भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार

भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार

भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति का है, जिसका आधार उत्तर की ओर है और शीर्ष दक्षिण में कन्याकुमारी द्वारा बनाया जाता है। इसकी उत्तरी सीमा एक अनियमित रेखा है, जो कच्छ से अरावली पर्वत के पश्चिम छोर को छूती हुई दिल्ली के निकट पहुँचती है। इसके बाद यह यमुना तथा गंगा के समानान्तर होती हुई राजमहल की पहाड़ियों तथा गंगा के डेल्टा तक चली जाती है।

यह प्रायद्वीपीय पठार तीन ओर से पर्वतों द्वारा घिरा है। इसके उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल, सतपुड़ा, भारनेर, कैमूर व राजमहल की पहाड़ियाँ, पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्व में पूर्वी घाट हैं। 22° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में पश्चिमी एवं पूर्वी घाट के बीच इसकी चौड़ाई 1400 किमी. है।

इस प्रकार प्रायद्वीपीय पठार 16 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और भारत का सबसे बड़ा भौतिक प्रदेश हैं। इस विस्तृत पठार के अन्तर्गत दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्यों के भू-भाग आते है।

मेघालय में मेघालय-पठार भी प्रायद्वीपीय पठार का ही उत्तरपूर्वी अग्र भाग है। सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठार गोंडवानालैंड का एक भाग है, जिसकी औसत ऊँचाई 600 से 900 मीटर है।

प्रायद्वीपीय पठार की प्रसिद्ध नदियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी हैं | इन नदियों की प्रवाह-दिशा से इस बात का प्रमाण मिलता है कि इस पठार का सामान्य ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है। नर्मदा तथा तापी नदियाँ पश्चिमी दिशा में बहती हैं। अतः पठार के इस भाग का ढाल पूर्व से पश्चिम की ओर है।

प्रायद्वीपीय पठार के भाग

यह पठार काफी कटा-फटा है, जिसमें कई धरातलीय जटिलताएँ पाई जाती हैं। यहाँ कई पहाड़ियाँ तथा नदियाँ स्थित हैं, जिन्होंने इस पठार को कई छोटे-छोटे पठारों में बाँट रखा है। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है : —

(1) मालवा का पठार (Malwa Plateau)

यह पठार नर्मदा एवं तापी नदियों तथा विन्ध्यांचल पर्वत के उत्तर-पश्चिम में त्रिभुजाकार आकृति में विस्तृत है। इसके उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वत तथा उत्तर-पूर्व में गंगा का मैदान स्थित है।

यह ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों का बना हुआ है। इसकी ऊँचाई लगभग 800 मीटर है। इसका सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व दिशा में है। अतः इस पठार में बहने वाली नदियाँ उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होकर यमुना नदी में जा मिलती है।

इन नदियों के प्रवाह के कारण यह पठार अनेक स्थानों पर ऊबड़-खाबड़ बन गया है तथा बड़े-बड़े बीहड़ खड्ड (Ravines) पाए जाते हैं। चम्बल नदी द्वारा निर्मित इसी क्षेत्र की चम्बल घाटी एक बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में बीहड़ के रूप में प्रसिद्ध है। ये बीहड़ कृषि के लिए अयोग्य होते हैं। बुन्देलखंड, रूहेलखंड तथा छोटानागपुर इस पठार के पूर्वी विस्तार है।

(2) दक्षिण का पठार अथवा दक्कन ट्रेप

यह पठार तापी नदी के दक्षिण में त्रिभुजाकार रूप में फैला हुआ है। उत्तर-पश्चिम में सतपुड़ा एवं विन्ध्याचल, उत्तर में महादेव तथा मैकाल, पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट इसकी सीमाएं बनाते हैं।

यह पठार मुख्यतः लावा से बना हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर हैं। दक्षिण में यह पठार 1,000 मीटर ऊँचा है, परंतु उत्तर में इसकी ऊँचाई केवल 500 मीटर ही है। लगभग दो लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस विशाल पठार की ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है।

महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियाँ पश्चिम से पूर्व की दिशा में प्रवाहित होती हैं। इन नदियों ने अपनी घाटियों को काफी गहरा कर दिया है और समूचे दक्षिण पठार को कई छोटे-छोटे पठारों में विभक्त कर दिया है। जैसे- महाराष्ट्र का पठार, आंध्र का पठार तथा कर्नाटक का पठार।

(3) छोटानागपुर का पठार

यह झारखंड में स्थित है। इसके उत्तर-पश्चिम में सोन नदी बहती हुई गंगा में मिलती है। राजमहल की पहाड़ियाँ इसकी उत्तरी सीमा बनाती है। दामोदर नदी छोटानागपुर पठार की प्रमुख नदी है। यह नदी इस पठार के मध्य भाग में भ्रंश घाटी में से गुजरती हुई पश्चिम-पूर्व दिशा में बहती है। यहाँ पर गोंडवाना युग का कोयला प्राप्त होता है | यह कई छोटे-छोटे पठारों में बँटा हुआ है। उत्तर में हजारीबाग पठार तथा दक्षिण में रांची का पठार प्रमुख हैं।

(4) मेघालय पठार

प्रायद्वीपीय पठार की चट्टानें पूर्व की ओर राजमहल की पहाड़ियों से परे भी विस्तृत हैं और उत्तर-पूर्व में मेघालय पठार का निर्माण करती हैं । इसे शिलांग का पठार भी कहते हैं। मेघालय पठार भारत के मुख्य पठार से निम्न काँप के मैदान द्वारा अलग किया जाता है।

इसे गारो-राजमहल खड्ड (Garo Rajmahal Gap) कहते हैं। इस खड्ड का निर्माण भू-पृष्ठों में भ्रंश पड़ने से हुआ था, जिसे गंगा नदी ने अपने निक्षेप द्वारा भर दिया।

इस पठार के पश्चिमी भाग में गारो पहाड़ियाँ, मध्यवर्ती भाग में खासी-जयंतिया तथा पूर्वी भाग में मिकिर पहाड़ियाँ हैं। गारो की औसत ऊँचाई 900 मीटर है।

यहाँ पर सबसे ऊँचा स्थान नॉकरेक (Nokrek) है, जो 1,412 मीटर ऊँचा है। खासी-जयंतिया पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 1,500 मीटर है। खासी पहाड़ियों का मध्यवर्ती भाग एक मेज की भांति है।

जहाँ पर शिलांग नगर स्थित है। मेघालय पठार का यह भाग सबसे ऊँचा है। इस पठार का उत्तरी ढाल बहुत तीव्र है, जहाँ पर ब्रह्मपुत्र नदी बहती है। इसका दक्षिणी ढाल मंद है और यहाँ पर सूरमा घाटी तथा मेघना घाटी स्थित है। खासी पहाड़ियों के दक्षिण में चेरापूंजी स्थित है।

प्रायद्वीप पठार के पर्वत तथा पहाड़ियाँ

प्रायद्वीपीय पठार में कई पर्वत तथा पहाड़ियाँ पाई जाती हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : —

(क ) अरावली पहाड़ियां

ये पहाड़ियाँ मालवा पठार के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं। ये दक्षिण-पश्चिम में अहमदाबाद से उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लगभग 800 किमी. की लम्बाई में फैली हुई हैं ।

ये कठोर क्वार्टजाइट, नाइस तथा शिष्ट शैलों से बनी बहुत ही प्राचीन पहाड़ियाँ हैं, जो काफी अपरदन के बाद अब अवशिष्ट पर्वत का रूप धारण कर गई हैं और विच्छिन्न पहाड़ियों के रूप में है। इसकी मुख्य पहाड़ियाँ राजस्थान में स्थित हैं। राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में इसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम गुरु शिखर है, जो 1,722 मीटर ऊँची हैं। यह आबू पर्वत पर स्थित है।

यह पर्वत श्रेणी राजस्थान के अजमेर तथा जयपुर से होती हुई हरियाणा के दक्षिणी भाग में प्रवेश करती है, जहाँ से यह दिल्ली तक पहुँचती है। दिल्ली पहुँचने पर इसकी ऊँचाई न्यूनतम हो जाती है और यह मैदान में विलीन हो जाती है।

(ख ) विंध्याचल पर्वतमाला

यह नर्मदा नदी के उत्तर में उसके समानांतर पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है। आगे चलकर यह उत्तरपूर्व दिशा में मुड़ जाती है और भारनेर तथा कैमूर श्रेणियों के नाम से विख्यात है। इसकी लम्बाई लगभग 1,200 किलोमीटर है।

इसकी ऊँचाई पूर्वी व पश्चिमी भागों में 500 मीटर तथा मध्यवर्ती भाग में 600 मीटर है। यह पर्वतमाला गंगा नदी के क्रम को दक्षिणी भारत की नदियों के क्रम से अलग करती है।

(3) सतपुड़ा पर्वतमाला

यह नर्मदा तथा तापी नदियों के बीच पश्चिम में राजपीपला की पहाड़ियों से शुरू होती है। यह पर्वतमाला पूर्व व उत्तर-पूर्व दिशा में महादेव तथा मैकाल पहाड़ियों के रूप में अमरकंटक तक फैली हुई है।

इसकी लम्बाई लगभग 900 किलोमीटर है। यह मुख्यतः बेसाल्ट और ग्रेनाइट चट्टानों की बनी हुई है। इसकी औसत ऊँचाई 760 मीटर है। सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी पंचमढ़ी के निकट धूपगढ़ है, जो 1,350 मीटर ऊँची है। महादेव पर्वत पर स्थित इसकी दूसरी प्रसिद्ध चोटी अमरकंटक है, जो 1,127 मीटर ऊँची है। यहीं पर नर्मदा नदी का उद्गम स्थान है। सतपुडा पर्वत क्षेत्र में नदियाँ अनेक जलप्रपात बनाती हैं। जबलपुर के निकट नर्मदा नदी का धुआँधार जल प्रपात प्रसिद्ध है।

(4) सह्याद्रि अथवा पश्चिमी घाट (The Sahyadris or
Western Ghats)

यह पर्वत श्रेणी दक्षिणी पठार की पश्चिमी सीमा बनाती है। इसका ढाल घाट की भाँति सीढ़ीनुमा है, जिस कारण इसे पश्चिमी घाट कहते है। यह पश्चिमी तट के समीप उसके समानान्तर उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हुई है। उत्तर में यह तापी नदी के दक्षिण में स्थित खानदेस (Khandesh) से आरम्भ होकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक लगभग 1,500 किलोमीटर लम्बी पर्वत श्रेणी है। इसकी चौड़ाई उत्तरी भाग में 50 किमी. तथा दक्षिणी भाग में 80 किलोमीटर है। इसकी औसत ऊँचाई 1,000 मीटर से 1,200 मीटर है। इसका पश्चिमी ढाल तीव्र तथा पूर्वी ढाल मन्द है।

यह पर्वत एक दीवार की भांति खड़ा है, जिसे पार करना कठिन है। परंतु इसमें तीन दर्रे हैं, जिनके द्वारा इस पर्वत को पार किया जा सकता है। उत्तर से दक्षिण की ओर इन दर्रों के नाम थालघाट, भोरघाट तथा पालघाट हैं।

थालघाट 581 मीटर की ऊँचाई पर है और मुम्बई तथा कोलकता के बीच रेल व सड़क मार्ग प्रदान करता है।

भोरघाट 630 मीटर ऊँचा है और मुम्बई और चेन्नई के बीच यातायात प्रदान करता है।

पालघाट काफी चौड़ा तथा गहरा दर्रा है।

इसकी ऊँचाई कहीं भी 24 मीटर से कम नहीं हैं। इसका तल समुद्र तल से केवल 144 मीटर ऊँचा है, जबकि आस-पास की पर्वत श्रेणियाँ 1,500 से 2,000 मीटर तक ऊँची हैं। वस्तुतः पालघाट एक ‘दरार घाटी’ है, जिसमें से कोची-चेन्नई रेलमार्ग होकर जाता है।

इसके दक्षिण भाग में कई पहाड़ियाँ हैं, जिनमें नीलगिरि, अन्नमलाई, पालनी तथा इलायची की पहाड़ियाँ (Cardamom Hills) प्रसिद्ध हैं।

पालनी पहाड़ियों में स्थित अनाईमुदी (Anai Mudi) शिखर दक्षिण भारत का सबसे ऊँचा शिखर है, जिसकी ऊँचाई 2,695 मीटर है। यह केरल के इडुक्की जिले में स्थित है। यह चोटी पश्चिमी घाट पर्वत का भाग है। यह केरल एवं तमिलनाडु की सीमा पर अवस्थित है।

अनाईमुदी के बाद नीलगिरि में स्थित दोदा बेटा (Doda Betta) का दूसरा स्थान है, जिसकी ऊँचाई 2,670 मीटर है। इलायची की पहाड़ियों में इलायची बहुत होती है, जिसके कारण इन्हें ‘इलायची की पहाड़ियाँ’ ( Cardamom Hills ) कहा जाता है। दक्षिण भारत की प्रसिद्ध तोडा जनजाति यहीं पाई जाती हैं।

(5) पूर्वी घाट

यह घाट दक्षिणी पठार के पूर्वी किनारे पर स्थित है। यह उड़ीसा के उत्तर-पूर्वी भाग में महानदी की घाटी से आरम्भ होकर बंगाल की खाड़ी के समानान्तर चलता हुआ नीलगिरि की पहाड़ियों तक पहुँच गया है।

यह 1,300 किलोमीटर लम्बा है। इसकी चौड़ाई उत्तर में 200 किलोमीटर तथा दक्षिण की ओर 100 किलोमीटर है। इसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है अर्थात् यह पश्चिमी घाट से कम ऊँचा है। इसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम तिमाईगिरि है, जो समुद्र-तल से 1,515 मीटर ऊँची है।

महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों ने इसको काटकर अपने मार्ग बना लिए हैं। इस प्रकार यह एक टूटी-फूटी अवशिष्ट श्रृंखला है। महानदी तथा गोदावरी के बीच की पर्वत श्रेणी के अतिरिक्त इसमें कहीं भी वास्तविक पर्वतीय लक्षण दिखाई नहीं देते।

इसको विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। इनमें नल्लामलाई (Nallamalai), वेलीकोंडा (Valiconda), पालकोंडा (Palconda), जावादी (Javadi), शेवराय (Shavaroy) प्रमुख नाम हैं। दक्षिण में यह नीलगिरि की पहाड़ियों के निकट पश्चिमी घाट के साथ मिल जाता है।

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