अंत:दृष्टि या सूझबूझ का सिद्धांत या गेस्टाल्टवाद ( Antahdrishti Ya Sujhbujh Ka Siddhant Ya Gestaltvad )

अंत:दृष्टि या सूझबूझ का सिद्धांत या गैस्टॉटवाद

( Anthdrishti ya Sujhbujh Ka Siddhant Ya Gestalt Theory )

◼️ गेस्टाल्ट ( Gestalt ) का अर्थ है – समग्र रूप |  इसका अर्थ है कि व्यक्ति किसी वस्तु या अवधारणा को आंशिक रूप से नहीं बल्कि पूर्ण रूप से सीखता है। अतः इसे संपूर्णवाद या  पूर्णाकारवाद की कहा जाता है |
◼️ इस सिद्धांत का जन्मदाता जर्मनी का मनोवैज्ञानिक वर्दीमर
(  Max Wertheimer ) माना जाता है |  इस सिद्धांत को आगे बढ़ाने में कोफ्का ( Koffka ) और कोहलर (Kohler)  ने महती भूमिका निभाई |
◼️ इस सिद्धांत के मूल में अंत:दृष्टि या सूझबूझ विद्यमान रहती है | अंत:दृष्टि का अर्थ है – किसी समस्या को गहराई से देखना व समझना |
◼️ इस सिद्धांत में प्रत्यक्षीकरण पर अधिक बल दिया जाता है व्यक्ति किसी वस्तु का पूर्ण रूप से प्रत्यक्षीकरण (Perception ) करता है न कि भागों में | 
◼️ कोहलर ( Kohlar ) और कोफ्का ( Kofka )  इस परिणाम पर पहुंचे कि व्यक्ति किसी समस्यात्मक परिस्थिति का सूझबूझ या अंत:दृष्टि से समाधान निकालता है | 

   कोहलर के प्रयोग  ( Kohler’s Experiments )

 कोहलर ने 1913 ईस्वी से 1917 ईस्वी तक बर्लिन विश्वविद्यालय में एक चिंपैंजी पर प्रयोग किए जिसका नाम सुल्तान था |  उसने निम्नलिखित प्रयोग किए :-

 प्रयोग 1. 

 एक पिंजरे में सुल्तान को बंद किया | पिंजरे  के बाहर कुछ केले रखे | पिंजरे में एक छड़ी रखी गई | चिंपैंजी ने छड़ी की सहायता से केलों को प्राप्त किया |

 प्रयोग 2. 

    अब केलों को पिंजरे से थोड़ी अधिक दूर रखा गया | पिंजरे में एक छड़ी के स्थान पर दो छड़ियाँ रखी जो एक दूसरे में फिट हो सकती थी |  दोनों छड़ियों को जोड़कर (शायद अनायास )  चिंपैंजी ने केलों को प्राप्त कर लिया |

 प्रयोग 3.

        इस बार केलों को पिंजरे की छत पर लटका दिया गया तथा छड़ी के स्थान पर पिंजरे में एक बक्से को रख दिया गया |  चिंपैंजी ने कोने में रखे बॉक्स को खींचा और उस पर चढ़कर केलों को प्राप्त कर लिया |

 प्रयोग 4.

       इस बार कोहलर ने परिस्थिति को थोड़ा और कठिन बना दिया | इस बार केलों को थोड़ा और अधिक ऊंचाई पर लटका दिया गया | पिंजरे में दो बॉक्स रख दिए गए |  चिंपैंजी (सुल्तान) ने दोनों बॉक्स को एक दूसरे के ऊपर रखा और केलों  को प्राप्त कर लिया | 
◼️ इन सभी प्रयोगों से कोहलर ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति अंत:दृष्टि द्वारा सीखता है | कोहलर ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि व्यक्ति वातावरण के उद्दीपनों द्वारा परिस्थितियों का प्रत्यक्षीकरण भिन्न-भिन्न रूप से न करके संगठित रूप में  करता है |

 अंतर्दृष्टि या गैस्टॉटवाद द्वारा सीखने के मूल तत्व / विशेषताएं 

👉 संपूर्ण इकाई का बोध – इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए स्थिति को संपूर्ण इकाई के रूप में समझना आवश्यक होता है |
👉 स्पष्ट लक्ष्य – सीखने का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए | 
👉 सामान्यीकरण की शक्ति – सीखने वाले व्यक्ति में सामान्यीकरण ( Generalization )  की शक्ति होनी चाहिए |
👉 समाधान का अचानक सूझना – अंत:दृष्टि के अंतर्गत अचानक समाधान सूझता है | इसमें लंबे समय तक चिंतन की आवश्यकता नहीं पड़ती | 

👉 वस्तुओं का नया रूप – अंत:दृष्टि के सिद्धांत में समस्याएं या स्थिति से जुड़ी वस्तुएं नए रूप में दिखाई देने लगती हैं |

👉 ज्ञान का स्थानांतरण – अंत:दृष्टि  के माध्यम से ज्ञान का स्थानांतरण संभव है अर्थात एक स्थिति में सीखी हुई बात का दूसरी स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है | 
👉 व्यवहार में परिवर्तन – अंत:दृष्टि द्वारा सीखी हुई बात से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है | 

     अंत:दृष्टि निर्माण के नियम या विशेषताएं

( Characteristics of Gestalt Theory )

1️⃣ क्षमता – अंत:दृष्टि शारीरिक व मानसिक क्षमता पर निर्भर करती है |  यह क्षमताएं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती हैं | 
2️⃣ पूर्व अनुभव – संबंधित पूर्व अनुभव भी अंत:दृष्टि को प्रभावित करता है | 
3️⃣ तत्पर आवृत्ति – अंत:दृष्टि के माध्यम से जो भी समस्या का समाधान ढूंढा जाता है, वह कभी भूलता नहीं | उसे बार-बार दोहराया जाता है | 
4️⃣ नई स्थिति में उपयोग – अंत:दृष्टि द्वारा अर्जित अधिगम को किसी नई स्थिति में भी प्रयोग किया जा सकता है | 
5️⃣ भटकाव व खोज – भटकाव व खोज भी अंत:दृष्टि के निर्माण में सहायक हैं |
6️⃣ संपूर्ण अनुभव – अंत:दृष्टि द्वारा अर्जित अनुभव स्वयं में पूर्ण होता है |उसमें अधूरापन नहीं होता | 

 अंतर्दृष्टि या सूझबूझ के सिद्धांत की शैक्षिक उपयोगिता

( Antahdrishti Ya Sujhbujh Ya Gestaltvad ki Shaikshik Upyogita )

 गैस्टॉटवाद की शैक्षिक उपयोगिता निम्नलिखित बिंदुओं में समझी जा सकती है – 
👉 अंत:दृष्टि का विकास
👉 एकीकृत पाठ्यक्रम पर जोर अर्थात सभी विषयों में परस्पर तालमेल होना चाहिए 
👉 कल्पना, तर्क व चिंतन के विकास में सहायक
👉 विषयों व अनुभवों में संबंध
👉 ‘पूर्ण’ अंगों का योग नहीं है 
👉 पूर्व अनुभवों का महत्व
👉 अभिप्रेरणा का महत्व
👉 कठिन विषयों के लिए उपयोगी
👉 पूर्ण समस्या का ज्ञान
👉 बुद्धि का उपयोग

 प्रयास एवं भूल विधि तथा अंत:दृष्टि सिद्धांत में अंतर

Difference Between Trial and Error Theory And Gestalt Theory 

1️⃣ प्रयास एवं भूल विधि का प्रतिपादन अमेरिकी वैज्ञानिक थार्नडाइक ( Thorndike ) ने 1898 में किया था जबकि अंत:दृष्टि सिद्धांत या सूझबूझ के सिद्धांत का प्रतिपादन 1917 ईस्वी में जर्मन मनोवैज्ञानिक कोहलर ( Kohler ) ने किया | 
2️⃣ प्रयास एवं भूल विधि में अधिगम की गति धीमी होती है जबकि अंत:दृष्टि या सूझ बूझ के सिद्धांत में अधिगम अपेक्षाकृत अधिक तेजी से और अचानक होता है | 
3️⃣ प्रयास एवं भूल विधि प्रयास पर निर्भर है जबकि सूझबूझ विधि अंत:दृष्टि और सूझबूझ पर आधारित है | 
4️⃣ प्रयास एवं भूल विधि में उच्च बौद्धिक क्षमताओं व योग्यताओं की भूमिका नहीं जबकि अंत:दृष्टि सिद्धांत में उच्च बौद्धिक योग्यताओं की महत्त्वपूर्ण  भूमिका होती है |
5️⃣ प्रयास एवं भूल विधि सभी के लिए उपयोगी है जबकि अंत:दृष्टि सिद्धांत केवल उच्च श्रेणी के जीवो के लिए उपयोगी है | 
6️⃣ प्रयास एवं भूल विधि में शारीरिक कुशलता का अधिक महत्व है जबकि अंत:दृष्टि सिद्धांत या गेस्टाल्टवाद में बौद्धिक कुशलता का अधिक महत्व है | 
7️⃣ प्रयास एवं भूल विधि परिश्रम और लगन पर आधारित है जबकि गेस्टाल्टवाद पूरी तरह से अंत:दृष्टि और सूझबूझ पर आधारित है | 
8️⃣ प्रयास एवं भूल विधि संवेदना व गत्यात्मक समन्वय पर आधारित है जबकि अंत:दृष्टि या सूझबूझ का सिद्धांत प्रत्यक्षीकरण ( Perception ) पर आधारित है | 
9️⃣ प्रयास एवं भूल विधि में अधिगम ( Learning ) का स्थानांतरण नहीं होता जबकि अंतर्दृष्टि सिद्धांत में अधिगम का स्थानांतरण संभव है| 

        अंत:दृष्टि ( Gestalt Theory ) सिद्धांत की सीमाएं ( कमियां ) 

 ( Limitations of Antahdrishti Siddhant )

👉 बच्चे और पशु इस सिद्धांत की सहायता से नहीं सीख सकते | 
👉 इस विधि में प्रयास और भूल विधि का भी प्रयोग होता है |
👉 केवल अंत:दृष्टि  से ही नहीं सीखा जा सकता | सीखने में प्रयास का भी महत्वपूर्ण स्थान है | 
👉 बच्चों का अधिगम अनुभव पर बहुत अधिक सीमा तक निर्भर करता है |
👉 मंदबुद्धि बालकों के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है |
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