चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती : त्रिलोचन

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता है ;

इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं | 1️⃣

चंपा सुंदर की लड़की है

सुंदर ग्वाला है : गायें-भैंसें रखता है

चंपा चौपायों को लेकर

चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी है

चंचल है

न ट ख ट भी है

कभी-कभी उधम करती है

कभी-कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूंढ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ – अब कागज गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ | 2️⃣

चंपा कहती है :

तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चंपा चुप हो जाती है | 3️⃣

उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़े काम सरेगा

गांधी बाबा की इच्छा है –

सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढ़ूंगी

तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढूँगी | 4️⃣

मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता

बड़ी दूर है वह कलकत्ता

कैसे उसे संदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी

चंपा पढ़ लेना अच्छा है! 5️⃣

चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो

मैं तो ब्याह कभी न करूंगी

और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूंगी

कलकत्ता मैं कभी न जाने दूंगी

कलकत्ते पर बाजार गिरे | 6️⃣

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