‘फैसला’ कहानी की तात्विक समीक्षा

फैसला कहानी की तात्विक समीक्षा

‘फैसला’ कहानी मैत्रेयी पुष्पा की एक बहुचर्चित कहानी है । प्रस्तुत कहानी में लेखिका ने स्त्री की चिर-बंदिनी छवि पर प्रकाश डालते हुए उसे तोड़ने का प्रयास किया है । ‘फैसला’ कहानी की तात्विक समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है —

(1) कथानक या कथावस्तु
कथानक कहानी का मूल तत्त्व होता है । कथानक वास्तव में उस नक़्शे के समान होता है जिसके आधार पर सुंदर इमारत का निर्माण किया जाता है । प्रायः कथानक में संक्षिप्तता , मौलिकता , रोचकता , जिज्ञासा , प्रवाहमयता आदि गुण होने चाहिए ।

‘फैसला’ कहानी स्त्री-विमर्श पर आधारित है । वसुमती ग्राम-प्रधान है जबकि उसका पति रणवीर ब्लॉक-प्रमुख है । वसुमती केवल नाममात्र की प्रधान है , सभी निर्णय उसका पति ही लेता है । उसका पति जहाँ कहता है , वह हस्ताक्षर कर देती है ।
वसुमती को यह बात बहुत चुभती है | गाँव की औरतें अपने मोहल्ले में काम न होने के कारण उसे ताने मारती हैं |
एक बार वसुमति मना करने के बावजूद पंचायत में जाती है और हरदेई नामक युवती को उसके पति के साथ भेजने का निर्णय सुनाती है । घर आने पर उसका पति उसे ख़ूब जली-कटी सुनाता है और उसके निर्णय को बदल देता है ।

रणबीर के फैसले से आहत हरदेई आत्महत्या कर लेती है | इस घटना के बाद जब ब्लॉक प्रमुख के अगले चुनाव होते हैं तो वसुमती अपना वोट अपने पति को न देकर उसके प्रतिद्वंद्वी को देती है | फलत: रणबीर एक वोट से चुनाव हार जाता है |

कथानक पूर्णतः मौलिक है | कथानक में रोचकता, जिज्ञासा, प्रवाहमयता निरंतर बनी रहती है | कथानक के आदि, मध्य तथा अंत तीनों उत्कृष्ट बन पड़े हैं |

(2) पात्र एवं चरित्र-चित्रण

पात्रों की भी कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका होती है | यदि कथानक किसी कहानी की नींव है तो पात्र उस कहानी की दीवारें, दरवाजे और खिड़कियाँ है जिनके समुचित विकास के बाद ही कहानी रूपी भवन का निर्माण होता है | पात्र ही कथानक को गति प्रदान करके उसे अंत तक पहुंचाते हैं |

‘फैसला’ कहानी का केंद्रीय पात्र वसुमती है | उसका पति रणवीर भी प्रमुख पात्र है | ईसुरिया, हरदेई, देवतीर आदि अन्य पात्र हैं जो कहानी को अंत तक पहुँचाते हैं |

निःसन्देह बसुमती या वसुमती कहानी का केंद्रीय तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पात्र है | पूरी कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है | उसे कहानी में अभिजात्य वर्ग की एक ऐसी स्त्री के रूप में दिखाया गया है जो अपने अधिकारों से वंचित है | उस के माध्यम से संभवत: लेखिका यह दर्शना चाहती है कि उच्च घरानों में भी स्त्रियों की स्थिति दयनीय ही होती है | कहानी में बसुमती ग्राम-प्रधान है परंतु उसे स्वयं निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं | वह केवल नाम-मात्र की प्रधान है | जहां उसका पति कहता है, वह हस्ताक्षर कर देती है |

ईसुरिया कहानी का महत्वपूर्ण स्त्री पात्र है | वह कहानी में स्त्री-विद्रोह की चिंगारी के रूप में दिखती है | वह निर्भीकता से पुरुष-प्रधान समाज कि गलत से परंपराओं पर उंगली उठाती है | कठपुतली की तरह जीवन जीने के कारण वह वसुमती को भी खरी-खोटी सुनाती है |

हरदेई का पात्र कहानी में निर्णायक मोड़ लाता है | हरदई के आत्महत्या कर लेने के बाद वसुमती अपने पति का विरोध करने का निर्णय लेती है और ब्लॉक-प्रमुख के चुनाव में उसे वोट न देकर उसके प्रतिद्वंद्वी को वोट देती है |

वृद्धा, देवतीर आदि के पात्र भी कहानी को आगे बढ़ाते हैं और कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध होते हैं |

(3) संवाद व कथोपकथन

संवाद भी कहानी का महत्वपूर्ण तत्व होते हैं | संवाद कहानी को नाटकीयता और स्वाभाविकता प्रदान करते हैं | संवादों से कथानक में गति आती है | संवाद कहानी को रोचक बनाते हैं | संवाद पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते हैं |

‘फैसला’ कहानी के संवाद संक्षिप्त, सरल व रोचक हैं जो कहानी में नाटकीयता , जिज्ञासा, प्रवाहमयता का समावेश करते हैं | संवाद कथानक और पात्रों की मनोदशा के अनुकूल है | प्रायः आम बोलचाल की शब्दावली का प्रयोग किया गया है |

यथा — “सुन ले! सुनाने के लिए ही कह रहे हैं हम | रनवीर एक दिन चाखी पीसेगा, रोटी थापेगा और हमारी बसुमती कागद लिखेगी, हुकुम चलाएगी, राज करेगी |”

“है न बसुमती?”

“साँची कहना, तू ग्यारह किलास पढ़ी है न? और रनवीर नौ फेल? बताओ कौन हुसियार हुआ?”

(4) देशकाल व वातावरण

कहानी के संदर्भ में देशकाल और वातावरण से अभिप्राय कहानी के स्थान, समय एवं परिवेश से है | इसके अंतर्गत उस काल व क्षेत्र-विशेष की भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार, ग्राम व नगर वर्णन, परिधान आदि सब कुछ आ जाता है |

‘फैसला’ कहानी का स्थान ग्रामीण परिवेश है तथा समय पिछली सदी अर्थात् 20वीं सदी का नब्बे का दशक है | कहानी के एक संवाद में इसकी झलक मिलती है — “इन्द्रा गांधी तो कब की मर चुकी, राजीव गांधी का राज है |”

कहानी में जहां प्रत्येक वर्ग की नारी की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया है, वही इस व्यवस्था के प्रति नारी के मन में उभर रही विद्रोह की भावना को भी दर्शाया गया है | एक संवाद देखिए — “अब दिन गए कि जनी गूंगी-बहरी छिरिया-बकरियाँ की नाई हँकती रहे | बरोबरी का ज़माना ठहरा | पिरधान बन गई न बसुमती |”

लेखिका ने देशकाल तथा वातावरण से संबंधित पर्याप्त संकेत कहानी में दिए गए हैं | पात्रों के पारस्परिक संवादों तथा उनकी भाषा से देशकाल और वातावरण पाठकों के सामने सजीव बन गया है |

(5) उद्देश्य

प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है | इस दृष्टिकोण से मैत्रेयी पुष्पा द्वारा रचित कहानी ‘फैसला’ भी कोई अपवाद नहीं है | इस कहानी का मुख्य उद्देश्य स्त्री-पुरुष असामानता को समाप्त करना और स्त्री-सशक्तिकरण पर बल देना है | कहानी में ईसुरिया का पात्र स्त्री-सशक्तीकरण का प्रतिनिधि पात्र है | वह निर्भीकता से पुरुष प्रधान समाज की गलत परंपराओं के विरुद्ध आवाज उठाती है | और वसुमती के ग्राम प्रधान चुने जाने पर प्रसन्नता से उछल पड़ती है — “अब दिन गए कि जनी गूंगी-बहरी छिरिया-बकरियाँ की नाई हँकती रहे | बरोबरी का ज़माना ठहरा | पिरधान बन गई न बसुमती |”

यद्यपि कहानी में स्पष्ट रूप से स्त्री सशक्तिकरण की विजय नहीं दर्शाई गई | ईसुरिया को अगर छोड़ दें तो अन्य कोई नारी पात्र गलत परंपराओं के विरुद्ध आवाज भी नहीं उठाता | कहानी के सभी नारी पात्र बंधी-बंधाई लकीर के अनुसार पुरुषों के उचित-अनुचित हर निर्णय को मानने के लिए बाध्य हैं | लेकिन कहानी के अंत में वसुमती अपने पति के विरुद्ध वोट डालकर अपनी विद्रोह-भावना का परिचय अवश्य देती है जिसकी वजह से उसका पति चुनाव हार जाता है | अंत में कहानी एक महत्त्वपूर्ण संदेश देती है कि जब तक नारी स्वयं अपने उत्थान व उद्धार के लिए प्रयास नहीं करेगी, तब तक कुछ नहीं हो सकता | वसुमती के पति का केवल एक वोट से हार जाना यह संदेश भी देता है कि गलत के विरुद्ध उठाई गई हर आवाज महत्व रखती है, भले ही वह आवाज अकेली ही क्यों न हो |

(6) भाषा व भाषा-शैली

‘फैसला’ कहानी खड़ी बोली हिंदी में लिखी गई है | कहानी की भाषा आम बोलचाल की सरल, सहज व भावानुकूल है | कहानी में विषय वस्तु के अनुकूल देशज व तद्भव शब्दों की भरमार है | अनपढ़ ईसुरिया व गाँव के अन्य पात्रों की भाषा में आँचलिक देशज शब्द मिलते हैं लेकिन वसुमती के मास्साब को लिखे पत्र की भाषा शुद्ध हिंदी है |

कहानी पत्रात्मक शैली में लिखी गई है | इसके अतिरिक्त कहानी में वर्णनात्मकता, भावात्मकता, मनोविश्लेषणात्मकता आदि शैलियाँ भी मिलती हैं |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘फैसला’ कहानी एक उत्कृष्ट कहानी है जो कहानी के सभी तत्त्वों की कसौटी पर खरी उतरती है |

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