गज़ल ( फिराक गोरखपुरी )

( यहाँ कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल ‘( फिराक गोरखपुरी ) की व्याख्या दी गई है |) नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं | (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ … Read more

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी हाथों पे झूलाती है उसे गोद-भरी रह-रह के हवा में जो लोका देती है गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी | (1) प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संस्कृत कविता ‘रुबाइयाँ’ में से अवतरित है | इसके शायर फिराक गोरखपुरी जी … Read more