शक्ति : अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं ( Shakti : Arth, Paribhasha Evam Visheshtayen )

शक्ति का अर्थ ( Shakti Ka Arth )

शक्ति राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय है | कैटलिन ने राजनीति शास्त्र को शक्ति का मुख्य विषय माना है | लासवेल भी शक्ति को राजनीतिक शास्त्र के अध्ययन का मूल विषय मानते हैं | अरस्तु से लेकर आज तक के राजनीति शास्त्र के विद्वानों ने शक्ति को राजनीतिक शास्त्र के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय मानते हैं परन्तु फिर भी शक्ति के अर्थ के बारे में विद्वानों में मतभेद पाया जाता है | यही कारण है कि विद्वानों ने शक्ति की भिन्न-भिन्न परिभाषा दी हैं जिनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएं इस प्रकार हैं : –

एम जी स्मिथ के अनुसार – “लोगों द्वारा वस्तुओं के ऊपर बलिया प्रोत्साहन द्वारा प्रभावशाली रूप में कार्य करने की योग्यता को शक्ति कहते हैं |”

मैकाइवर के अनुसार – “शक्ति से हमारा अर्थ व्यक्तियों या संस्थाओं के व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता से है |”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शक्ति वह योग्यता अथवा सामर्थ्य है जिसके द्वारा व्यक्ति या संस्था दूसरे के कार्यो व नीतियों को इस प्रकार प्रभावित करता है कि यदि उसकी इच्छाओं के अनुसार कार्य न किया जाए तो अवज्ञा करने वालों को हानि उठानी पड़ सकती है |

शक्ति की विशेषताएं ( Shakti Ki Visheshtayen )

शक्ति की अवधारणा को और अधिक स्पष्ट रूप से जानने के लिए इसकी विशेषताओं का अध्ययन करना होगा जिनका वर्णन इस प्रकार है : –

1. व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता

व्यक्तियों के व्यवहार, कार्यों तथा नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता ही शक्ति की अवधारणा का मूल मंत्र है | ऐसी क्षमता या योग्यता के बिना शक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती | इस योग्यता या क्षमता के विभिन्न रूप हो सकते हैं – जैसे आर्थिक क्षमता, व्यक्तिगत-क्षमता, शारीरिक-क्षमता या बौद्धिक-क्षमता |

2. हानि पहुंचाने की धारणा सम्मिलित

शक्ति की अवधारणा में कहीं ना कहीं हानि पहुंचा सकने की धारणा भी शामिल होती है | शक्ति के पीछे मान्यता होती है कि यदि किसी किसी व्यक्ति या संस्था की अन्य व्यक्तियों से कार्य करने की क्षमता के पीछे दबाव शक्ति नहीं है तो ऐसी क्षमता शक्ति नहीं कहलाएगी | इसी को प्रभाव का नाम भी दिया जा सकता है | उदाहरण के लिए एक कारखाने का मालिक मजदूरों को आदेश देता है कि कार्य निश्चित समय पर पूरा करो और एक मजदूर आदेश को न माने तो कारखाने का मालिक वेतन काट कर या अन्य कोई कार्रवाई करके उसे हानि पहुंचा सकता है | आदेश की अनुपालन करने वाले के मन में यह भावना पहले से होती है तभी वह उस व्यक्ति या संस्था के के द्वारा दिए गए कार्यों को पूरी निष्ठा से करता है |

3. मानवीय संबंधों का विशिष्ट रूप

शक्ति मानवीय संबंधों का एक विशिष्ट रूप है | शक्ति के लिए एक शक्तिसंपन्न व्यक्ति तथा कुछ अन्य व्यक्तियों का होना आवश्यक है जो उस शक्ति-संपन्न व्यक्ति के कार्यों की अनुपालना करें या उसके द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार आचरण करें | शक्ति-संपन्न व्यक्ति को कर्त्ता कहा जा सकता है | कर्त्ता अपनी क्षमता के अनुसार अन्य लोगों पर प्रभाव डालता है तथा अपनी इच्छा के अनुसार उनसे कार्य करवाता है या उनकी नीतियों व व्यवहार को प्रभावित करता है |

4. शक्ति स्थितिपरक है

शक्ति स्थिति पर निर्भर करती हैं | जैसे कॉलेज का प्रधानाचार्य विद्यार्थियों पर तब तक शक्ति रखता है जब तक विद्यार्थी उस कॉलेज का विद्यार्थी है और वह उस कॉलेज का प्रधानाचार्य है | विद्यार्थी के कॉलेज छोड़ने पर या प्रधानाचार्य के सेवानिवृत्त हो जाने पर शक्ति नहीं रहती है | ठीक इसी प्रकार से किसी राजनेता के द्वारा चुनाव जीतने पर जब है मंत्री पद पर आसीन हो जाता है तो उस मंत्रालय से संबंधित शक्ति उसके पास आ जाती है लेकिन उस मंत्रालय से हट जाने पर, मंत्रालय बदल जाने पर या चुनाव हार जाने के बाद उसकी शक्ति छीन जाती है |

5. शक्ति सापेक्ष होती है

शक्ति का एक अन्य लक्षण यह भी है कि यह सापेक्षिक होती है | एक शक्तिशाली होने का अर्थ यह नहीं होता कि वह सभी पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है और वह स्वयं किसी और की शक्ति के अधीन नहीं होता | उदाहरण के लिए एक अध्यापक की शक्ति अपनी कक्षा के विद्यार्थियों पर होती है परंतु प्रधानाचार्य के सामने जाते ही उसकी शक्ति छिन जाती है | वह स्वयं प्रधानाचार्य के निर्देशानुसार व्यवहार करता है | इसके अतिरिक्त एक शक्तिशाली की शक्ति उन क्रियाओं के क्षेत्र और प्रकार पर भी निर्भर करती है जिन्हें वह करना चाहता है | एक व्यक्ति की शक्ति एक क्षेत्र अथवा कुछ क्षेत्रों में हो सकती है, अन्य क्षेत्रों में नहीं भी हो सकती |

6. वास्तविक और संभावित शक्ति

एक व्यक्ति की शक्ति के दो रूप होते हैं – वास्तविक शक्ति तथा संभावित शक्ति | वास्तविक शक्ति का अर्थ होता है – व्यक्ति की वह शक्ति जिसे शक्ति-संपन्न व्यक्ति एक स्थिति में वास्तविक रूप से प्रयोग करता है जबकि संभावित शक्ति वह है जिसका प्रयोग शक्ति-संपन्न व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है | एक व्यक्ति की शक्ति का आकलन करते समय उसकी शक्ति के इन दोनों पहलुओं का विश्लेषण करना पड़ता है |

7. विरोधी हितों का होना अनिवार्य

शक्ति की अवधारणा के लिए यह आवश्यक है कि शक्ति का प्रयोग करने वाले व्यक्ति और उन व्यक्तियों जिन पर वह शक्ति प्रयोग की जा रही है के हितों में विरोध होना चाहिए | अगर शक्ति के प्रयोग-कर्त्ता और उन व्यक्तियों जिनके ऊपर शक्ति प्रयोग की जा रही है के हित समान हैं तो ऐसी स्थिति में शक्ति के प्रयोग की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |

8. शक्ति अमूर्त है

शक्ति एक अमूर्त अवधारणा है | इसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है | यह कोई भौतिक वस्तु या संपत्ति नहीं है जिस पर अधिकार किया जा सके | शक्ति एक भावना होती है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है | शक्ति को ना तो हम देख सकते हैं और ना ही किसी को दिखा सकते हैं | इसे केवल अनुभव कर सकते हैं | भौतिक पदार्थों को नापा-तोला जा सकता है लेकिन शक्ति को नहीं ; उसका केवल आंकलन किया जा सकता है | इसका मुख्य कारण यह है कि यह एक अमूर्त भौतिक अवधारणा है |

9. वैधता की अवधारणा

शक्ति के साथ वैधता की अवधारणा जुड़ी होती है | शक्ति को प्रभावी बनाने के लिए वैधता जरूरी है | शक्ति के साथ जब तक वैधता जुड़ी रहती है तब तक नियमों को मनवाने के लिए हिंसा या बल प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती | यह सही है की शक्ति अवैध भी हो सकती है लेकिन अवैध शक्ति अधिक दिनों तक अस्तित्व में नहीं रहती | अवैध शक्ति के अनुसार व्यवहार करने वाले लोग जल्दी ही विद्रोह पर उतर आते हैं |

◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि शक्ति मानवीय संबंधों का एक विशिष्ट रूप है जिसमें एक व्यक्ति जिसे सत्ताधारी कहा जाता है, अपने से कम शक्तिशाली व्यक्तियों के व्यवहार को अपनी इच्छा अनुसार परिवर्तित करने की योग्यता रखता है |

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