नेतृत्व का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं व कार्य

नेतृत्व का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं व कार्य

नेतृत्व एक ऐसा गुण है जो व्यक्तियों को किसी संगठन के प्रति निष्ठावान बनाए रखता है | यह व्यक्तित्व का जादू तथा प्रभावित करने की कला है जिसके द्वारा वह एक संगठन की समस्त शक्तियों को उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने की प्रेरणा देता है |

नेतृत्व की परिभाषा ( Netritva Ki Paribhasha )

नेतृत्व की कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं —

(1) जॉन टेरी के अनुसार —नेतृत्व वह योग्यता है जो उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जनसमूह को स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रभावित करती है |”

एलफर्ड एन्ड बैटी के अनुसार — “भय उत्पन्न किए बिना स्वेच्छा से बात मनवाना ही नेतृत्व है |”

अतः उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि नेतृत्व करने का अर्थ होता है — मार्गदर्शन करना, संचालित करना, निर्देशन करना व पहल करना |

नेतृत्व की विशेषताएं ( Netritva Ki Visheshtaen )

नेतृत्व का अर्थ व परिभाषाएं जान लेने के बाद नेतृत्व की निम्नलिखित विशेषताएं उभर कर सामने आती हैं —

(1) अनुयायियों को एकत्रित करने की क्षमता

अनुयायियों के अभाव में नेतृत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती | बिना समूह के नेतृत्व का कोई अस्तित्व ही नहीं | एक नेता अपनी नेतृत्व क्षमता समूह पर ही प्रयोग कर सकता है | अतः नेतृत्व के लिए आवश्यक है कि लोगों का एक समूह हो जो अपने नेता के निर्देशानुसार आचरण करे |

(2) अन्यों के आचरण एवं व्यवहार को प्रभावित करना

नेतृत्व अन्यों के आचरण एवं व्यवहार को प्रभावित करने की कला है | अगर कोई व्यक्ति बड़ी संख्या में लोगों के समूह पर प्रभाव डालता है और लोग उस व्यक्ति के निर्देशों के अनुसार आचरण करते हैं तो उस व्यक्ति में नेतृत्व के गुण हैं | वास्तव में नेतृत्व का गुण उसके प्रभाव से होता है |

(3) हितों की पारस्परिक एकता

नेता तथा उसके अनुयायी यदि विपरीत दिशा में जाते हैं तो यह नेतृत्व नहीं है अपितु उसकी अनुपस्थिति है | इसका अर्थ यह है कि नेतृत्वकर्त्ता और अनुयायियों के हित समान होने आवश्यक हैं तभी नेतृत्व सफल हो सकता है | हितों के विपरीत होने पर नेतृत्वकर्त्ता अपना प्रभाव खो बैठता है |

(4) पारस्परिक संबंध

नेता तथा अनुयायियों में परस्पर संबंध होता है | अनुयायी नेता के प्रति सम्मान की भावना रखते हैं क्योंकि वह उनके हितों की पूर्ति के लिए प्रयास करता है | दूसरी ओर नेता की शक्ति भी उसके अनुयायियों से ही बनती है | इस प्रकार एक नेतृत्वकर्त्ता अपने अनुयायियों को प्रभावित भी करता है तथा उनसे प्रभावित भी होता है | वह जनसमूह से अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उन्हें प्रेरित भी करता है तथा उनकी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए ही अपने उद्देश्यों को निर्धारित भी करता है |

(5) उत्तरदायित्व की भावना

वह व्यक्ति जो किसी संगठन का नेतृत्व करता है उसमें संगठन के सभी कार्यों के लिए उत्तरदायित्व की भावना होनी चाहिए | उसे अपने अनुयायियों के कार्यों का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेना चाहिए |

(6) आदर्श व्यवहार

एक नेता को अपने व्यक्तिगत व्यवहार से अपने अनुयायियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए | एक नेता कैसा है इस बात का निर्धारण उसके अनुयायी उसके आचरण एवं व्यवहार से करते हैं | अतः एक नेता का चरित्र ऊँचा होना चाहिए |

अतः किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने अनुयायियों को एकत्रित करने की क्षमता ही नेतृत्व है | इसके अतिरिक्त नेतृत्व का कार्य अपने अधीनस्थ को निर्देश देना एवं निश्चित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करना है | संगठन के सभी कार्यों का उत्तरदायित्व लेना भी नेतृत्व का कार्य है |

नेतृत्व के कार्य ( Netritva Ke Karya )

नेतृत्व वास्तव में एक प्रेरक शक्ति है जो संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए लोगों को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है जिसका मुख्य कार्य संगठन को एक सूत्र में बांधना है | नेतृत्व संगठन के सभी लोगों को निश्चित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता है | उनका मार्गदर्शन करता तथा उन्हें निर्देश देता है |

(1) उद्देश्यों का निर्धारण

संगठन का निर्माण कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है | अतः सर्वप्रथम संगठन के उद्देश्यों का निश्चित किया जाना आवश्यक है ताकि संगठन द्वारा उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास किया जा सके | अतः नेतृत्व का सर्वप्रथम व सर्वप्रमुख कार्य संगठन के उद्देश्यों का निर्धारण करना है | उद्देश्य जितने अधिक स्पष्ट होंगे संगठन की सफलता के लिए योजना बनाना भी उतना ही सरल होगा |

(2) सहयोग प्राप्त करना

नेतृत्व का एक प्रमुख कार्य संगठन के सभी कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना है | संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति तभी संभव है जब संगठन के सभी कर्मचारी सहयोग करें | एक नेता का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह सभी कर्मचारियों में यह विश्वास पैदा करे कि संगठन की सफलता उनके हित में है | संगठन का उद्देश्य उनका अपना उद्देश्य होना चाहिए |

(3) प्रशासकीय कार्यों का संपादन

नेतृत्व का एक प्रमुख कार्य संगठन के प्रशासकीय कार्यों का संपादन करना होता है | वह अपने अधीनस्थों से कार्य करवाता है | उनके कार्यों का निरीक्षण करता है | उन्हें आदेश व निर्देश देता है | वह अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों का समन्वय करता है तथा आवश्यकतानुसार उन्हें परामर्श देता है | यदि अधीनस्थ कर्मचारी उचित कार्य न करें तो वह उनको नियमानुसार सजा भी दे सकता है | अतः स्पष्ट है कि संगठन में सभी प्रशासकीय कार्यों का संपादन नेतृत्व ही करता है |

(4) प्रतिनिधित्व करना

नेता अपने संगठन का प्रतिनिधित्व करता है | संगठन एक अमूर्त विचार है | नेता के माध्यम से ही उसके मूर्त रूप की सृष्टि होती है | एक नेता की विचारधारा ही उस संगठन की विचारधारा बन जाती है | नेता के सद्कार्यों से संगठन की प्रशंसा तथा नेता के दुष्कर्मों से संगठन की बुराई होती है |

(5) एकता एवं समन्वय

नेतृत्व संगठन में एकता एवं समन्वय की स्थापना करता है | किसी भी संगठन में प्राय: अलग विचारों और स्वभाव वाले लोग होते हैं | उनके लक्ष्य, आदर्श, मूल्य, सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि में अंतर होता है | अतः उनमें थोड़ा बहुत मनमुटाव हो जाना स्वाभाविक है | इससे संगठन के उद्देश्य को पूरा करने में बाधा उत्पन्न होती है | ऐसी स्थिति में नेता के लिए संगठन में एकता एवं समन्वय बनाए रखना आवश्यक हो जाता है |

(6) अनुशासन कायम रखना

किसी भी संगठन में नेतृत्व का एक प्रमुख कार्य अनुशासन स्थापित करना है | अनुशासन ही वह शक्ति है जिससे कोई संगठन उन्नति करता है | अनुशासन एक ऐसी शक्ति है जिससे वे सभी कार्य-कलाप दूर हो जाते हैं जो संगठन के लक्ष्य प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं |

(7) प्रेरणा देना

नेतृत्व का एक प्रमुख कार्य संगठन के कर्मचारियों को प्रेरणा देना है | वह उनके सामने अपने कार्य तथा विचारों से ऐसे आदर्श प्रस्तुत करता है कि वे कर्मठ, अनुशासित तथा संगठन के प्रति ईमानदार बनते हैं | इससे संगठन अपने उद्देश्यों की तरफ तेजी से बढ़ता है |

(8 ) उपयुक्त कार्य-विभाजन

संगठन की सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उस संगठन के कर्मचारी अपने-अपने कार्य को करने में कितने निपुण हैं | कई बार किसी ऐसे व्यक्ति को कोई उत्तरदायित्व सौंप दिया जाता है जो उस कार्य को करने में अक्षम होता है | इससे संगठन का कार्य अवरुद्ध हो जाता है | अतः संगठन के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए सबसे पहली आवश्यकता उपयुक्त कार्य-विभाजन करना है | यह व्यवस्था प्रायः नेतृत्व ही करता है |

(9) संप्रेषण की प्रभावी व्यवस्था

संगठन की गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रभावी संप्रेषण का होना आवश्यक है | संगठन की नीतियों, विचारों एवं नियमों को संगठन के सभी कर्मचारियों तक पहुंचाना आवश्यक है ताकि वे उन नियमों का पालन कर संगठन के उद्देश्यों को पूरा कर सकें | कई बार तत्काल कोई सूचना या निर्देशों को सारे संगठन में संप्रेषित करना पड़ता है | ऐसी अवस्था में संप्रेषण का प्रभावी होना अति आवश्यक हो जाता है | संप्रेषण की व्यवस्था करना भी नेतृत्व का कार्य है |

(10) कार्यों का मूल्यांकन

नेतृत्व का एक प्रमुख कार्य संगठन के सभी कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन करना है | मूल्यांकन से यह ज्ञात हो जाता है कि कोई कर्मचारी दिए गए कार्य को करने के उपयुक्त है या नहीं | मूल्यांकन करने से यह भी ज्ञात हो जाता है कि जो योजना अपनाई गई है वह कितनी कारगर है | इससे कर्मचारी को भी बदला जा सकता है तथा अपनाई गई योजना में भी कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि नेतृत्व संगठन का आधार बिंदु है | नेतृत्व ही किसी संगठन को सफलता का मार्ग दिखाता है | नीतियों का निर्माण करना व उनको लागू करना, कर्मचारियों को नियुक्त करना व उनमें सामंजस्य स्थापित करना, कर्मचारियों को आदेश देना, निर्देश देना व उनमें अनुशासन बनाए रखना, उनके कार्यों का मूल्यांकन करना आदि नेतृत्व के कुछ कार्य हैं |

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