समानता : अर्थ, परिभाषा व रूप ( Equality : Meaning, Definition And Types )

समानता का अर्थ ( Meaning Of Equality )

सामान्य शब्दों में समानता ( Equality ) का अर्थ समान होने से है | सामान्य शब्दों में समानता का यही अर्थ लिया जाता है कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों को समान समझा जाए | लेकिन यह इसका संकुचित अर्थ है | इस प्रकार की समानता न तो संभव है और ना ही स्वीकार्य क्योंकि यह संभव नहीं है कि सभी लोगों को समान समझा जाए क्योंकि शारीरिक बनावट के आधार पर, अपनी योग्यताओं-क्षमताओं के आधार पर सभी व्यक्ति समान नहीं हो सकते | अपनी योग्यता, क्षमता और परिश्रम के आधार पर कुछ व्यक्ति विशेष उपलब्धि हासिल करते हैं | परिणामस्वरूप उन्हें विशेष मानदेय तथा विशेष सम्मान मिलना स्वाभाविक है | ठीक इसी प्रकार से कुछ व्यक्ति जन्म से विकलांग होते हैं | कुछ ऐसे वर्ग से संबंधित व्यक्ति होते हैं जो पीढ़ियों से दासता का शिकार रहे हैं | ऐसे लोगों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की आवश्यकता है ताकि वह समाज की मुख्यधारा में आ सकें | आरक्षण एक ऐसी ही व्यवस्था है जो समानता के सिद्धांत को खंडित नहीं करती बल्कि समानता के सिद्धांत को पुष्ट करने का प्रयास करती है |

वस्तुत: समानता एक ऐसा सिद्धांत है जो राज्य के सभी लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करता है |

समानता राजनीतिक सिद्धांत का एक आधारभूत सिद्धांत है | समानता प्रजातंत्र का एक मुख्य स्तंभ है और व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए परमावश्यक है | प्रत्येक युग में मनुष्य ने समानता के लिए संघर्ष किया है | समानता के महत्व को प्राचीन काल से ही विचारकों ने स्वीकार किया है परंतु भारत में धार्मिक भय का वातावरण उत्पन्न कर लम्बे समय तक असमानता के सिद्धाँत को प्रचलन में रखा गया | भक्ति काल में समानता की बात अवश्य कही गई परंतु व्यवहारिक रूप में समानता स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांत ब्रिटिश शासन काल में ही भारत में आए | वास्तव में लोकतंत्र की परिकल्पना भी संभवत: समानता के सिद्धांत के कारण ही हुई | मानव-सभ्यता का विकास समानता के सिद्धांत पर आधारित है |

समानता की परिभाषाएँ

समानता के अर्थ को समझने के लिए उसकी परिभाषाओं को जानना नितांत आवश्यक है : –

🔹 प्रोo लॉस्की के अनुसार – “समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्ति समान हैं | सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए |”

🔹 बार्कर के अनुसार – “समानता के सिद्धांत का अर्थ यह है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं मुझे प्राप्त हैं वही सुविधाएं उसी रूप में दूसरों को भी प्राप्त होंगी तथा जो अधिकार दूसरों को प्रदान किए गए हैं वह मुझे भी प्राप्त होंगे |”

समानता के प्रकार या रूप

विभिन्न राजनीतिक विचारक समानता के निम्नलिखित रुप स्वीकार करते हैं : –

1. आर्थिक समानता – आर्थिक समानता का अर्थ है कि लोगों में कोई आर्थिक भेदभाव न हो परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी व्यक्तियों के पास समान संपत्ति व समान धनराशि हो | इस प्रकार की समानता बिल्कुल असंभव है | इसका उद्देश्य यह है कि समाज में रहने वाले व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति में अंतर कम से कम हो और कोई भी व्यक्ति अपने धन और संपत्ति के स्वामित्व के आधार पर दूसरों का शोषण न कर सके | इससे पहले कि कोई व्यक्ति विलास सामग्री की बात सोचे, पहले सब की अनिवार्य आवश्यकताएं जैसे – रोटी, कपड़ा और मकान मूलभूत सुविधाएं पूरी होनी चाहिए | किसी भी व्यक्ति को दूसरों का शोषण करने के लिए संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है और ना ही इस प्रकार के हथकंडे अपनाने का कि दूसरे व्यक्ति आर्थिक संसाधन प्राप्त न कर सकें |

2. प्राकृतिक समानता – प्राकृतिक समानता का अर्थ है प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान पैदा किया है परंतु जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं कि यह विचार ठीक नहीं है | प्रकृति ने व्यक्तियों को समान पैदा नहीं किया | एक माता-पिता की संतान और जुड़वा भाई-बहन में भी पर्याप्त अंतर मिलता है | समानता का प्रयोग केवल इसी रूप में किया जा सकता है कि समाज द्वारा सभी व्यक्तियों को समान समझा जाना चाहिए और उनमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए | हां, प्राकृतिक समानता का यह अर्थ अवश्य ले सकते हैं कि प्रकृति अपने सभी संसाधन सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्रदान करती है, किसी व्यक्ति को छोटा या बड़ा नहीं समझती | इस आधार पर यह कहा जा सकता है की कुछ मूलभूत संसाधन सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होने चाहिए ताकि वे अपना विकास कर सकें | संसाधनों पर किसी विशेष व्यक्ति या विशेष वर्ग का एकाधिकार नहीं होना चाहिए |

3. नागरिक समानता – नागरिक समानता को कई बार कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है | इसका अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान होने चाहिए | किसी भी व्यक्ति के साथ उसके वंश, जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए और एक ही कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक ही जैसी सजा मिलनी चाहिए और एक ही प्रकार के कार्य करने वाले लोगों को एक जैसा मानदेय मिलना चाहिए |

4. सामाजिक समानता – सामाजिक समानता का अर्थ है – समाज के सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए तथा सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए | किसी भी व्यक्ति के प्रति समाज में ऊंच-नीच की भावना नहीं होनी चाहिए | किसी भी व्यक्ति के साथ जन्म, स्थान, जाति, रंग, नस्ल तथा संपत्ति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए | इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि लोगों में स्वयं समानता की भावना उत्पन्न हो क्योंकि इससे कानून के हाथ मजबूत होंगे और शीघ्र ही ऐसी को कुप्रथाएं जो असमानता को बढ़ावा देती हैं समाप्त हो जाएंगी | लोगों में ऐसी भावना का प्रचार करना भी एक अच्छे लोकतांत्रिक राज्य का कार्य है |

5. राजनीतिक समानता – राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों | किसी भी नागरिक को जाति, रंग, लिंग, संपत्ति तथा धर्म के आधार पर चुनाव लड़ने या मतदान के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए | इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को यदि वह योग्यता रखता है बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अवसर भी मिलना चाहिए | देश की सरकार यदि अपने कार्य को ठीक ढंग से नहीं करती और व्यक्तियों पर अत्याचार करती है तो प्रत्येक नागरिक को उसके विरुद्ध आवाज उठाने अर्थात उसकी आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए | कुछ राज्यों में स्त्रियों को मताधिकार से वंचित रखा जाताा था | समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए वहां की महिलाओं को लंबा संघर्ष करना पड़ा | नए संविधान के अनुसार भारत में वयस्क मताधिकार चुनाव प्रणाली को अपनाया गया है जो सभी नागरिकों को समान रूप से राजनीतिक अधिकार प्रदान करती है |

◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि समानता लोकतंत्र का आधार स्तंभ है | जिस प्रकार से स्वतंत्रता मनुष्य का मूलभूत अधिकार है ठीक उसी प्रकार से समानता भी मूलभूत अधिकारों की श्रेणी में आता है | प्रत्येक व्यक्ति को अपना सर्वांगीण विकास करने के लिए स्वतंत्रता के साथ-साथ समानता की भी आवश्यकता होती है क्योंकि जब वह अन्य लोगों की तरह समान सुविधाएं का अधिकारी होगा तभी वह अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास कर पाएगा | समानता व स्वतंत्रता जैसे मूलभूत सिद्धांतों से युक्त राज्य ही वास्तव में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना कर सकता है |

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