राजनीतिक सिद्धांत : अर्थ, परिभाषा और क्षेत्र ( Rajnitik Siddhant : Arth, Paribhasha Aur Kshetra )

राजनीतिक सिद्धांत को अंग्रेजी भाषा में ‘पॉलिटिकल थ्योरी’ ( Political Theory ) कहा जाता है | ‘थ्यूरी‘ ( Theory) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘थ्योरिया’ ( Theoria ) से हुई है जिसका अर्थ है – एक ऐसी मानसिक दृष्टि जो एक वस्तु के अस्तित्व और कारणों को प्रकट करती है | विभिन्न विद्वानों ने राजनीतिक सिद्धांत की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं, इनमें से कुछ कतिपय परिभाषाएं इस प्रकार हैं : –

डेविड हेल्ड के अनुसार – “राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से संबंधित और व्यापक अनुमानों का एक ऐसा ताना-बाना है जिसमें शासन, राज्य व समाज की प्रकृति व लक्ष्यों और मनुष्यों की राजनीति क्षमताओं का विवरण शामिल है |”

जॉन प्लेमेनेज के अनुसार – “एक सिद्धांत शास्त्री राजनीतिक शब्दावली का विश्लेषण और स्पष्टीकरण करता है | वह उन सभी अवधारणाओं की समीक्षा करता है जो राजनीतिक बहस के दौरान प्रयोग में आती हैं | सीमाओं के उपरांत अवधारणाओं के औचित्य पर भी प्रकाश डाला जाता है |”

🔹 उपर्युक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन के संपूर्ण ताने-बाने को व्यक्त करता है | इसमें राज्य, समाज और शासन की प्रकृति और लक्ष्यों पर प्रकाश डाला जाता है |

राजनीतिक सिद्धांत का कार्य क्षेत्र/ विषय-वस्तु

आज के युग में मनुष्य के जीवन का कोई भी भाग ऐसा नहीं है जो राजनीति से अछूता रह सके | उदारवादियों ने राज्य और राजनीति का संबंध केवल सरकार तथा नागरिकों तक ही सीमित रखा जबकि मार्क्सवादियो ने उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का स्वामित्व माना है | इस प्रकार अब राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो गया है | राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र अथवा विषय वस्तु को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है : –

1.राज्य तथा सरकार का अध्ययन

प्राचीन काल से ही राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र के बारे में विचार होता रहा है | राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई? उसका विकास कैसे हुआ? राज्य अथवा सरकार के क्या कार्य हैं? उसका गठन किस प्रकार से हो सकता है अथवा किस प्रकार से होना चाहिए आदि अनेक प्रश्नों पर विचार किया जाता रहा है | इसके अतिरिक्त मनुष्य के राज्य संबंधी विचारों में भी लगातार परिवर्तन होता आया है | स्पष्ट है कि राजनीतिक सिद्धांत का कार्य-क्षेत्र राज्य तथा सरकार का अध्ययन करना है |

2. सरकार का अध्ययन

सरकार ही राज्य का वह तत्व है जिसके द्वारा राज्य की अभिव्यक्ति होती है | अतः सरकार भी राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का क्षेत्र है | सरकार के तीन अंग हैं – विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका | राजनीतिक सिद्धांत इन तीनों के संगठन तथा कार्यों का अध्ययन करता है |

3. नीति-निर्माण करना

नीति निर्माण प्रक्रिया का राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में अध्ययन किया जाता है | इसके अंतर्गत सरकार के तीनों अंगों, राजनीतिक दलों के संगठन तथा नीतियों का अध्ययन किया जाता है | राजनीतिक दल तथा अन्य संस्थाओं ने क्या-क्या नीतियां अपनाई, इन नीतियों को किस प्रकार लागू किया जाता है ; यह भी राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का विषय-क्षेत्र है | इस प्रकार राजनीतिक सिद्धांत नीति निर्माण-प्रक्रिया का अध्ययन करता है और नीति-निर्माण प्रक्रिया में सहायक सिद्ध होता है |

4. व्यक्ति तथा राज्य के संबंधों का अध्ययन

राजनीतिक सिद्धांत राज्य के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करता है | मौलिक अधिकारों की अवधारणा इसी विचारधारा का परिणाम है | आधुनिक विचारक मानते हैं कि मौलिक अधिकार कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक हैं | इसके साथ-साथ राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत एक नागरिक के कर्तव्यों की आवश्यकता का भी अध्ययन किया जाता है | अतः राज्य और व्यक्ति के संबंधों का अध्ययन आवश्यक है जो राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत किया जाता है |

5. अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन

यातायात तथा संचार के साधनों के कारण आज संसार सिकुड़कर बहुत छोटा हो गया है | विश्व के सभी देश मानो एक दूसरे के बहुत करीब आ गए हैं | वैज्ञानिक उन्नति ने वैश्वीकरण की अवधारणा को सुदृढ़ किया है | सभी देशों के आपसी संबंध अब अनिवार्य रूप से आवश्यक हो गए हैं | सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं | कोई देश ऐसा नहीं है जो पूरी तरह से स्वावलंबी बन सके | यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय कानून, अंतरराष्ट्रीय संगठन, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का अध्ययन भी राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र है |

6. शक्ति सिद्धांत तथा क्षेत्रीय संगठनों का अध्ययन

राजनीतिक शास्त्र के आधुनिक विद्वानों ने शक्ति के सिद्धांतों को इस शास्त्र का मुख्य विषय माना है | राजनीति में सब कुछ शक्ति संघर्ष के कारण ही घटित होता है | इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय संगठनों जैसे सार्क, नाटो, सीटो, ब्रिक्स, यूरोपीय संसद आदि का अध्ययन भी इस क्षेत्र के अंतर आता है क्योंकि क्षेत्रीय संगठनों का प्रभाव भी संबंधित देशों की राजनीति पर पड़ता है |

7. स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय की अवधारणा का अध्ययन

स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के आदर्शों किसका अध्ययन करना उनकी समीक्षा करना उन आदर्शों को प्राप्त करने के लिए उपायों की विवेचना करना भी राजनीतिक शास्त्र का मुख्य विषय है ||इसमें विभिन्न विचारधाराओं जैसे – व्यक्तिवाद, आदर्शवाद, मानवतावाद, मार्क्सवाद, गांधीवादी, समाजवाद आदि का अध्ययन किया जाता है | स्वतंत्रता. समानता तथा न्याय की क्या परिभाषा हो? उनका क्या क्षेत्र हो? उनकी क्या सीमाएं हो तथा उनको किस प्रकार से राज्य लागू करें आदि सभी बातों का अध्ययन राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत किया जाता है |

8. नारीवाद का अध्ययन

इसमें कोई संदेह नहीं कि पारिवारिक मामलों में केवल एक सीमा तक ही सरकार का हस्तक्षेप होना चाहिए परंतु इसका मतलब यह भी नहीं कि सरकार इस ओर कोई ध्यान ही न दे | नारी केवल परिवार का एक अंग नहीं है बल्कि देश की एक महत्वपूर्ण नागरिक भी है | अत: नारी की दशा का अध्ययन तथा उससे संबंधित नीतियों का अध्ययन भी राजनीतिक सिद्धांत का मुख्य विषय है | नारीवाद भी अन्य विचारधाराओं की तरह एक प्रमुख विचारधारा है जिसका अध्ययन राजनीतिक सिद्धांत करता है |

9. मानव व्यवहार का अध्ययन

राजनीतिक विद्वानों ने राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिक शास्त्र का मुख्य विषय माना है | राजनीति मनुष्य-व्यवहार के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है | मनुष्य समाज में रहते हुए जो कुछ कार्यकलाप करता है वे सभी राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत आते हैं | अतः मानव-व्यवहार का अध्ययन भी राजनीतिक शास्त्र का एक अनिवार्य विषय है |

10. विकास, आधुनिकीकरण और समसामयिक समस्याओं का अध्ययन

विकास, आधुनिकीकरण तथा समसामयिक समस्याओं जैसे पर्यावरण प्रदूषण, आतंकवाद, कोविड-19 जैसी वैश्विक समस्याओं का अध्ययन भी राजनीतिक शास्त्र का क्षेत्र है | सभी नवीन विचारधाराएं इसी के अंतर्गत समाहित हैं क्योंकि सभी नवीन विचारधाराएं मानवीय व्यवहार के साथ-साथ राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करती हैं और भावी राजनीति के सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार करती हैं |

◼️ निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि राजनीतिक सिद्धांत का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है | जैसे-जैसे विश्व विकास की ओर बढ़ रहा है, जैसे-जैसे वैश्वीकरण सुदृढ़ हो रहा है, जैसे-जैसे सभी देश एक दूसरे के निकट आ रहे हैं, जैसे-जैसे विश्व की जनसंख्या बढ़ती जा रही है ; वैसे-वैसे बहुत सी समस्याएं, बहुत सी चुनौतियां, बहुत की आवश्यकताएं सामने आ रही हैं | इस प्रकार राजनीतिक शास्त्र का क्षेत्र भी निरंतर परिवर्तित और परिवर्द्धित होता जा रहा है |

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