घर की याद : भवानी प्रसाद मिश्र ( Ghar Ki Yad : Bhawani Prasad Mishra )

( यहाँ NCERT की 11वीं कक्षा की हिंदी के पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित कविता ‘घर की याद’ की व्याख्या व प्रतिपाद्य दिया गया है |

घर की याद

आज पानी गिर रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,

रात भर गिरता रहा है,

प्राण मन घिरता रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,

घर नजर में गिर रहा है,

घर की मुझसे दूर है जो,

घर खुशी का पूर है जो, 1️⃣

घर कि घर में चार भाई,

मायके में बहिन आई,

बहिन आई बाप के घर,

हाय रे परिताप के घर!

घर की घर में सब जुड़े हैं,

सब कि इतने कब जुड़े हैं,

चार भाई चार बहिनें,

भुजा भाई प्यार बहिनें, 2️⃣

और माँ बिन-पढ़ी मेरी,

दु:ख में वह गढ़ी मेरी,

माँ कि जिसकी गोद में सिर,

रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,

का यहाँ तक भी पसारा,

उसे लिखना नहीं आता,

जो कि उसका पत्र पाता | 3️⃣

पिताजी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

जो अभी भी दौड़ जाएँ ,

जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,

शेर के आगे न बिचकें,

बोल में बादल गरजता,

काम में झंझा लरजता, 4️⃣

आज गीता पाठ करके,

दंड दो सौ साठ करके,

खूब मुगदर हिला लेकर,

मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,

नैन जल से छाए होंगे,

हाय, पानी गिर रहा है,

घर नजर में तिर रहा है, 5️⃣

चार भाई चार बहिनें,

भुजा भाई प्यार बहिनें,

खेलते या खड़े होंगे,

नजर उनको पड़े होंगे |

पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

रो पड़े होंगे बराबर,

पांचवे का नाम लेकर, 6️⃣

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,

जिसे सोने पर सुहागा,

पिता जी कहते रहे हैं,

प्यार में बहते रहे हैं,

आज उनके स्वर्ण बेटे,

लगे होंगे उन्हें हेटे,

क्योंकि मैं उन पर सुहागा

बंधा बैठा हूँ अभागा, 7️⃣

और माँ ने कहा होगा,

दु:ख कितना बहा होगा,

आँख में किस लिए पानी,

वहाँ अच्छा है भवानी,

वह तुम्हारा मन समझकर,

और अपनापन समझकर,

गया है सो ठीक ही है,

यह तुम्हारी लीक ही है, 8️⃣

पाँव जो पीछे हटाता,

कोख को मेरी लजाता,

इस तरह होओ न कच्चे,

रो पड़ेंगे और बच्चे,

पिता जी ने कहा होगा,

हाय, कितना सहा होगा,

कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,

धीर मैं खोता कहाँ हूँ, 9️⃣

हे सजीले हरे सावन ,

हे कि मेरे पुण्य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसें,

पाँचवें को वे न तरसें,

मैं मजे में हूँ सही है,

घर नहीं हूँ बस यही है,

किंतु यह बस बड़ा बस है,

इसी बस से सब विरस है, (10)

किंतु उनसे यह न कहना,

उन्हें देते धीर रहना,

उन्हें कहना लिख रहा हूँ,

उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,

काम करता हूँ कि कहना,

नाम करता हूँ कि कहना,

चाहते हैं लोग कहना,

मत करो कुछ शोक कहना, (11)

और कहना मस्त हूँ मैं,

काटने में व्यस्त हूँ मैं,

वजन सत्तर सेर मेरा,

और भोजन ढेर मेरा,

कूदता हूँ खेलता हूँ,

दु:ख डट कर ठेलता हूँ,

और कहना मस्त हूँ मैं,

यों न कहना अस्त हूँ मैं, (12)

हाय रे, ऐसा ना कहना,

है कि जो वैसा न कहना,

कह न देना जागता हूँ,

आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,

खुद न समझूँ कौन हूँ मैं,

देखना कुछ बक न देना,

उन्हें कोई शक न देना,

हे सजीले हरे सावन,

हे कि मेरे पुण्य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसें,

पाँचवें को वे न तरसें | (13)

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