श्रद्धा हत्याकांड

आफ़ताब-श्रद्धा प्रकरण के बाद दिल्ली में होने वाले एक और भयानक हत्याकांड ने समाजशास्त्रीयों को सोचने पर मजबूर कर दिया है | हालाँकि कुछ लोग श्रद्धा हत्याकांड को लव जेहाद के तौर पर देख रहे हैं लेकिन कुछ दिनों के अंतराल में ही ठीक इसी प्रकार के हत्याकाण्ड के अन्य उदाहरण स्पष्ट रूप से संकेत कर रहे हैं कि यह घटना सामाजिक संक्रमण के दौर में सम्बंधों के बिखराव और अविश्वास का परिणाम है | संक्रमण काल सदैव कष्टकारी होता है | आज भारतीय समाज जिस संक्रमण दौर से गुजर रहा है उसमें युवा न तो पारंपरिक बंधनों को स्वीकार कर पा रहे हैं और न ही उन बंधनों को तोड़ पा रहे हैं | ऊपर से आधुनिकता का लबादा औढ़े ये युवा अंदर से आज भी पुरातनपंथी ही हैं | शायद अपने स्तर पर हर प्रकार की स्वतंत्रता चाहने वाले युवा खुद बेवफा होते हुए भी अपने पार्टनर को अपने प्रति उतना ही वफादार देखना चाहते हैं जितना इनके पूर्वज चाहते थे | ये आज भी उन्हीं इतिहास पुरुषों को अपना महानायक मानते हैं जो अनेक पत्नियां रखने के बावजूद अपनी पत्नियों से पर पुरुष की दृष्टि पड़ने मात्र से जौहर की आकांक्षा रखते थे |

आज की लड़कियां भी भले ही आरम्भ में ‘लिव इन रिलेशन’ को अपनाकर अपने आधुनिक होने का परिचय देती हों लेकिन शायद ही ऐसी कोई लड़की होगी जो अपने माँ-बाप को इस बारे में बता पाती होगी | ऐसा साहस उनमें नहीं | अगर इतना बेबाक कदम उठाना चाहती हैं और उठाती भी हैं तो सारे समाज को इस बारे में बताने के साथ-साथ इतना साहस भी होना चाहिए कि यदि उसका पार्टनर उसे दगा दे जाए, तो वह इससे उत्पन्न कठिन परिस्थितियों को सहन कर पाये |

परिवार की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपने ढंग से जीवन जीने की चाह रखने वाले युवाओं को इस रास्ते पर चल कर मिलने वाली स्वतंत्रता व क्षणिक मस्ती के साथ भविष्य में आने वाली चुनौतियों को झेलने के लिए भी तैयार रहना चाहिए | लव मैरिज या लिव इन के बाद रिश्ता अगर टूट जाता है तो कोई बात नहीं ; यह आपके द्वारा लिए गए निर्णय का एक संभावित परिणाम मात्र है | अर्रेंज्ड मैरिज में भी इसकी सम्भावना बनी रहती है | अपने आसपास नजर दौडाइये, माता-पिता और बड़े बुजुर्गों द्वारा तय किए गए रिश्तों के बिखरने के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे |

सामाजिक परिवर्तन ऊपर से नीचे तक घटित होना चाहिए | यदि वही घटनाएं जो उच्च वर्ग में सदियों से होती रही हैं, निम्न वर्ग में होने लगे तो उसे सफल सामाजिक परिवर्तन की पराकाष्ठा कहा जा सकता है | जिस समाज में पुरुष के परस्त्रीगमन को सर्वस्वीकृत और किसी स्त्री को उसके आधुनिक पहनावे को देखकर ही उसे चरित्रहीन मान लिया जाता हो वहां अभी आधुनिकता की बातें दूर की कौड़ी होगी | मंटो का कथन “सिगरेट पीने से एक औरत के भी फेफड़े ही खराब होते हैं किरदार नहीं ” नारी के प्रति भेदभाव के विषय में बहुत कुछ कह जाता है |

समस्या लिव इन या लव मैरिज नहीं है ; मूल समस्या वैचारिक परिवर्तन की है | पाश्चात्य संस्कृति की चका-चौंध को देख आकृष्ट होने वाले युवा केवल ड्रेस, खान-पान, मस्ती के कुछ क्षणिक इवेंट्स को अपनाकर खुद को आधुनिक मानने लगते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि यह पाश्चात्य संस्कृति के बाहरी आवरण के कुछ तत्त्व हैं ; मूल तत्त्व तो वैचारिक है | पाश्चात्य संस्कृति में यदि क्षण में रिश्ते बनते हैं तो क्षण में टूटते भी हैं | वे न केवल मिलन के पलों का जश्न मनाने हैं बल्कि विदाई के क्षणों को ( भारी मन से ही सही ) सामान्य रूप से स्वीकार भी करते हैं | मैंने अनेक पाश्चात्य ( कुछ भारतीय भी ) सेलिब्रिटीज को सम्बन्ध विच्छेद होने पर एक-दूसरे को भविष्य की शुभकामनाएँ देते हुए सुना है | श्रद्धा ऐसा नहीं कर पाई जिसकी सजा उसको मिल चुकी है ; आफ़ताब को मिलना बाकी है | आफ़ताब का कदम हर दृष्टिकोण से अक्षम्य है | आशा है उसे इसकी कड़ी सजा मिलेगी |

दूसरी तरफ माँ-बेटे द्वारा अपने पिता को मारनेवल का प्रकरण अनेक अन्य कारणों के होते हुए भी इस कारण से अछूता नहीं है | या तो मजबूरी से ही सही रिश्तों से बंधे रहिये या तोड़ दीजिये ; अन्य कोई विकल्प नहीं | विसंगतियाँ हैं तो कानून का सहारा लीजिये जैसे सभी विकसित देशों में होता है | माँ-बेटे अंजन दास से अलग होना चाहते थे लेकिन संभवत: आर्थिक असुरक्षा या आश्रय-स्थल के खोने के डर से अलग नहीं हो पा रहे थे | ऐसी स्थिति में कानून का आश्रय ही उचित कहा जा सकता है | माना कानूनी प्रक्रिया लम्बी हो सकती है लेकिन कानून को अपने हाथ में लेकर बुलडोजर चला देना केवल असभ्य समाज में सराहा जा सकता है | माँ-बेटे ने भले ही लम्पट पिता से तंग आकर ये कदम उठाया हो लेकिन उनका यह कदम घृणित है, वे भी कड़ी सजा के हकदार हैं |

बहरहाल इन दोनों घटनाओं के दोषियों ने एक गलत परम्परा की शुरुआत की है | भारत जैसे विशाल देश में कई बार हजारों-लाखों लोग एक जैसी परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं और ऐसी अनुचित प्रतिक्रियाओं में अगर वे अपनी समस्या का हल ढूंढने लगे तो स्थिति भयावह हो जायेगी |

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