पथ के साथी : साहित्य-रूप पर विचार ( Path Ke Sathi : Sahitya Roop Par Vichar )

हिंदी साहित्य में कुछ ऐसी विधाएँ भी हैं जो भिन्न होते हुए भी कुछ न कुछ समानताएं रखती हैं | हिंदी साहित्य में संस्मरण, रेखाचित्र व चरित्र-प्रधान कहानीयाँ ऐसी ही विधाएं हैं | प्रसिद्ध गद्य लेखिका व कवियत्री महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) ने ऐसी तीन रचनाएं लिखी हैं – स्मृति की रेखाएं, अतीत के चलचित्र, पथ के साथी | कहानी के विषय में इतना विवाद नहीं है परंतु कौन सा संस्मरण है व कौन सा रेखाचित्र इस विषय में विवाद है | जहां तक ‘पथ के साथी’ नामक रचना का प्रश्न है इसे कुछ विद्वान रेखाचित्र कहते हैं तो कुछ संस्मरण | कुछ विद्वान इसे संस्मरणात्मक रेखाचित्र भी कहते हैं | वे मानते हैं कि इसमें रेखाचित्र और संस्मरण दोनों की झलक मिलती है | ‘पथ के साथी’ रचना के स्वरूप को निर्धारित करने से पहले रेखाचित्र और संस्मरण के अर्थ को जाना नितांत आवश्यक है |

रेखाचित्र का अर्थ व स्वरूप

‘रेखाचित्र’ हिंदी की एक नवीन विधा है | ‘रेखाचित्र’ का अंग्रेजी पर्याय ‘स्केच‘ है | ‘स्कैच‘ शब्द चित्रकला से संबंध रखता है जिसमें चित्रकार रेखाओं के माध्यम से चित्र उकेरता है | ठीक इसी प्रकार ‘रेखाचित्र‘ में भी साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से शब्द-चित्र बनाता है | जिस प्रकार चित्रकार अपनी तूलिका का प्रयोग करके चित्र उकेरता है, ठीक उसी प्रकार रेखाचित्रकार अपनी लेखनी का प्रयोग कर सजीव शब्द-चित्र बनाता है |

हिंदी साहित्य कोश के अनुसाररेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्यिक रूप है | यह नाम अंग्रेजी के ‘स्कैच’ शब्द से गढ़ा गया है |

डॉक्टर अवतरे के अनुसार – “रेखाचित्र संस्मरण का ही विकसित कलात्मक रूप है |

अत: स्पष्ट है कि रेखाचित्र में साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से शब्दचित्र बनाता है | इस विधा में धीरे-धीरे चरित्र व व्यक्तित्व प्रधान हो जाता है, शेष सब गौण | वस्तुत: रेखाचित्र किसी व्यक्ति का अनुभूति व संवेदना के आधार पर चित्रांकन होता है |

संस्मरण का अर्थ व स्वरूप

संस्मरण‘ किसी व्यक्ति या घटना की स्मृतियों को चित्रित करता है | संस्मरण जब किसी व्यक्ति की स्मृतियों से जुड़ा होता है तो यह रेखाचित्र के काफी निकट प्रतीत होता है और निश्चय करना कठिन हो जाता है कि यह रचना संस्मरण है या रेखाचित्र | इसका कारण भी स्पष्ट है क्योंकि दोनों ही विधाओं में किसी व्यक्ति का चित्रण स्मृति के आधार पर किया जाता है | दोनों ही विधाओं में लेखक उस व्यक्ति के प्रति आत्मीयता और सच्ची संवेदना प्रकट करता है |

संस्मरण की कुछ कतिपय परिभाषाएं या संस्मरण विषयक उक्तियाँ निम्नलिखित हैं : –

🔹 संस्मरण प्राय: किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के होते हैं जो उसकी मृत्यु के उपरांत लिखे जाते हैं |

🔹 अतीत की घटनाओं का स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करना ही संस्मरण है |

🔹 किसी व्यक्ति की स्मृतियों का चित्रण संस्मरण है |

इन परिभाषाओं व उक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘संस्मरण‘ स्मृति पर आधारित होता है | इसमें किसी व्यक्ति के जीवन से जुड़ी घटनाओं व प्रसंगों का वर्णन होता है | यथार्थता, आत्मीयता, भावुकता व संवेदना ‘संस्मरण’ की मुख्य विशेषताएं होती हैं |

रेखाचित्र और संस्मरण में समानता

यद्यपि रेखाचित्र और संस्मरण साहित्य की दो भिन्न विधाएं हैं परंतु फिर भी दोनों विधाओं में कुछ समानताएं भी हैं जो इस प्रकार हैं :-

1. दोनों विधाओं में यथार्थ व वास्तविकता का पुट रहता है | दोनों में तथ्यपरक सामग्री होती है |

2. दोनों विधाओं में ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के आदर्श का पालन करना पड़ता है |

3. दोनों ही विधाओं में व्यक्ति या पात्र के प्रति आत्मीयता का भाव रहता है |

4. दोनों ही विधाओं का उद्देश्य पात्र या व्यक्ति के प्रति पाठकों की संवेदना जागृत करना होता है |

5. दोनों ही विधाओं में पात्रों की प्रवृत्तिगत विशेषताओं का अंकन होता है |

6. दोनों विधाओं में प्रायः चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया जाता है |

7. संस्मरण और रेखाचित्र उन्हीं व्यक्तियों के लिखे जाते हैं जो अपनी विशेषताओं के कारण अपनी छाप एक बड़े जनसमूह के हृदय-पटल पर छोड़ सकें |

रेखाचित्र और संस्मरण में असमानता

रेखाचित्र और संस्मरण तो अलग-अलग विधाएं हैं | न तो रेखाचित्र को संस्मरण कहा जा सकता है और न ही संस्मरण को रेखाचित्र | सामान्यत: दोनों विधाओं में अनेक असमानताएं हैं जो दोनों विधाओं को एक दूसरे से अलग करती हैं |

1. बाबू गुलाबराय के अनुसार – ” जहां रेखाचित्र वर्णनात्मक अधिक होता है वहीं संस्मरण विवरणात्मक अधिक होता है |”

2. संस्मरण प्राय: किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के लिखे जाते हैं जो प्रायः उसकी मृत्यु के बाद लिखे जाते हैं परंतु रेखाचित्र किसी साधारण, दीन-हीन व्यक्ति के भी लिखे जाते हैं |

3. संस्मरण घटना प्रधान होता है जबकि रेखाचित्र व्यक्ति प्रधान |

4. संस्मरण में व्यक्ति से जुड़े प्रसंगों की अधिकता होती है जबकि रेखाचित्र में व्यक्ति की चारित्रिक विशेषताओं की अधिकता होती है |

5. संस्मरण किसी व्यक्ति के एक पहलू की झांकी प्रस्तुत करते हैं जबकि रेखाचित्र व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व की झांकी प्रस्तुत करते हैं |

6. संस्मरण का संबंध देश, काल व पात्र तीनों से है जबकि रेखाचित्र का संबंध पात्र से अधिक होता है |

7. संस्मरण में कोई भी शैली अपनाई जा सकते हैं लेकिन रेखा चित्र में प्रायः चित्रात्मक शैली अपनायी जाती है |

‘पथ के साथी’ का साहित्य रूप

‘पथ के साथी‘ कृति में लेखिका महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) ने सात साहित्यकारों का चित्रण किया है | यह साहित्यकार लेखिका के साहित्यिक जीवन के पथ के साथी ही रहे हैं | यह सभी लेखिका के समसामयिक साहित्यकार थे | इन सातों साहित्यकारों का चित्रण करते हुए लेखिका ने उनके प्रति अपने विचारों को भी प्रकट किया है | अतः ‘पथ के साथी’ कृति में विवेच्य व्यक्ति (किसका विवेचन किया गया हो ) के व्यक्तित्व के साथ लेखिका का अपना व्यक्तित्व भी आ गया है | आलोच्य कृति में विवेच्य-व्यक्ति के जीवन के प्रसंगों के साथ-साथ लेखिका के अपने जीवन के प्रसंग भी सामने आए हैं | ‘पथ के साथी’ की अनेक विशेषताएं इसे संस्मरण विधा के समीप ले जाती हैं | इसके अतिरिक्त इस कृति में रेखाचित्र की सभी विशेषताएं तो नहीं मिलती फिर भी कुछ विद्वान इसे विशुद्ध रेखाचित्र मानते हैं | इसमें संस्मरण की भी अनेक विशेषताएं मिलती हैं इसी दृष्टि से इसे संस्मरण भी कहा जाता है परंतु इस कृति की कुछ विशेषताएं इसे रेखाचित्र के समीप ले जाती हैं ; जैसे – व्यक्ति-प्रधानता, चित्रात्मक शैली, पात्रों के व्यक्तित्व का अंकन, उनकी प्रवृत्तिगत विशेषताएं आदि | इसलिए अधिकांश विद्वान् इस कृति को संस्मरण या रेखाचित्र ना मानकर संस्मरणात्मक-रेखाचित्र मानते हैं जो नितांत उचित प्रतीत होता है |

Leave a Comment