शाहरुख़ खान : पिक्चर अभी बाकी है

चाँद तारे तोड़ लाऊँ
सारी दुनिया पर मैं छाऊँ
बस इतना सा ख़ाब है……

ये गीत जिस नायक पर फिल्माया गया है मानो उस नायक की अपनी महत्त्कांक्षाओं की अभिव्यक्ति था जिसे उसने न केवल पूरा किया बल्कि निरंतर चाँद तारों को समेटने और दुनिया पर छाने की उसकी हसरत के आगे मानो आज ये फलक और दुनिया छोटी पड़ने लगी है |

जी हाँ, हम बात कर रहे है बॉलीवुड सुपर स्टार शाहरुख़ खान की जिसे बॉलीवुड किंग, बॉलीवुड बादशाह , किंग खान, किंग ऑफ़ रोमांस जैसी न जाने कितनी उपाधियों से अलंकृत किया जाता है और जो आज दुनिया के अनेक देशों में बॉलीवुड ही नहीं बल्कि देश की पहचान बन गए हैं |

सन 1991 में आई फ़िल्म दीवाना से बॉलीवुड में दस्तक देने वाले शाहरुख़ खान ने अपनी पहली फ़िल्म में ही अपने जोरदार अभिनय से दर्शकों के मन में वह छाप छोडी जो समय के साथ और अधिक गहरी होती चली गई | इस फ़िल्म के साथ-साथ अन्य आरंभिक फिल्मों ( दिल आशनां है, डर ) में नायिका का दिल जितने के लिए शाहरुख़ ने पागलपन की हद तक जो कोशिशें की वही कोशिशें उनके जीवन और अभिनय में भी दिखाई देती हैं | आरंभिक दौर में उनके अभिनय में जिस जुनून के दर्शन होते हैं वह उस समय तक हिंदी सिनेमा में इतना नया था कि देखने वाले रोमांचित हो गए | ‘दीवाना’ फ़िल्म में लगभग दो घंटे बीत जाने पर वे दर्शक जिनमें से अधिकतर लव आइकॉन के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके ऋषि कपूर के प्रशंसक रहे होंगे शाहरुख़ को पहली अपीयरंस में ‘कोई न कोई चाहिए प्यार करने वाला…..’ गीत गाते हुए सीने पटल पर देखते हैं तो उस अपरिचित युवा की भाव-भंगिमाओं को हमेशा के लिए दिल दे बैठते हैं | फ़िल्म के अंत तक जो दर्शक ऋषि के प्रति सहानुभूति का भाव लिए हुए थे, उनका झुकाव शाहरुख़ की तरफ हो जाता है | परिणामस्वरूप फ़िल्म के समाप्त होने पर सपोर्टिंग रोल में होते हुए भी शाहरुख़ बाजी मार जाते हैं |

‘डर’ फ़िल्म में उनका किरदार उस समय का सर्वाधिक विचित्र व विवादास्पद किरदार कहा जा सकता है | यह एक ऐसी प्रेम कहानी थी जो प्रचलित प्रेम-मानकों पर खरी नहीं उतरती | भले ही इसे प्रेम न कहा जा सके लेकिन वास्तविक प्रेम-कहानियों में इस प्रकार के पात्रों के अस्तित्व को नकारा नहीं किया जा सकता | यह यश चोपड़ा के द्वारा किया जाने वाला सर्वथा नवीन व चुनौतीपूर्ण प्रयोग था | शाहरुख़ को ‘तू हाँ कर या ना कर, तू है मेरी किरन….’ या ‘मांग लूँगा तुझे आसमां से छीन लूंगा तुझे इस जहाँ से…….’ पंक्तियों को गाते हुए देख दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं | ख़ास बात यह है कि खलनायक की इस भूमिका में शाहरुख़ स्पष्ट तौर पर न तो दर्शकों की नफरत हासिल कर पाते हैं न स्पष्ट सहानुभूति ; हाँ, रोमांचित अवश्य होते हैं | हजारों लोगों ने इस विचित्र भूमिका से रोमांचित होकर इस फ़िल्म को कई बार देखा | ऊँची आवाज में ‘क कक्क्क्… किरन’ की दहाड़, मार खाते हुए उछल कर दूर गिरना और फड़फड़ाते हुए होठों से संवाद अदायगी ; सब कुछ नया था | सम्भवत: पहली बार दर्शकों ने मार खाते हुए हीरो के लिए तालियां बजाई होंगी | हालाँकि यह चलन इसके बाद दरार, अग्निसाक्षी, दस्तक और फरेब जैसी फिल्मों में खूब पसंद किया गया लेकिन इन फिल्मों में अरबाज, नाना पाटेकर, मिलिंद गुणाजी और शरद कपूर को वो सफलता नहीं मिली जो डर फ़िल्म में शाहरुख़ को मिली | यश चोपड़ा और सनी दयोल की लोकप्रियता को पीछे छोड़ते हुए नई कहानी और नए अभिनेता की नवीन अभिनय शैली ने इतिहास रच दिया |

‘बाजीगर’ का उनका किरदार उनके फ़िल्मी कैरियर में मील का पत्थर कहा जा सकता है | इस फ़िल्म में भी शाहरुख़ एंटी हीरो की छवि लिए हुए थे | फर्क सिर्फ इतना है कि इस फ़िल्म में शाहरुख़ की खलनायकी को उसके माता-पिता पर हुए अत्याचारों के फ़्लैश बैक के द्वारा रिवेंज स्टोरी के रूप में प्रस्तुत किया गया | खलनायक शेड होते हुए भी इसमें शाहरुख़ को विशुद्ध हीरो के रूप में स्वीकार कर लिया गया | हालाँकि, मुझे शाहरुख़ का सीमा ( शिल्पा शेट्टी ) को छत से फेंकने का दृश्य आज तक समझ नहीं आया | बहरहाल, यह फ़िल्म शाहरुख़ के करियर में अमिताभ की ‘जंजीर’ सिद्ध हुई | फ़िल्म ने आशातीत सफलता हासिल की | फ़िल्म की सफलता-असफलता से अलग इन फिल्मों ( डर और बाजीगर ) की उपलब्धि यह रही कि रोमांटिक फिल्मों के उस दौर में दर्शकों को एक ऐसा हीरो मिला जिसने रोमांस और एक्शन को अपने यूनिक अंदाज में प्रस्तुत कर अपनी एक ऐसी पहचान बनाई थी जो ऋषि कपूर, आमिर, सलमान की रोमांटिक छवि से तो अलग थी ही लेकिन मारधाड़ के दृश्यों से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके सनी दयोल, संजय दत्त और आगे आने वाले अजय, अक्षय और सुनील शेट्टी से भी अलग थी |

दूसरा, इन फिल्मों में उसने जिस आत्मविश्वास की झलक दिखाई वह उसकी लम्बी उड़ान की बानगी थी | चाहे ‘बाजीगर’ में उनके द्वारा बोला गया ‘हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं’ संवाद हो या ‘हवा में उड़ने की बात परिंदे किया करते हैं मदन चोपड़ा, टूटे हुए पर नहीं’ या फिर अंत में शरीर में सरिया घुसा दिए जाने पर भी जीतने के जज्बे की झलक और मदन चोपड़ा ( दिलीप ताहिल ) के साथ साथ दर्शकों को भी हैरान कर देने वाली फड़फड़ाते होठों की अजीब खिलखिलाहट हो ; हर जगह उनके चेहरे पर एक गजब का आत्मविश्वास झलकता है | इन फिल्मों में उसके अभिनय में जो इंटेंसिटी दिखाई देती है, वह फ़िल्म पंडितों के द्वारा नकारने पर भी दर्शकों को बाँधने में सफल रहती है | यही नहीं इन फिल्मों के बाद फ़िल्म पंडित भी दो भागों में बंटते हुए दिखाई दिए, कुछ ने आलोचना की तो अनेक फ़िल्म आलोचकों ने शाहरुख़ के अभिनय को ताज़ी बयार का झोंका कहा |

बाद में दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, दिल तो पागल है, यस बॉस, कुछ-कुछ होता है, ओम शांति ओम, रब ने बना दी जोड़ी, वीर जारा और ज़ब तक है जान जैसी फिल्मों ने शाहरुख़ को रोमांस के बादशाह के रूप में स्थापित कर दिया |

इन रोमांटिक फिल्मों में उनके कहे गए संवाद रोजमर्रा की जिंदगी में युवाओं के प्रेम-मंत्र बन गए जिनका उच्चारण वे अपने जीवन में अपने प्रेमपात्र को पाने के लिए दिन-रात करते रहे | ‘चलते चलते’ फ़िल्म में ज़ब शाहरुख़ बिज़नेस की बनिस्बत प्यार को प्राथमिकता देता है तो उसका दोस्त कहता है कि ऐसे बिज़नेस नहीं होता तो शाहरुख़ का संवाद ‘मुझे नहीं पता की बिज़नेस कैसे होता है ; मगर प्यार तो ऐसे ही होता है’ दर्शकों को प्यार का एक नया अर्थ दे जाता है |
‘मोहब्बतें’ में मानो वे प्रेम का दार्शनिक पक्ष समझाने के लिए ही आते हैं | ‘ऐ दिल है मुश्किल’ फ़िल्म में उनका संवाद ‘एकतरफा प्यार की ताकत ही कुछ और होती है, दूसरे रिश्तों की तरह यह दो लोगों में नहीं बंटती’ एकतरफा प्यारा करने वालों को सम्बल प्रदान करता है |

पहेली, स्वदेश, चक दे, डॉन, रा वन, रईस, फैन और जीरो जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने विविधतापूर्ण अभिनय से मनोरंजन के उच्च आयाम स्थापित किए |

शाहरुख़ अपनी फिल्मों के माध्यम से न केवल दर्शकों का मनोरंजन करते हैं बल्कि उन्हें जीवन में नित नई उपलब्धियाँ हासिल करने की प्रेरणा भी देते हैं | ‘हुस्न से भी हसीं है ख़ाब मेरी जिंदगी के… मैं इधर-उधर देखता नहीं मेरी मंजिलों पर मेरी नजर ( राजू बन गया जेटलमैन )’ कहकर वे मानो अपने युवा फैंस को अपने लक्ष्यों पर फोकस करने की प्रेरणा देते हैं ; ‘इतनी शिद्दत से तुम्हें पाने की कोशिश की है कि हर कायनात ने मुझे तुमसे मिलाने की साजिश की है ( ओम शांति ओम ) और ‘डोंट अंडरएस्टीमेट द पावर ऑफ़ के कॉमन मैन ( चेन्नई एक्सप्रेस ) संवादों के माध्यम से वे मानो आम आदमी को अथक प्रयासों के साथ-साथ अपने अंदर निहित अपार शक्तियों में विश्वास रखने की बात करते हैं ; वे भले ही ऐसा उद्देश्य रखें या न रखें लेकिन उनके फैन या कोई भी सहृदय दर्शक फ़िल्म की कहानी से तादात्मय स्थापित कर मोटिवेटड हो जाता है |

वस्तुत: उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व प्रेरणापुंज है, उनका उठना-बैठना, हंसना-रोना, चलना-फिरना सब कुछ उनके फैंस पर जादू-सा असर करता है | फिल्मों में उनकी संवाद अदायगी आइकॉनिक है | उनकी आवाज और भावनुकूल स्वर में उतार-चढाव के साथ-साथ उनकी आँखों सहित पूरा शरीर उनके दिल के हाल को बयान करता है | ‘चक दे’ फ़िल्म के अंतिम दृश्य में जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप फाइनल जीत जाती है और सारी टीम जीत का जश्न मनाने लगती है तब शाहरुख़ की भाव-भंगिमाएँ उनकी खुशी, देशभक्ति, संघर्ष और न जाने कितने अमूर्त भावों को परदे पर जीवंत कर जाती हैं | ‘देवदास’ में अनेक दृश्य उनके संवाद अदायगी के कारण कालजयी बन गए | फिल्मों के अतिरिक्त विभिन्न मंचों पर उनके लेक्चरस भी धारा-प्रवाह और प्रभावशाली होते हैं और उनसे उनके कठिन परिश्रम, कड़े संघर्ष और जटिल जीवन-अनुभवों की बानगी मिलती है | पिछले कुछ समय से उनकी कुछ फ़िल्में आशानुरूप सफलता हासिल करने में नाकाम रही हैं | दूसरे बॉलीवुड अभिनेता जहाँ साउथ की फिल्मों का रिमेक बनाकर सेफ गेम खेल रहे हैं बॉलीवुड का यह बाजीगर अभी भी अपने यूनिक
स्टाइल में हार कर जीतने की कोशिश में लगा है | अगले साल उनकी तीन फ़िल्में पठान, जवान और डंकी उनको फिर से बॉलीवुड बादशाह के पद पर आसीन करेगी या नहीं, ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि बॉलीवुड में भले ही नए कलाकार इनके समान या इनसे बढ़कर अपना स्थान बना लें लेकिन इनका स्थान कभी नहीं ले पाएंगे |

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