औपनिवेशिक भारत में शिक्षा ( Education In British India )

         ⚫️औपनिवेशिक भारत में शिक्षा ⚫️
            ( Education In British India )
 
1830 के दशक में तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने बंगाल तथा बिहार की स्कूली शिक्षा के अध्ययन हेतु एक ईसाई प्रचारक व शिक्षाविद विलियम ऐडम ( William Adam )  को नियुक्त किया एडम ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की उसके मुख्य बिंदु इस प्रकार थे :1. ब्रिटिश अधीनता से पूर्व भारत की शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित थी | आधुनिक शिक्षा संस्थाओं के विपरीत उस समय छोटी-छोटी पाठशालाएं होती थी जहां स्थानीय शिक्षक या गुरु द्वारा बच्चों को संस्कृत व्याकरण, प्रायोगिक गणित, महाजनी खाता आदि के बारे में पढ़ाया जाता था |

 

2. यह पाठशालाएं  प्रायः किसी मंदिर,  चौपाल, किसी शिक्षक के घर, किसी वृक्ष के नीचे या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर चलती थी | पाठशाला में कुल 10- 20 विद्यार्थी ही होते थे और फसलों की कटाई के मौसम में पाठशालाएं  बंद रहती थी |
3. शिक्षक या गुरु की फीस निर्धारित नहीं थी | गरीब बच्चों से कम तथा आर्थिक रूप से सक्षम छात्रों से अधिक फीस ली जाती थी उस समय अलग-अलग कक्षाएं नहीं चलती थी
बल्कि सभी छात्र एक ही जगह साथ साथ बैठते थे और विभिन्न स्तर के विद्यार्थियों को शिक्षक अलग-अलग पढ़ाते थे |परन्तु कुछ  जातियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था |

 प्राच्यवादी तथा पाश्चात्यवादी विवाद 
( Orientalist and Westernist Dispute )

◼️ ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु प्रारंभ में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई लेकिन भारत में बढ़ते साम्राज्य तथा राजनीतिक शक्ति के कारण उसे एक ऐसे वर्ग की आवश्यकता थी जो कि प्रशासन और व्यापार के कार्यों में उसकी सहायता कर सके | इसके लिए वर्ष 1813 में ब्रिटेन की संसद द्वारा पारित चार्टर अधिनियम (Charter Act-1813) में भारत की शिक्षा के विकास हेतु प्रति वर्ष एक लाख रुपये  खर्च करने का प्रावधान रखा गया | चार्टर एक्ट 1813 द्वारा निर्दिष्ट शिक्षा हेतु अनुदान के विषय पर कंपनी प्रशासन में मतभेद उत्पन्न हुआ कि भारत में शिक्षा का प्रारूप तथा माध्यम कैसा हो इस मतभेद में दो पक्ष थे :- एक पक्ष प्राचीवादियों ( Orientalists ) का था जो मानते थे कि भारत में पारंपरिक शिक्षा व ज्ञान को प्रोत्साहन देना चाहिए एवं शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषाएं होनी चाहिए जबकि दूसरा पक्ष पाश्चात्यवादियों ( Westernists / Anglicist )  का था जो मानता था कि शिक्षा व्यावहारिक तथा उपयोगी होनी चाहिए और शिक्षा का माध्यम इंग्लिश होना चाहिए | प्राचीवादियों में विलियम जॉन्स,  जेम्स प्रिंसेप,  चार्ल्स विल्किन्स , एच एच विल्सन आदि शामिल थे जबकि पाश्चात्यवादी शिक्षा के समर्थन में मैकाले, जेम्स मिल,  चार्ल्स ग्रांट,  विलियम विलबरफोर्स आदि शामिल थे |
◾️ जेम्स मिल ( James Mill ) उपयोगितावादी विचारक था तथा उसका मानना था कि अंग्रेजों को भारतीय जनता को खुश करने या उनकी भावनाओं को ध्यान में रखकर शिक्षा नहीं देनी चाहिए बल्कि शिक्षा के माध्यम से उन्हें उपयोगी तथा व्यवहारिक ज्ञान देना चाहिए जिसमें पश्चिमी विज्ञान, तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा शामिल हो |
◾️ मैकाले ( Macaulay ) प्राच्य-शिक्षा का घोर विरोधी था और शिक्षा के बारे में उसका कथन था कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय का केवल एक शेल्फ भारत और अरब के समूचे साहित्य के बराबर है |
◾️ इस विवाद के बावजूद पाश्चात्यवादी शिक्षा के समर्थकों की बात भारत परिषद ने स्वीकार कर ली तथा अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 ( English Education Act -1835) पारित किया गया इसके बाद भारत में अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम हेतु औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया |

मैकाले का स्मरण पत्र  ( Macaulay’s Minute )

लॉर्ड मैकाले वर्ष 1834 में भारत आया तथा उसे गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के विधि सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया | उसकी नियुक्ति सार्वजनिक शिक्षा समिति के अध्यक्ष पद पर कर दी गई जिसका कार्य प्राच्यवादी तथा पाश्चात्यदी विवाद पर मध्यस्थता करना था | वर्ष 1835 में लॉर्ड मैकाले ने अपना प्रसिद्ध स्मरण पत्र गवर्नर जनरल की परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे लॉर्ड विलियम बेंटिक ( Lord William Be
Bentinck ) ने स्वीकार करते हुए अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 पारित कर दिया |
◾️ मैकाले  के स्मरण पत्र के  मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे:
▪️ इसके तहत पाश्चात्य शिक्षा का समर्थन करते हुए यह प्रावधान किया गया कि सरकार के सीमित संसाधनों का प्रयोग पश्चिमी विज्ञान तथा साहित्य के अंग्रेजी में अध्यापन हेतु किया जाए |
▪️ सरकारी स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो |
▪️ मैकाले ने इसके तहत अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत ( Downward Filteration Theory ) दिया जिसके तहत भारत के उच्च तथा मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो रंग और खून से भारतीय हो लेकिन विचारों, नैतिकता तथा बुद्धिमता में ब्रिटिश हो | यह वर्ग सरकार तथा आम जनता के मध्य एक कड़ी का कार्य कर सके और इनके माध्यम से उनमें भी पाश्चात्य शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न हो |

🔷 जेम्स थॉमसन के प्रयास ( James Thomson )

ब्रिटिश भारत के पश्चिमोत्तर प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थॉमसन ने स्थानीय भाषा में ग्रामीण शिक्षा के विकास हेतु एक व्यापक योजना लागू की | इसके तहत मुख्य रूप से प्रायोगिक विषयों जैसे क्षेत्रमिति, कृषि विज्ञान आदि पढ़ाया जाता था | जेम्स थॉमसन के प्रयासों का मुख्य उद्देश्य नए स्थापित हुए राजस्व तथा लोक निर्माण विभाग हेतु कर्मचारियों की आवश्यकता को पूरा करना था |

🔷 वुड्स डिस्पैच ( Wood’s Dispatch )

चार्ल्स वुड ( Charles Wood ) ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष थे |भारत में शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ( Lord Dalhausie )  द्वारा लागू किया गया |
▪️ इसके तहत प्रावधान किया गया कि जनसामान्य तक शिक्षा के प्रसार की जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी | इसके माध्यम से अधोगामी निस्पंदन ( Downward Filteration Theory ) के सिद्धांत का विरोध किया गया |
▪️ इसने देश में विद्यमान शिक्षा पद्धति को सुव्यवस्थित करने हेतु प्राथमिक शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा को,  माध्यमिक शिक्षा हेतु एंग्लो-वर्नाकुलर तथा उच्च शिक्षा हेतु अंग्रेजी भाषा को माध्यम बनाया |
▪️ इसने पहली बार महिला शिक्षा हेतु प्रयास किया |
▪️ इसके द्वारा व्यवसायिक शिक्षा तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु प्रावधान किए गए |
▪️ इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि सरकारी संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा धर्मनिरपेक्ष हो |
▪️ इसके तहत निजी विद्यालयों को प्रोत्साहन हेतु अनुदान का प्रावधान भी किया गया |
▪️ इसके तहत भारत के सभी राज्यों में शिक्षा विभाग की स्थापना का निर्देश दिया गया |
▪️ इस अधिनियम के परिणाम स्वरूप देश के तीन प्रेसीडेंसियों ( बंगाल, मद्रास तथा बॉम्बे ) में एक-एक  विश्वविद्यालय स्थापित किया गया |

🔷 हंटर आयोग -1882-83 ( Hunter Commission-1882-83 )

यद्यपि वुड्स डिस्पैच ने देश के उच्च शिक्षा के लिए प्रयास किए लेकिन प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया | प्रत्येक राज्य में शिक्षा के विभाग की स्थापना से प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा की जिम्मेदारी भी राज्यों पर आ गई | परंतु उसके लिए उनके पास संसाधनों की कमी थी|
▪️ वर्ष 1882 में सरकार ने डब्लू डब्लू हंटर ( W.W. Hunter ) की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसका कार्य है वुड्स डिस्पैच के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का मूल्यांकन करना था |
हंटर आयोग के मुख्य सुझाव प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा से संबंधित थे जो कि इस प्रकार थे :
▪️ इसके तहत इस बात पर जोर दिया गया कि राज्य प्राथमिक शिक्षा के विस्तार तथा विकास हेतु विशेष कार्य करें और प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषा हो |
▪️ इसके द्वारा यह अनुशंसा की गई कि प्राथमिक शिक्षा का नियंत्रण स्थापित जिला तथा नगरपालिका बोर्डों को दिया जाए |
▪️ इसके द्वारा अनुशंसा की गई कि माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत दो शाखाएं हो-साहित्यिक व व्यावसायिक | साहित्यिक शिक्षा के बाद विद्यार्थी विश्वविद्यालय शिक्षा की तरफ जाएं तथा व्यावसायिक शिक्षा के बाद विद्यार्थी रोजगार प्राप्त करें |
▪️ इसके माध्यम से तत्कालीन समय में महिला शिक्षा में विद्यमान संरचनात्मक कमियों को उजागर किया गया तथा उसकी भरपाई हेतु व्यापक प्रयास के सुझाव प्रस्तुत किए गए |
हंटर आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद अगले दो दशकों तक देश में शिक्षा का उल्लेखनीय विकास हुआ तथा पंजाब विश्वविद्यालय  (1882) और इलाहाबाद विश्वविद्यालय ( 1887 ) की स्थापना हुई |

🔷 भारतीय विश्वविद्यालय आयोग-1904 (Indian University  Act-1904 )

▪️ बीसवीं सदी के उदय के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल व्याप्त था | प्रशासन का मानना था कि निजी प्रबंधन की वजह से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई तथा उच्च शैक्षणिक संस्थान राजनीतिक क्रांतिकारियों के उत्पादन-केंद्र  बन गए हैं | इसके विपरीत राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञों का मानना था कि सरकार देश में निरक्षरता को कम करने तथा शिक्षा के विकास हेतु कोई प्रयास नहीं कर रही है |
▪️ वर्ष 1902 में सरकार ने रैले आयोग ( Raleigh Commission ) का गठन किया जिसका कार्य भारत के विश्वविद्यालयों की दशा का अध्ययन करना तथा उनकी स्थिति में सुधार हेतु सुझाव देना था |
▪️ रैले आयोग की अनुशंसा के आधार पर सरकार ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम-1904 पारित किया |
इस अधिनियम के  मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे :
🔹 विश्वविद्यालयों में शिक्षा तथा शोध पर अधिक बल दिया जाए|
🔹 विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों की संख्या तथा उनके कार्यकाल को कम किया गया अधिकांश शोधार्थियों को सरकार द्वारा नामित किया जाने लगा |
🔹 सरकार को विश्वविद्यालयों के सीनेट के विनियमों को वीटो करने का अधिकार प्राप्त हो गया और सरकार उनके द्वारा बनाए गए नियमों को बदल सकती थी या स्वयं द्वारा निर्मित नियम लागू कर सकती थी |
🔹 विश्वविद्यालयों से निजी कॉलेजों को संबंधित करने की प्रक्रिया को कठिन कर दिया गया |
🔹 उच्च शिक्षा तथा विश्वविद्यालयों के विकास हेतु प्रति वर्ष 5 लाख रुपये  के हिसाब से 5 वर्षों तक अनुदान देने का प्रावधान किया गया |

🔷 सैडलर विश्वविद्यालय आयोग-1917-19 ( Saddler University Commission )

सैडलर आयोग का गठन कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन तथा उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए किया गया था लेकिन इसके सुझाव देश के सभी विश्वविद्यालयों पर लागू हुए थे |
▪️ इसके अनुसार सुझाव दिया गया कि स्कूली पाठ्यक्रम 12 वर्षों का होना चाहिए विश्वविद्यालयों में इंटरमीडिएट स्तर के बाद विद्यार्थी प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं |
ऐसा करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे :
🔹 विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा हेतु विद्यार्थियों को तैयार करना |
🔹स्कूलों में इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा देने से विश्वविद्यालयों को राहत देना|
🔹 उन विद्यार्थियों को कॉलेज की शिक्षा प्रदान करना जो कि विश्वविद्यालयों में नहीं जाना चाहते |
🔹 विश्व विद्यालय केवी नियमों के निर्माण में लचीलापन बनाए रखना |
🔹 विश्वविद्यालय को एक केंद्रीकृत आवासीय शिक्षण प्रदान करने के लिए स्वायत्त निकाय के तौर पर बनाया जाए न कि कई कॉलेजों को संबद्ध कर विस्तृत किया जाए |
🔹 महिला शिक्षा, प्रायोगिक विज्ञान,  तकनीकी शिक्षा तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु प्रयास किए जाएं |
वर्ष 1916 से वर्ष 1921 के दौरान भारत में 7 नए विश्वविद्यालयों मैसूर,  पटना, बनारस, अलीगढ़, ढाका,  लखनऊ, तथा ओस्मानिया विश्वविद्यालय की स्थापना हुई |

🔷 हर्टोग समिति 1929 ( Hartog Committee )

हर्टोग समिति का गठन विभिन्न स्कूलों तथा कॉलेजों के द्वारा शिक्षा के मानकों का पालन न करने के कारण किया गया था | इसका कार्य शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट तैयार करना था |
हर्टोग  समिति ने निम्नलिखित अनुशंसाएं प्रस्तुत की :
▪️ प्राथमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए लेकिन इसके लिए जल्दबाजी में इसका विस्तार तथा अनिवार्यता ने बनाई जाए |
▪️ ऐसी व्यवस्था बनाई जाए ताकि केवल पात्र विद्यार्थी की हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट मैं प्रवेश लें जबकि औसत विद्यार्थी व्यावसायिक शिक्षा में प्रवेश प्राप्त करें |
▪️ विश्वविद्यालयी  शिक्षा का स्तर उठाने के लिए आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में प्रवेश को नियंत्रित किया जाए |

🔷 शिक्षा पर सार्जेंट योजना 1944 (  Sergeant Plan On Education ) :
सर जॉन सार्जेंट सरकार के शैक्षिक सलाहकार थे | उनकी अध्यक्षता में 1944 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन के द्वारा सार्जेंट योजना प्रस्तुत की गई जिसके मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे जिसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे :
▪️ 3-6 वर्ष के आयु समूह के लिए पूर्व प्राथमिक शिक्षा |
▪️ 6-11 वर्ष के आयु वर्ग के लिए निशुल्क सार्वभौमिक और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा |
▪️ 11-17 वर्ष आयु-समूह के कुछ चयनित बच्चों के लिए हाई स्कूल शिक्षा और उच्च माध्यमिक शिक्षा के बाद 3 वर्ष का विश्वविद्यालयी  पाठ्यक्रम |
▪️ हाईस्कूल स्तर की शिक्षा दो प्रकार की हो :- शैक्षणिक  तथा तकनीकी व व्यावसायिक |
▪️ तकनीकी वाणिज्यिक और कला संबंधी शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन |
▪️ 20 वर्षों में वयस्क निरक्षरता को समाप्त करना |
▪️ शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांगों के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण,  पर जोर देना |
सार्जेंट योजना का उद्देश्य आगामी 40 वर्षो के अंदर ब्रिटेन में प्रचलित शिक्षा स्तर को भारत में लागू करना था हालांकि यह एक विस्तृत योजना थी लेकिन इसके क्रियान्वयन हेतु कोई योजना नहीं बनाई गई थी | इसके अलावा इस योजना को लागू करने के लिए ब्रिटेन की तुलना में भारतीय परिस्थितियां भिन्न थी |

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