कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिमान हम एक दुर्बल को लाएंगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ? तो आप क्यों अपाहिज हैं? आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है ? ( कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा ) हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है ? जल्दी बताइए … Read more

पतंग ( आलोक धन्वा )

( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | ) सबसे तेज बौछारें गयी भादो गया सवेरा हुआ खरगोश की आंखों जैसा लाल सवेरा शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नई … Read more

कविता के बहाने ( कुंवर नारायण )

( यहाँ NCERT हिंदी की 12वीं की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कुंवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | ) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने बाहर भीतर इस घर, उस … Read more

बात सीधी थी पर ( कुंवर नारायण )

( ‘बात सीधी थी पर’ कुंवर नारायण द्वारा रचित कविता है जिसमें भाषा के सरल, सहज व स्वाभाविक प्रयोग का संदेश दिया गया है | कवि के मतानुसार कभी-कभी आकर्षक शब्दों के चयन से भाषा अपने उद्देश्य से भटक जाती है और भावाभिव्यक्तति नहीं हो पाती | ) बात सीधी थी पर एक बार भाषा … Read more

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ( हरिवंश राय बच्चन )

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर दिया गया है | ) हो जाए न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं – यह सोच थका … Read more

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्मपरिचय’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं ) मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ ; फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ ; कर दिया किसी ने … Read more

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

‘बादल राग’ कविता की व्याख्या तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी, भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग, सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नव जीवन की, ऊंचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के … Read more