सविनय अवज्ञा आंदोलन : कारण, कार्यक्रम, प्रगति और महत्त्व ( Savinay Avagya Andolan : Karan, Karykram, Pragti Aur Mahattv )

सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 ईस्वी में महात्मा गांधी ने चलाया | इस आंदोलन का विस्तृत वर्णन किस प्रकार है :-

सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण ( Savinay Avagya Aandolan ke Pramukh Karan )

1. साइमन कमीशन

साइमन कमीशन 1928 ईस्वी में भारत आया | यह कमीशन 1919 ईस्वी के सुधारों का जायजा लेने आया था | इसमें 7 सदस्य थे परंतु इसमें से कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था | अत: भारतीयों ने इसका विरोध किया | इसका विरोध करने के लिए भारत के विभिन्न भागों में जुलूस निकाले गए | ‘साइमन, गो बैक’ के नारे लगाए गए | लगभग हर स्थान पर काले झंडे दिखाकर इसका विरोध किया गया | साइमन कमीशन का विरोध करने पर लाला लाजपत राय पर अंग्रेजों ने लाठियां बरसा दी जिससे लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई | मरने से पहले उन्होंने कहा था – “मेरे सीने पर पड़ी लाठी की चोट अंग्रेजी राज के कफन की आखिरी कील सिद्ध होगी |” लाला जी की मृत्यु से भारतीयों में असंतोष और अधिक बढ़ गया |

2. नेहरू रिपोर्ट

मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था | इस समिति को भारत का संविधान बनाने का कार्य सौंपा गया था | इस समिति ने 1928 में अपनी रिपोर्ट पेश की | इसमें औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग प्रस्तुत की गई थी परंतु अंग्रेजों ने इसे ठुकरा दिया | अतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा देश के अग्रणी नेता अंग्रेजों के विरुद्ध कोई शक्तिशाली आंदोलन चलाने की सोचने लगे |

3. लाहौर अधिवेशन

1929 ईस्वी में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ | पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में हुए इस अधिवेशन में कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव’ पास किया और निश्चय किया कि अब कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य लेकर रहेगी तथा अन्य किसी भी बात को स्वीकार नहीं करेगी | इसके लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया |

4. 26 जनवरी 1930 का स्वाधीनता दिवस

26 जनवरी, 1930 को स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया गया |यह निर्णय लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा | यह भी निर्णय लिया गया कि अब पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करके ही रहेंगे | इस प्रकार आंदोलन का माहौल तैयार होने लगा |

5. आंदोलन का निर्णय तथा गांधी की ग्यारह मांगें

14 फरवरी, 1930 से 16 फरवरी, 1930 को कांग्रेस की मीटिंग साबरमती आश्रम में हुई | इस मीटिंग में आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया परंतु गांधीजी अंग्रेजों को एक और मौका देना चाहते थे |अतः उन्होंने अंग्रेजों के सामने 11 मांगे रखी |

इनमें से कुछ मांगे निम्नलिखित थी :-

(1) पूर्ण शराबबंदी की जाये

(2) लगान आधा कर दिया जाए

(3) नमक कर बंद कर दिया जाए

(4) सैनिक खर्च आधा कर दिया जाए

(5) विदेशी वस्त्रों पर तटकर लगाया जाए

सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ

जब अंग्रेजों ने गांधीजी की मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया तो गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को आंदोलन शुरू कर दिया | इस आंदोलन को व्यक्तिगत सत्याग्रह ( Vyaktigat Satyagrah ) का नाम भी दिया जाता है | सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ दांडी यात्रा ( Dandi Yatra ) से हुआ | 12 मार्च, 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से 78 अनुयायियों के साथ डांडी / दांडी यात्रा शुरू की | लगभग 240 किलोमीटर का सफर तय करके, 24 दिन के पश्चात 5 अप्रैल, 1930 को वे दांडी पहुंचे | अगले दिन प्रात: पूजा-पाठ करने के पश्चात उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून तोड़ा | इस प्रकार उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन का विधिवतआरंभ किया |

सविनय अवज्ञा आंदोलन का कार्यक्रम

9 अप्रैल, 1930 को गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रम की घोषणा की | इस कार्यक्रम के मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे :-

▪️ नमक कानून तोड़ना

▪️ शराब की दुकानों पर धरना देना

▪️ विदेशी माल की होली जलाना

▪️ सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार करना

◾️ सरकारी नौकरियों को छोड़ना

▪️ सरकारी उपाधियां त्यागना

▪️ कर देना बंद करना

▪️ सरकारी अदालतों का बहिष्कार करना

▪️ स्वदेशी को अपनाना

सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति

जल्दी ही सविनय अवज्ञा आंदोलन सारे देश में फैल गया | स्थान-स्थान पर कानून तोड़े जाने लगे | विदेशी माल का बहिष्कार किया गया | विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई | किसानों ने कर देना बंद कर दिया | सरकारी स्कूलों तथा अदालतों का परित्याग कर दिया गया | सरकारी नौकरियों तथा उपाधियों को त्याग दिया जाने लगा | जगह-जगह धरने दिए गए | हड़तालें होने लगी | महिलाएं भी इस काम में पीछे नहीं थी | इस प्रकार इस आंदोलन ने अंग्रेजों की कमर तोड़ दी | आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने दमन-चक्र तेज़ कर दिया | गांधीजी को बंदी बना लिया गया परंतु इससे भी आंदोलन की गति पर कोई प्रभाव न पड़ा | लगभग 90000 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया जिनमें बहुत सी महिलाएं भी थी | अनेक लोगों पर लाठीचार्ज किया गया, गोलियां चलाई गई | इस प्रकार हजारों लोग मारे गए परंतु फिर भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई | ऐसा लगता था कि इस बार भारतीय पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करके ही दम लेंगे |

प्रथम गोलमेज सम्मेलन, 1930

12 नवंबर, 1930 को प्रथम गोलमेज सम्मेलन का लंदन में आयोजन हुआ परन्तु कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया | अतः प्रथम गोलमेज सम्मेलन असफल रहा | भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन उसी प्रकार चलता |

गांधी-इरविन समझौता, 1931

सविनय अवज्ञा आंदोलन को जोर पकड़ता देख अंग्रेज सरकार घबरा गई | अतः सरकार ने समझौते का प्रयास किया | 5 मई, 1931 को गांधीजी तथा तत्कालीन वायसराय इरविन के बीच एक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irvine Samjhota ) के नाम से जाना जाता है | इस समझौते के अनुसार निम्नलिखित आश्वासन दिए गए :-

▪️ सरकार सभी जन विरोधी अध्यादेश वापस ले लेगी

▪️ सभी बंदी रिहा कर दिए जाएंगे

▪️ समुद्र तट के निवासी बिना कर के नमक बना सकेंगे

▪️ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस की मांगों पर विचार किया जाएगा |

दूसरा गोलमेज सम्मेलन, 1931

7 सितंबर, 1931 को दूसरे गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ | कांग्रेस की तरफ से इस में गांधी जी ने भाग लिया परन्तु वहां उनकी मांगों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया | गांधी जी को निराश होकर खाली हाथ वापस लौटना पड़ा |

आंदोलन का पुनः आरंभ

लंदन से वापस आकर गांधी जी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ कर दिया | एक बार फिर बड़ी संख्या में लोग पहले की अपेक्षा अधिक उत्साह और क्रोध से आंदोलन में कूद पड़े | अत: आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने पहले की अपेक्षा अधिक अत्याचार करने शुरू कर दिए | कुछ महीनों में ही सारी जेलें भर गई | अस्थाई जेलों का निर्माण किया गया | एक लाख से अधिक आंदोलनकारियों को जेलों में बंद कर दिया गया परंतु इससे भी भारतीयों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई | ऐसे समय में अंग्रेजों ने एक बार फिर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सहारा लिया | 1932 ईo में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैम्से मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा कर दी | इसके अनुसार हरिजनों को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की घोषणा कर दी गई | 1932 ईo में पुणे में गांधी जी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ जिस पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है | इस समझौते के अनुसार यह निर्णय लिया गया कि हरिजनों को अलग प्रतिनिधित्व नहींं दिया जाएगा बल्कि सामान्य सीटों में ही उन्हें आरक्षण दिया जाएगा | इस सांप्रदायिक निर्णय का यह परिणाम निकला कि सविनय अवज्ञा आंदोलन कमजोर पड़ गया | अब इस आंदोलन का वह प्रभाव ना रहा | लोगों का उत्साह कम होने लगा और 1934 ईo तक यह आंदोलन स्वत: ही समाप्त हो गया |

◼️ 1930-34 तक चलने वाले सविनय अवज्ञा आंदोलन को देखने से तो ऐसा लगता है कि इसका स्वतंत्रता आंदोलन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा परंतु वास्तविकता इसके विपरीत है | वास्तव में इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया | लोगों का अंग्रेजी सरकार से विश्वास पूरी तरह उठ गया | वे दिन-रात स्वतंत्रता के विषय में सोचने लगे | एक पत्रकार ने इस आंदोलन के महत्व के विषय में लिखा है – “भारतीय लोगों के मस्तिष्क मुक्त हो गए थे उन्होंने अपने हृदयों में स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी |”

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