी, तब तक ब्राह्मण भी रहेगा और जजमानी भी रहेगी |”

गांव में पंचों को भी परमेश्वर माना जाता है | उनका निर्णय सभी स्वीकार करते हैं | गांव में जब भी कोई सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन करता है तो पंच उसे दंड देते हैं | जब गोबर और झुनिया का प्रेम प्रसंग होता है, झुनिया गर्भवती हो जाती है, गोबर भाग जाता है लेकिन होरी और धनिया उसे अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर लेते हैं और उसे अपने घर में शरण देते हैं तो पंच होरी पर ₹100 नकद और 20 मन अनाज का हर्जाना भरने का दंड देते हैं | अनुचित होते हुए भी वह पंचों के निर्णय को स्वीकार कर लेता है | एक उदाहरण ही इस बात की पुष्टि के लिये काफ़ी है कि गांव में पंचों का निर्णय सर्वोपरि माना जाता था |

5. गाय की अभिलाषा

गोदान उपन्यास में मुख्यत: किसानों की कथा है | किसान बैलों से खेती करते हैं | अतः गाय-बैल उसके लिए धन हैं | गाय का घर में होना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है | गाय को किसान माता मानता है जिसका दूध पीकर उसे बल मिलता है | होरी के मन में भी यह तीव्र इच्छा है कि उसके घर में गाय आ जाए | वह भारतीय किसान है | बचपन से उसके मन में यह इच्छा है कि उसके आंगन में भी गाय हो | वह गाय को घर की शोभा मानता है परंतु यह उसका दुर्भाग्य है कि उसकी यह अभिलाषा मरते दम तक पूरी नहीं होती | गाय की तीव्र अभिलाषा को लेकर होरी की मृत्यु हो जाती है |

वस्तुतः गाय घर की शोभा मानी जाती है | हिंदू-मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के समय जो गोदान करता है, वही मुक्ति का अधिकारी है | इस प्रकार ब्राह्मण तर्कहीन परम्पराओं के प्रपंच में उलझा कर किसान से उस समय की सबसे अधिक बहुमूल्य वस्तु छीन लेते हैं |

6. भाग्यवादी और परिश्रमी

किसान अत्यंत परिश्रमी व भाग्यवादी होता है | वह मानता है कि उसके परिश्रम का फल ईश्वर के अधीन है | वह बड़े परिश्रम से फसल उगाता है परंतु कभी अनावृष्टि तो कभी ओलावृष्टि के कारण उसकी फसल नष्ट हो जाती है | इन्हीं कारणों से वह भाग्य और ईश्वर पर भरोसा रखता है | जब गोबर जमींदार राय साहब को कोसने लगता है तो होरी कहता है कि यह सब कर्मों का फल है | वह कहता है कि रायसाहब ने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे जिसके कारण उन्हें राजयोग मिला है | यह बातें पूरी तरह से भाग्यवादी सिद्धांत के अनुकूल हैं | गोदान ( Godan ) उपन्यास में भी होरी आरंभ से लेकर अंत तक परिश्रम व भाग्य का राग अलापता है | बार-बार परिश्रम करता है और जब उसकी मेहनत का फल उसे नहीं मिलता तो उसे ही अपना भाग्य मान लेता है |

7. अभिशप्त जीवन

जब जमींदारी प्रथा थी तब किसान नारकीय जीवन जीता था | उसका जीवन अभिशप्त था | उस पर चारों तरफ से अन्याय होता था | सभी उसका शोषण करते थे | वह बेचारा सब को भोजन देकर स्वयं भूखा रहता था | ठीक ऐसी ही दशा होरी ( Hori ) व अन्य किसानों की गोदान उपन्यास में है | होरी जैसे किसान दिन-रात pमेहनत करके अन्न उगाते हैं परंतु अन्न उगने पर उनके खेत से ही अन्न उठा लिया जाता है | घर में दाना तक नहीं पहुंचता | जमींदार, साहूकार, पंडित, पंच, दारोगा आदि सभी उन्हें लूटते हैं | लगान के अलावा नजराना, शगुन आदि न जाने कितनी परंपराएं हैं जो किसान का शोषण करने के लिए बनाई गई हैं | किसान को कई बार बिना बैलों के ही खेती करनी पड़ती है | साहूकार कभी उनके बैलों को कुर्क कर लेता है, कभी उनकी गाय को | शुभ-अशुभ आदि सभी अवसरों पर ब्राह्मणों को दान देना पड़ता है | इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी परंपराएं भी गढ़ी गई हैं जो उन्हें दान देने के लिए बाध्य कर देती हैं | इतना कुछ होते हुए भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता | अपमान व मार मिलती है | वास्तव में ही उनका जीवन अभिशप्त प्रतीत होता है |

इस प्रकार प्रेमचंद के उपन्यास गोदान में कृषक जीवन की करुणापूर्ण सत्य कहानी है | होरी जैसे किसान दिन-रात खेतों में काम करते हैं | खूब पसीना बहाते हैं लेकिन अनाज पैदा होने पर सारा अनाज जमींदार, साहूकारा आदि ले जाते हैं और किसान बेचारा फिर दाने-दाने को मोहताज हो जाता है | इस प्रकार प्रेमचंद्र जी ने तत्कालीन किसान की यथार्थ स्थिति इस उपन्यास में प्रस्तुत की है | वस्तुतः गोदान में कृषक जीवन कथा विस्तृत एवं उदात्त महागाथा है | शायद इसी कारण से कुछ आलोचकों नेेे गोदान उपन्यास को कृषक जीवन का महाकाव्य भी कहा है |

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