बजट : अर्थ, परिभाषा, प्रकार, महत्त्व व निर्माण-प्रक्रिया

बजट का अर्थ, प्रकार व निर्माण प्रक्रिया

बजट वित्तीय प्रशासन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपकरण है | इसे वित्तीय प्रशासन का केंद्र बिंदु माना जाता है | बजट के माध्यम से राज्य की वित्तीय स्थिति प्रकट होती है | बजट के माध्यम से ही किसी सरकार की आर्थिक नीतियों की झलक मिलती है | बजट की अवधारणा को समझने से पूर्व इसके अर्थ एवं परिभाषा को जान देना उचित होगा |

बजट का अर्थ ( Budget Ka Arth )

‘बजट’ शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी भाषा के शब्द ‘बोजेट’ या ‘बूजेट’ ( Bougette ) से हुई है जिसका अर्थ होता है – एक चमड़े का थैला | तत्कालीन समय में इस थैले में राजकोष महामात्य आगामी वर्ष की वित्तीय योजना लेकर आता था तथा उसे संसद में प्रस्तुत करता था | आधुनिक अर्थ में इसका प्रयोग सर्वप्रथम 1773 में इंग्लैंड में किया गया | इस वर्ष वित्त मंत्री ने अपनी वित्तीय योजना संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की तो पहली बार व्यंग्य में यह कहा गया कि वित्त मंत्री ने अपने बजट खोला है | तब से इस शब्द का प्रयोग होने लगा और कालांतर में यह एक विशिष्ट शब्द बन गया |

बजट की परिभाषा ( Budget Ki Paribhasha )

बजट की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं —

(1) लेनॉय के अनुसार — “बजट एक वित्तीय वर्ष में सरकार की आय तथा व्यय का विवरण है |”

(2) अवस्थी एवं माहेश्वरी के अनुसार — “बजट एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत कार्यपालिका आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करती है | यह केवल सरकार के आय-व्यय का विवरण मात्र नहीं है |”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि बजट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सरकार वित्तीय वर्ष में अपने वित्तीय कार्यों की योजना प्रस्तुत करती है |

बजट के प्रकार ( Budget Ke Prakar )

लोक प्रशासन के अंतर्गत सामान्यत: बजट के तीन प्रकारों का उल्लेख मिलता है —

(1) व्यवस्थापिका प्रणाली का बजट

जब व्यवस्थापिका के द्वारा बजट का निर्माण किया जाता है तो उसे व्यवस्थापिका प्रणाली का बजट कहा जाता है | इस प्रणाली में कार्यपालिका बजट निर्माण के लिए व्यवस्थापिका से अनुरोध करती है | व्यवस्थापिका बजट का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन करती है परंतु यहां यह ध्यातव्य है कि बजट निर्माण करते समय सभी जानकारियाँ कार्यपालिका उपलब्ध कराती है |

(2) कार्यपालिका प्रणाली का बजट

बजट निर्माण का यह रूप सर्वाधिक प्रचलित है | इस प्रणाली के अंतर्गत कार्यपालिका के द्वारा बजट का निर्माण किया जाता है और व्यवस्थापिका के द्वारा उसे स्वीकार किया जाता है | तत्पश्चात उसे लागू किया जाता है | आज विश्व के अधिकांश देशों में कार्यपालिका प्रणाली के बजट को ही अपनाया जाता है |

(3) मंडल या आयोग प्रणाली का बजट

जब बजट का निर्माण किसी मंडल या आयोग के द्वारा किया जाता है तो इसे आयोग प्रणाली का बजट कहा जाता है | इन आयोगों में या तो केवल प्रशासनिक अधिकारी होते हैं या विधायी और प्रशासनिक दोनों प्रकार के अधिकारी होते हैं | यह आयोग स्वतंत्र ढंग से कार्य करता है | इस प्रणाली का उद्देश्य कार्यपालिका के अधिकारों पर अंकुश लगाना तथा बजट-निर्माण में निरपेक्षता लाना है | इस प्रकार की व्यवस्था अमेरिका के कुछ राज्यों में प्रचलित है |

उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त डॉ विष्णु भगवान ने भी बजट के कुछ प्रकार बताए हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है —

(1) वार्षिक या दीर्घकालिक बजट

साधारणत: विश्व के अधिकांश देशों में वार्षिक बजट ही होते हैं | जैसे भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक, फ्रांस में 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक वार्षिक बजट का निर्माण किया जाता है | दीर्घकालिक बजट दो, तीन, चार या पांच वर्षों के लिए भी तैयार किए जाते हैं |

(2) एकल या बहुल बजट

एकल बजट के अंतर्गत सभी सरकारी विभागों के प्राक्कलन एक ही प्रकार के बजट में सम्मिलित कर लिए जाते हैं | बहुल बजट पद्धति में विभागों के लिए अलग-अलग बजट तैयार किए जाते हैं तथा उन्हें विधानमंडल अलग-अलग पास करता है | भारत में दो बजट होते हैं – एक रेलवे के लिए तथा दूसरा अन्य समस्त विभागों के लिए |

(3) नकदी या राजस्व बजट

नकदी बजट वह है जिसके अंतर्गत आय एवं व्यय के अनुमान केवल उस राशि पर आधारित है जो उस वर्ष के भीतर अवश्य मिले या खर्च हो | राजस्व बजट के अंतर्गत वह आय या खर्च शामिल होता है जो एक अनुमान के आधार पर है ; वास्तव में वह आय या खर्च हो या न हो |

(4) लाभ का, घाटे का या संतुलित बजट

अनुमानित आय जब अनुमानित व्यय से अधिक हो तो उसे लाभ का बजट कहते हैं | यदि अनुमानित आय अनुमानित व्यय से कम हो तो उसे घाटे का बजट कहते हैं | जब आय-व्यय में संतुलन हो तो उस बजट को संतुलित बजट कहते हैं |

(5) विभागीय या कार्य बजट

विभागीय बजट के अंतर्गत विभाग की समस्त आय तथा व्यय को इकट्ठा करके दिखाया जाता है | कार्य बजट में किसी विभाग के विशेष कार्य के लिए बजट बनाया जाता है | जैसे शिक्षा विभाग में शिक्षा को तीन स्तरों उच्च, माध्यमिक तथा प्राथमिक शिक्षा में विभाजित कर दिया जाता है |

बजट का महत्व ( Budget Ka Mahatva )

बजट लोक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण अंग है | प्रशासन में बजट के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है —

(1) प्रशासन का आधार

बजट लोक प्रशासन का आधार है | सरकारें अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों को निर्धारित करते समय अपनी वित्तीय स्थिति का ध्यान रखती हैं |

(2) नियोजन का आधार

नियोजन एवं बजट में गहरा संबंध है | वस्तुतः बजट नियोजन का आधार है | देश की योजनाओं का निर्माण देश की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर ही किया जाता है |

(3) सामाजिक एवं आर्थिक नीति का आधार

किसी देश की सामाजिक एवं आर्थिक नीति बजट पर ही निर्भर करती है | वस्तुतः बजट में ही सरकार की सामाजिक एवं आर्थिक नीति की घोषणा की जाती है |

(4) नियंत्रण का साधन

बजट सार्वजनिक धन पर नियंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है | विधानमंडल कार्यपालिका पर नियंत्रण रख सकता है | वस्तुतः बजट के माध्यम से विधानपालिका कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है |

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि बजट लोक प्रशासन का प्रमुख यंत्र है जिसे किसी देश की समस्त नीतियों का आधार व उद्घोषक कहा जा सकता है |

बजट निर्माण की प्रक्रिया ( Budget Nirman Ki Prakriya )

भारत में बजट निर्माण की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है —

(क ) बजट का निर्माण

(ख ) विधानमंडल की स्वीकृति

(ग ) बजट का क्रियान्वयन

(क ) बजट का निर्माण ( Budget Ka Nirman )

बजट निर्माण की प्रक्रिया को तीन चरणों में बांटा जा सकता है —

(1) विभिन्न विभागों द्वारा अनुमानों की तैयारी

(2) बजट की महालेखा के कार्यालय में जांच

(3) वित्त मंत्रालय द्वारा अनुमानों का सूक्ष्म निरीक्षण

(1) विभिन्न विभागों द्वारा अनुमानों की तैयारी

वित्तीय वर्ष का आरंभ होने से पूर्व ही बजट की तैयारी आरंभ हो जाती है | सर्वप्रथम बजट के लिए अनुमान लगाए जाते हैं | यह कार्य कार्यपालिका का है | वित्त विभाग के माध्यम से जुलाई या अगस्त के मास में प्रत्येक विभाग के विभागाध्यक्ष को अनुमान का विवरण जानने के लिए एक रिक्त फार्म भेजा जाता है | विभाग का अध्यक्ष अपने विभाग के अन्य कर्मचारियों की सहायता से बजट का अनुमान तैयार कर लेता है और निर्धारित प्रपत्र में भरकर वित्त विभाग को भेज देता है |

(2) बजट की महालेखापाल के कार्यालय में जाँच

विभागों के द्वारा जब आगामी वर्ष के लिए आय-व्यय का अनुमान तैयार हो जाता है तो अनुमानों की दो प्रतियां भेजी जाती हैं जिनमें से एक प्रति वित्त मंत्रालय को तथा दूसरी प्रति महालेखापाल को भेजी जाती है | महालेखापाल विभिन्न मदों की जांच करता है और देखता है कि अनुमानों में सभी स्वीकार्य प्रभार ही शामिल हैं |

(3) वित्त मंत्रालय द्वारा अनुमानों का सूक्ष्म निरीक्षण

जब महालेखापाल के द्वारा बजट अनुमानों की जांच कर ली जाती है तो उसके बाद वित्त मंत्रालय उसका सूक्ष्म निरीक्षण करता है परंतु आय तथा व्यय के बारे में अंतिम निर्णय मंत्रीपरिषद द्वारा लिए जाते हैं | वित्त मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत करने के लिए दो विवरण पत्र तैयार किए जाते हैं – वार्षिक वित्तीय विवरण पत्र, अनुदान की मांगें | वार्षिक विवरण पत्र में सरकार की साल भर की कुल आय तथा व्यय को दिखाया जाता है |

अनुदान की मांगों में वे मांगे होती हैं जिनकी पूर्ति संचित निधि से होती है | जिन मांगों की पूर्ति संचित निधि से होती है उन पर संसद न तो मतदान कर सकती है और न ही उनमें कटौती कर सकती है |

इस प्रकार विभिन्न एजेंसियों के निरीक्षण के पश्चात बजट के महत्वपूर्ण कागजात तैयार कर लिए जाते हैं |

(ख ) विधानमंडल की स्वीकृति ( Vidhanmandal Ki Swikriti )

भारत के संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रतिवर्ष संसद के दोनों सदनों के सम्मुख बजट को प्रस्तुत कराएगा | बजट को संसद में पारित होने के लिए निम्नलिखित चरणों से गुजरना पड़ता है —

(1) बजट को व्यवस्थापिका में पेश करना

भारत में प्रायः फरवरी मास में बजट संसद में पेश किया जाता है | रेल मंत्री के द्वारा रेल बजट पृथक प्रस्तुत किया जाता है | बजट पेश करते समय राष्ट्रीय वित्तीय विवरण पत्र को सदन में प्रस्तुत किया जाता है |

(2) सामान्य वाद -विवाद

लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा के नेता के परामर्श से बजट के विभिन्न पहलुओं पर वाद-विवाद की तिथि निश्चित करता है | यह तिथि प्रायः बजट प्रस्तुत करने के 1 सप्ताह बाद निश्चित की जाती है | उस निश्चित तिथि को बजट के विभिन्न पहलुओं पर सामान्य वाद-विवाद होता है |

(3) एक मास के लिए संसद का स्थगन

सामान्य वाद-विवाद के पश्चात एक मास के लिए संसद को स्थगित कर दिया जाता है | इस दौरान ये समितियां विभागों के क्षेत्रीय कार्यालयों में जाती हैं और विभाग के द्वारा मांगी गई अनुदान मांगों की उपयुक्तता के बारे में प्रश्न करती हैं |

(4) मांगों पर मतदान

समितियों की रिपोर्ट पेश करने के बाद अनुदान मांगों पर मतदान होता है | अनुदान की मांग प्रस्ताव के रूप में की जाती है | यदि प्रस्ताव पर वोट मिल जाए तो मांग अनुदान बन जाती है |

इन मांगों की राशि की सीमा को कम करने के लिए संसद के सदस्य प्रस्ताव लाते हैं जिन्हें कटौती प्रस्ताव कहते हैं | सामान्यतः कटौती प्रस्ताव संसद में अस्वीकार हो जाते हैं क्योंकि सरकार के पास बहुमत होता है |

(5) विनियोग विधेयक पास होना

मांगों पर मतदान होने के पश्चात विनियोग विधेयक का अनुमोदन होता है | इस विधेयक के अनुमोदन से अनुदान मांगों को कानूनी रूप मिलता है | इससे संचित निधि से धन निकालने का अधिकार मिल जाता है |

(6) राज्यसभा द्वारा विचार

राज्यसभा को वित्त विधेयक में संशोधन करने या उसे अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है | राज्यसभा को 14 दिन के अंदर-अंदर अपनी सिफारिशें लोकसभा को भेजनी होती हैं | लोकसभा उन सिफारिशों को अस्वीकार कर सकता है | अगर राज्यसभा 14 दिन के अंदर विधेयक को वापस न करे तो अध्यक्ष उसके बिना ही विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेज देता है |

(ग ) बजट का क्रियान्वयन ( Budget Ka Kriyanvayan )

बजट का क्रियान्वयन निम्नलिखित चरणों में पूरा होता है —

(1) राजस्व का एकत्रीकरण

संसद द्वारा विभिन्न प्रकार के राजस्व की स्वीकृति मिलने पर उसके एकत्रीकरण की आवश्यकता होती है | यह कार्य संबंधित विभाग के कर्मचारी करते हैं ; जैसे आयकर विभाग आयकर एकत्रित करता है |

(2) कोष संरक्षण

जो राजस्व एकत्र कर लिया जाता है उसका सुरक्षित भंडारण भी महत्वपूर्ण प्रश्न है |

(3) निधियों का वितरण

कोई विभाग राजकोष से प्रत्यक्ष रूप से धन निकालने का अधिकार नहीं रखता | संसद धन निकलवाने की शक्ति राष्ट्रपति को प्रदान करती है जिसके आधार पर वित्त मंत्रालय विभिन्न विभागों को पूर्व निश्चित अनुपात के अनुसार धन वितरित करता है |

(4) वित्तीय लेन-देन का लेखांकन

वित्तीय लेन-देन का क्रमबद्ध रूप से संपूर्ण हिसाब रखा जाता है | यह लेखा काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इससे ही पता चलता है कि बजट की धाराओं का ठीक से पालन हो रहा है या नहीं |

(5) लेखा-परीक्षण

लेखा परीक्षण के माध्यम से यह जांच की जाती है कि प्रशासन ने बजट की धाराओं के अनुसार व्यय किया या नहीं |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि बजट निर्माण की प्रक्रिया एक जटिल परन्तु महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो अनेक चरणों से गुजरने के पश्चात पूर्ण होती है |

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