राज्य : अर्थ, परिभाषा और अनिवार्य तत्व ( Rajya : Arth, Paribhasha aur Anivarya Tattv )

राज्य का अर्थ ( Meaning of State )

राज्य शब्द को अंग्रेजी भाषा में ‘स्टेट’ ( State ) कहा जाता है जो लैटिन भाषा के शब्द स्टेटस से बना है | स्टेटेस का अर्थ है – व्यक्ति का सामाजिक स्तर परंतु धीरे-धीरे इस शब्द का अर्थ बदलता गया और सिसरो के समय तक इसका अर्थ सारा समाज हो गया | आधुनिक अर्थ में इसका प्रयोग सर्वप्रथम मैक्यावली ने किया था |

राज्य की परिभाषाएं ( Definition of State )

1. अरस्तु ( Aristotle ) के अनुसार – “राज्य परिवारों और गांवों का एक ऐसा संघ है जिसका उद्देश्य एक पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति है |”

2. हालैंड ( Holand ) के अनुसार – “राज्य असंख्य व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो एक निश्चित प्रदेश में रहता है और एक वर्ग विशेष जिस पर शासन करता है |”

3. गार्नर ( Garner ) के अनुसार – “राज्य कम या अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो एक निश्चित प्रदेश पर रहता है, बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्र होता है और जिस पर एक ऐसी सरकार होती है जिसके आदेशों को अधिकतर जनता मानती हो |”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि राज्य लोगों का एक ऐसा संगठित समूह है जो निश्चित प्रदेश में रहता है, बाहरी नियंत्रण से पूर्णतया स्वतंत्र होता है तथा जिस पर जनता की अपनी सरकार होती है |

राज्य के अनिवार्य तत्व

(1) जनसंख्या – राज्य का सबसे अनिवार्य तत्व जनसंख्या है | लोगों के संगठित समूह से ही राज्य बनता है परंतु जनसंख्या कितनी हो इस विषय में विद्वानों की अलग-अलग राय है | यूनान के महान दार्शनिक प्लेटो ( Plato ) के अनुसार राज्य की जनसंख्या 5040 है परंतु उनके शिष्य अरस्तु का कथन है – “जनसंख्या न तो बहुत अधिक होनी चाहिए और न बहुत कम | यह आत्मनिर्भरता के लिए काफी होने चाहिए परंतु इतनी अधिक नहीं होनी चाहिए कि शासन ठीक ढंग से ने चलाया जा सके |”

रूसो ने सोशल कॉन्ट्रैक्ट पुस्तक में राज्य के लिए 10000 जनसंख्या को काफी बताया है परंतु हम देखते हैं कि वर्तमान में अनेक ऐसे देश हैं जिनकी संख्या बहुत कम है | जैसे – सैन मैरिनो और मोनोको | इसी प्रकार ऐसे राज्य भी हैं जिनकी जनसंख्या अरब से भी ऊपर है ; जैसे भारत व चीन | अत: हम कह सकते हैं कि जनसंख्या राज्य का एक अनिवार्य तत्व है परंतु इसकी संख्या कितनी होनी चाहिए यह अभी विवाद का विषय है |

(2) निश्चित भू-भाग – राज्य का दूसरा अनिवार्य तत्व है – निश्चित भू-भाग | इसका अर्थ यह है कि लोगों का संगठित समूह किसी निश्चित भू-भाग पर रहता हो | जब तक कोई मानव समाज एक निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता तब तक वह राज्य नहीं कहला सकता | उदाहरण के लिए खानाबदोश लोग जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं राज्य की स्थापना नहीं कर सकते | उदाहरण के लिए 1948 से पहले यहूदी लोग संसार के अनेक राज्यों में रहते थे | वे अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को भी मानते थे परंतु उन्हें राज्य नहीं माना जाता था | इसकी वजह यही थी कि उनका कोई निश्चित भूभाग नहीं था |

अब प्रश्न उठता है कि भू-भाग कितना हो | प्लेटो और अरस्तू छोटे आकार के राज्यों का समर्थन करते थे | बाद में रूसो ने भी इसी मत का समर्थन किया था परंतु आज के युग में यह कथन सही नहीं है | आज संसार में 40 वर्ग मीटर वाले सेन मेरिनो और 50 वर्ग मीटर वाले मोनाको जैसे राज्य हैं तो दूसरी तरफ रूस, अमेरिका, कनाडा, चीन और ब्राजील जैसे बड़े राज्य भी हैं जिनका क्षेत्रफल लाखों वर्ग किलोमीटर है | अतः स्पष्ट है कि राज्य का अनिवार्य तत्व है – निश्चित भूभाग | यह भू-भाग वर्तमान समय में बड़ा हो तो अच्छा है |

(3) सरकार – राज्य का तीसरा तथा अनिवार्य तत्व सरकार है | किसी निश्चित भू-भाग में रहने वाले लोगों के समूह को तब तक राज्य नहीं कहा जा सकता जब तक कि उनकी अपनी संगठित सरकार न हो | सरकार ही राज्य की इच्छा को व्यावहारिक रूप देती है |

गार्नर ( Garnar ) का कथन है – “सरकार के बिना जनता एक अराजक और असंगठित भीड़ बनकर रह जाएगी |”

अब प्रश्न यह उठता है कि सरकार किस प्रकार की हो | भारत, अमेरिका और ब्रिटेन आदि राज्यों में लोकतांत्रिक सरकारें हैं | कुछ समय पहले तक पूर्वी यूरोप के कुछ देशों और पुराने सोवियत संघ में कम्युनिस्ट दलों की तानाशाही सरकारें थी | स्पष्ट है कि सरकार राज्य का अनिवार्य तत्व है परंतु सरकारें अनेक प्रकार के हो सकती हैं लेकिन जिस सरकार को जनता का समर्थन प्राप्त होता है वही सरकार अधिक समय तक बनी रहती है अर्थात राज्य का अस्तित्त्व भी तभी तक बना रह सकता है जब तक जनता का समर्थन सरकार को प्राप्त हो |

(4) प्रभुसत्ता – राज्य का चौथा अनिवार्य तत्व है – प्रभुसत्ता | प्रभुसत्ता का अर्थ है – राज्य का पूरी तरह से स्वतंत्र होना | उस पर किसी बाहरी शक्ति का कोई नियंत्रण न होना अपने आंतरिक तथा बाहरी मामलों में निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह से स्वतंत्र हो | उस राज्य पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी अन्य राज्य का कोई दबाव न हो |

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यदि लोगों का एक संगठित समूह किसी निश्चित भू-भाग पर रह रहा है और उस पर उनकी अपनी सरकार है लेकिन तब भी उसे तब तक राज्य नहीं कहा जा सकता है जब तक कि उसके पास प्रभुसत्ता न हो | उदाहरण के लिए 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत के पास पर्याप्त जनसंख्या भी थी, निश्चित भू-भाग भी था, संगठित सरकार भी थी परंतु प्रभुसत्ता नहीं थी | अतः उसे राज्य नहीं माना जा सकता 15 अगस्त, 1947 को जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो भारत राज्य बन गया |

◼️ उपर्युक्त विवेचन के आलोक में हम कह सकते हैं कि राज्य के अनिवार्य तत्व -जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार और संप्रभुता हैं | इन चारों तत्वों का होना अनिवार्य है | हम किसी एक तत्व को सबसे अधिक महत्वपूर्ण नहीं मान सकते | निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि इन चारों तत्वों के संयोग से ही राज्य बनता है |