भारत के उद्योग : सूती वस्त्र, पटसन व लोहा-इस्पात उद्योग

पूंजी, प्रौद्योगिकी तथा कुशल श्रमिकों के माध्यम से बड़े स्तर पर वस्तुओं का उत्पादन करना, उद्योग कहलाता है | उद्योगों का स्थानीयकारण कई प्रकार के भौगोलिक और भौतिक कारकों पर निर्भर करता है | कच्चे माल की उपलब्धता, शक्ति के साधन, परिवहन के साधन, कुशल श्रमिक, पूंजी, प्रौद्योगिकी तथा सरकार की नीति आदि कुछ प्रमुख कारक हैं जो उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करते हैं |

कच्चे माल के आधार पर उद्योगों के प्रकार

कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को चार प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है —

(1) कृषि पर आधारित उद्योग

जिन उद्योगों के लिए कच्चा मार्ग कृषि से प्राप्त होता है, उन्हें कृषि पर आधारित उद्योग कहते हैं | इनमें सूती वस्त्र , पटसन, रेशमी वस्त्र, चीनी उद्योग आदि शामिल हैं |

(2) खनिजों पर आधारित उद्योग

इन उद्योगों के लिए कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है | एल्युमिनियम , सीमेंट, लोहा-इस्पात उद्योग आदि खनिजों पर आधारित हैं |

(3) पशुओं पर आधारित उद्योग

कुछ उद्योगों के लिए कच्चा माल पशुओं से प्राप्त होता है ; जैसे जूता उद्योग , डेयरी आदि |

(4) वनों पर आधारित उद्योग

इन उद्योगों के लिए लिए कच्चा माल वनों से प्राप्त होता है, जैसे कागज उद्योग, प्लाईवुड निर्माण , माचिस उद्योग आदि |

सूती वस्त्र उद्योग

सूती वस्त्र निर्माण देशी वस्त्र उद्योग है, क्योंकि इसकी स्थापना और विकास मुख्यतः भारतीय पूंजी और उद्यम से हुआ है। इस समय सूती वस्त्र के उत्पादन में भारत का संसार में तीसरा स्थान है।

रोजगार और औद्योगिक उत्पादन की दृष्टि से यह बड़े उद्योगों में से एक है। भारत की 16% औद्योगिक पूंजी तथा 20% औद्योगिक श्रम-शक्ति सूती वस्त्र उद्योग में ही लगी हुई है। इस उद्योग में 10 लाख श्रमिक काम करते हैं।

भारत में सूती वस्त्र उद्योग का विकास

भारत की सबसे पहली आधुनिक सूती वस्त्र की मिल सन 1818 में कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लॉस्टर (Fort Gloster) नामक स्थान पर स्थापित की गई। यह मिल कुछ समय बाद बंद हो गई थी।

सूती वस्त्र उद्योग का वास्तविक आरंभ 1854 में हुआ, जब कवास जी डाबर ने मुंबई में पहली कपड़ा मिल स्थापित की।

सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति

भारत में सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिति कई कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें रंगाई तथा धुलाई के लिए विभिन्न प्रकार के रसायन, सस्ता तथा प्रचुर श्रम, मशीनें, परिवहन, बाजार आदि प्रमुख हैं |

इनके अतिरिक्त नम जलवायु भी आवश्यक है; क्योंकि शुष्क वातावरण में धागा जल्दी टूटता है। तीन मुख्य कारक-विशाल बाजार, प्रचुर कच्चा माल तथा विदेशों से मशीनों तथा कल पुर्जों के आयात की सुगमता भी सूती वस्त्र उद्योग की अवस्थिती को प्रभावित करती है |

भारत में अधिक जनसंख्या तथा उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु के कारण सूती वस्त्रों का बहुत बड़ा बाजार उपस्थित है।

कपास का महत्व इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत का 80% सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादक क्षेत्रों में विस्तारित है।

सूती वस्त्र उद्योग का वितरण

(क ) महाराष्ट्र

भारत में महाराष्ट्र सूती वस्त्र निर्माण में सबसे आगे है। यह राज्य भारत का 38% सूत तैयार करता है। इस राज्य का सूती वस्त्र उद्योग लगभग तीन लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।

यहां कुल 119 मिलें हैं, जिनमें 57 मिलें मुंबई में हैं, जहां दो लाख व्यक्ति काम करते हैं। मुंबई भारत में सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है और इसे ‘कपास का विराट नगर’ कहा जाता है।

(ख ) गुजरात

भारत में सूती वस्त्र उद्योग की दृष्टि से गुजरात दूसरा बड़ा राज्य है। गुजरात में 118 मिलें हैं। राज्य में सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र अहमदाबाद है, जहां 67 मिलें हैं।

मुंबई के बाद अहमदाबाद देश का सबसे बड़ा केन्द्र है। अहमदाबाद को पश्चिम भारत का मानचेस्टर एवं पूर्व का बोस्टन कहा जाता है।

(ग ) मध्य प्रदेश

यहां कपास प्रचुर मात्रा में उगायी जाती है। मिलों को शक्ति प्रदान करने के लिए कोयला भी बहुत है। आर्थिक पिछड़ापन होने के कारण यहां श्रमिक भी आसानी से मिल जाते हैं।

मध्य प्रदेश में सूती वस्त्र के के मुख्य केन्द्र ग्वालियर, उज्जैन, इंदौर, देवास, रतलाम, जबलपुर, भोपाल आदि हैं।

(घ ) पश्चिमी बंगाल

इस राज्य का सबसे बड़ा सूती वस्त्र निर्माण केन्द्र कोलकाता है। कोलकाता को आर्द्र जलवायु, रानीगंज से कोयला, घने जनसंख्या से श्रमिक, रसायन उद्योग से धोने एवं रंगने की सुविधा तथा परिवहन की सेवाएं उपलब्ध हैं।

कोलकाता एक बंदरगाह भी है, जिससे यहां आयात-निर्यात में सुविधा रहती है। परंतु कोलकाता को कपास आसानी से नहीं मिलती है। इस राज्य के अन्य महत्वपूर्ण केंद्र हावड़ा, मुर्शिदाबाद, हुगली, सेरामपुर, श्याम नगर, पानीहर आदि हैं।

(ङ ) उत्तर प्रदेश

इस राज्य में सूती वस्त्र उद्योग का अधिक विकास पश्चिमी भाग में हुआ है। इसका कारण यहां की घनी जनसंख्या, परिवहन की सुविधा तथा सस्ता श्रम है।

इस राज्य का सबसे बड़ा केन्द्र कानपुर है, जिसे ‘उत्तर भारत का मानचेस्टर’ कहते हैं।

(च ) तमिलनाडु

यहां देश की सबसे अधिक 439 मिलें हैं, जिनमें से 416 मिलें कताई की हैं। अधिकांश मिलें छोटे आकार की हैं | अतः यहां का कुल उत्पादन कम है |

कोयंबटूर तमिलनाडु राज्य में सूती वस्त्र निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र है | इसे ‘दक्षिण भारत का मैनचेस्टर’ कहा जाता है |

पटसन उद्योग

सूती वस्त्र उद्योग के बाद पटसन उद्योग भारत का दूसरा बड़ा वस्त्र उद्योग है। हथकरघा उद्योग के रूप में बंगाल में यह प्राचीन समय से प्रचलित है, परंतु पहली पटसन मिल की स्थापना 1854 में कोलकाता के निकट रिशरा नामक स्थान पर हुई।

यह उद्योग निर्यात पर आधारित था, जिसके कारण इसने शीघ्र ही बड़ी तेजी से उन्नति की। पटसन की मिलों का सबसे अधिक संकेंद्रण पश्चिम बंगाल में हुआ है।

भारत का 84% पटसन उत्पादन इसी राज्य से प्राप्त होता है। आंध्र प्रदेश दूसरे स्थान पर है, परंतु यह उत्पादन भारत के कुल उत्पादन का केवल 10% है, जो पश्चिम बंगाल से काफी कम है।

लोहा-इस्पात उद्योग

लोहा और इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है | इस उद्योग से अन्य उद्योगों के लिए आधारभूत सामग्री मिलती है | इस उद्योग से देश के औद्योगिक विकास की नींव पड़ती है |

भारत में लोहा-इस्पात उद्योग का विकास

आधुनिक भारत में लोहा-इस्पात का उदय तब हुआ, जब 1907 में जमशेद जी टाटा ने जमशेदपुर (तत्कालीन साक्ची) के स्थान पर टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (Tata Iron and Steel Company TISCO) की स्थापना की।

इसके पश्चात सन 1919 में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (Indian Iron and Steel Company IISCO) की स्थापना हुई, जिसमें आसनसोल के निकट बर्नपुर नामक स्थान पर लोहा-इस्पात का कारखाना स्थापित किया गया।

इस कम्पनी ने बंगाल आयरन कम्पनी (Bengal Iron Company) नामक कुलटी के स्थान पर स्थापित कारखाने को भी अपने अधिकार में ले लिया।

सन 1923 में कर्नाटक राज्य में भद्रावती नदी के किनारे भद्रावती नामक स्थान पर एक कारखाना स्थापित किया गया।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में लोहा-इस्पात को उन्नत करने के लिए केन्द्रीय सरकार ने हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (Hindustan Steel Limited) की स्थापना की।

इस कम्पनी ने विदेशी सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में राउरकेला (Rourkela), भिलाई (Bhilai) तथा दुर्गापुर (Durgapur) नामक स्थानों पर तीन कारखाने स्थापित किए।

इसके बाद बोकारो (Bokaro) नामक स्थान पर एक और लोहा-इस्पात का कारखाना लगाया गया।

टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर (Tata Ire
Steel Company] Jamshedpur-TISCO)

यह भारत का सबसे पुराना और बड़ा कारखाना है। इसकी स्थापना सन 1907 में जमशेद जी टाटा ने झारखंड के सिंहभूम जिले में साक्ची नामक स्थान पर की। बाद में जमशेद जी के नाम पर इस स्थान का नाम जमशेदपुर रखा गया। यहां 1911 में कच्चा लोहा तथा 1912 में इस्पात बनना शुरू हो गया था।

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड (HindustanSteel Limited)

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् औद्योगिक विकास के लिए अधिकाधिक लोहे तथा इस्पात की आवश्यकता होने लगी |

इसे पूरा करने के लिए भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड की स्थापना की। इस कम्पनी ने राउरकेला, भिलाई तथा दुर्गापुर इस्पात केन्द्रों की स्थापना की। ये सभी केंद्र विदेशी सहयोग से स्थापित किए गये।

राउरकेला

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड का यह कारखान उड़ीसा के सुन्दरगढ़ जिले में सांख तथा कोइल नदियों के संगम पर स्थित है।

इसकी स्थापना जर्मनी की क्रूप्स (Krupps) तथा डिमाग (Demag) कम्पनियों की सहायता से की गई थी।

भिलाई

सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात कारखानों की श्रृंखला में यह दूसरा कारखाना है। इसका निर्माण तत्कालीन सोवियत संघ की सहायता से सन 1957 में किया गया।

इसमें उत्पादन 4 फरवरी, 1959 को शुरू हुआ। यह छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में रायपुर से 22 किमी. दूर कोलकाता-नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है।

दुर्गापुर

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड के तीसरे कारखाने की स्थापना पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में सन 1959 में की गई। इसका निर्माण ब्रिटिश तकनीकी तथा आर्थिक सहायता से हुआ।

बोकारो

हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड का चौथा कारखाना झारखंड के हजारीबाग जिले में बोकारो तथा दामोदर नदियाँ के संगम पर स्थापित किया गया।

इसे तत्कालीन सोवियत संघ की तकनीकी तथा आर्थिक सहायता से 1964 में बनाया गया।

पॉस्को स्टील

कोरिया की Pohang Steel कंपनी (Posco) ने पाराद्वीप स्थान पर स्टील प्लांट स्थापित करने के लिए उड़ीसा सरकार से समझौता किया।

12 मिलियन टन वार्षिक क्षमता वाले इस प्लांट पर 51,000 करोड़ रुपए खर्च हुए और सन 2016 में यह बनकर तैयार हो गया। लोहा व इस्पात के निर्माण के लिए इस प्लांट को 600 मिलियन टन लौह-अयस्क उपलब्ध कराया गया।

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