असहयोग आंदोलन : कारण, आरंभ व प्रसार, कार्यक्रम और महत्व ( Asahyog Andolan : Karan, Karykram, Arambh, Prasar V Mahattv )

असहयोग आंदोलन 1920 ईस्वी में महात्मा गांधी ने चलाया |असहयोग आंदोलन का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :-

असहयोग का अर्थ

असहयोग का सामान्य अर्थ है – सहयोग ने करना | असहयोग आंदोलन का मुख्य कार्यक्रम सरकार का हर क्षेत्र में असहयोग करना था | सरकारी उपाधियों का त्याग करना, सरकारी अदालतों को त्याग देना, सरकारी स्कूल-कॉलेजों का त्याग करना, विदेशी माल का त्याग करना आदि बातों को इस आंदोलन में अपनाया गया | लोगों ने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को इतनी दृढ़ता से अपनाया की सरकार पूरी तरह से लाचार हो गई

असहयोग आंदोलन के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां / असहयोग आंदोलन के प्रमुख कारण

1920 ईस्वी से पूर्व ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई कि गांधीजी अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चलाने के लिए मजबूर हो गए | ऐसी ही कुछ घटनाओं और परिस्थितियों का वर्णन इस प्रकार से है जो असहयोग आंदोलन का प्रमुख कारण बनी |

1. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव

1914 ईस्वी में प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हो गया | इस विश्व युद्ध में भारतीयों ने अंग्रेजों का साथ दिया था | भारतीयों को यह आशा थी कि इस युद्ध के जीतने के बाद ब्रिटिश सरकार भारत में अनेक सुधार करेगी | युद्ध के दौरान भारतीयों ने तन-मन-धन से अंग्रेजों की सहायता की | युद्ध में जो धन खर्च हुआ उसका एक बड़ा हिस्सा भारत से गया | भारत से अनाज का निर्यात भी किया गया | अतः युद्ध के दौरान भारत की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई | इसी समय भारत में कई स्थानों पर अकाल पड़ा | कई स्थानों पर प्लेग फैल गई जिससे लाखों लोग मारे गए परंतु सरकार ने भारतीयों की स्थिति को सुधारने के लिए कोई उपाय नहीं किया | यहां तक सरकार युद्ध से पहले किए गए वादों से भी मुकर गई | अतः भारतीयों में असंतोष फैलना स्वाभाविक था |

2. रूस की साम्यवादी क्रांति का प्रभाव

1917 ईo में रूस में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति हुई | इस क्रांति ने जार का तख्ता पलट दिया और रूस में मजदूरों और किसानों की सरकार बनी | इस क्रांति ने भारतीयों के मन में भी आशा की किरण जगह दी | अब वह भी स्वतंत्रता के सपने देखने लगे | यही कारण है कि असहयोग आंदोलन में बड़ी संख्या में मजदूरों, किसानों और पीड़ित लोगों ने भाग लिया |

3. अन्याय पूर्ण रौलट एक्ट

1919 ईस्वी में सरकार ने रोलेट एक्ट पास किया | इस एक्ट के अनुसार किसी भी भारतीय को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था | साधारण लोग इस कानून का अर्थ लेते थे – “कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं, कोई अपील नहीं” |

सरकार ने रौलट एक्ट आंदोलन को रोकने के लिए बनाया था | वास्तव में यह एक काला कानून था जिसका पूरे भारत में विरोध किया गया | इस कानून के बारे में गांधी जी ने कहा था कि अब सत्याग्रह के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया |

4. जलियांवाला बाग हत्याकांड

रौलट एक्ट के विरोध में देश के कोने-कोने में सभाएं तथा धरने दिए जाने लगे | पंजाब में इसका विशेष जोर था | लाहौर, अमृतसर, मुल्तान आदि स्थानों पर सभाएं की गई | सरकार ने दमन की नीति का सहारा लिया और अनेक प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया | इससे आंदोलन और भड़कने लगा | लोग बड़ी संख्या में जुलूस व धरनों में शामिल होने लगे | इसी प्रकार का एक शांतिपूर्ण धरना 13 अप्रैल, 1980 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में दिया गया जिसमें लगभग 20000 लोगों ने भाग लिया | जलियांवाला बाग चारों ओर से मकानों से गिरा था और बाहर निकलने का रास्ता बहुत तंग था | जब सभा चल रही थी तभी जनरल डायर वहां पहुंच गया और बिना चेतावनी दिए वहां उसने अंधाधुंध गोलियां चला दी | लगभग 1650 गोलियां दागी गई | सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इसमें 379 लोग मारे गए परंतु वास्तव में मरने वालों की संख्या 1000 से अधिक थी | इस गोलीबारी में 1200 से अधिक लोग घायल हो गए | 15 अप्रैल को सारे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया और सारे पंजाब में आतंक का राज स्थापित हो गया | सारे देश में अंग्रेजों की बर्बर घटना का विरोध किया गया | गांधी जी ने भी इस घटना के विरोध में कुछ करने का मन बना लिया था |

5. हंटर कमेटी की रिपोर्ट

जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण अंग्रेजों की हर तरफ आलोचना होने लगी | अतः सरकार ने दबाव में आकर इस हत्याकांड की जांच के लिए ‘हंटर कमेटी’ का गठन किया | 19 अक्टूबर, 1919 को हंटर कमेटी का गठन किया गया था | हंटर कमेटी ने 24 मई, 1920 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की | रिपोर्ट में सरकार को दोषी नहीं ठहराया गया | डायर के कार्य की निंदा तक भी नहीं की गई | यही नहीं जनरल डायर को ब्रिटेन में सम्मानित भी किया गया | इस प्रकार हंटर कमेटी की रिपोर्ट ने भारतीयों को और अधिक भड़का दिया |

6. 1919 के अधिनियम की निराशा

1919 ईस्वी के अधिनियम से भारतीयों को केवल निराशा हाथ लगे | भारतीयों की अनेक मांगों को ठुकरा दिया गया | औपनिवेशिक स्वराज्य की मांग को फिर से निरस्त कर दिया गया | प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया गया परंतु सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली का और अधिक विस्तार कर दिया गया | भारतीयों ने इन सुधारों का विरोध किया |

7. कांग्रेस-रिपोर्ट की अवहेलना

पंजाब में हुए हत्याकांड की जांच करने के लिए कांग्रेसमें एक समिति नियुक्त की महात्मा गांधी मोतीलाल नेहरू तथा मदन मोहन मालवीय समिति के सदस्य थे इस समिति ने जनरल डायर के कार्य की कटु आलोचना की समिति ने दोषियों को दंड देने तथा मृतकों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने की मांग की परंतु सरकार ने इस और कोई ध्यान नहीं दिया अतः कांग्रेस के पास आंदोलन के सिवा और कोई चारा न रहा |

असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव

सितंबर 1920 ईस्वी में कोलकाता में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन हुआ इससे अधिवेशन में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया | इससे अधिवेशन में असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को भी निर्धारित किया गया |

असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को दो भागों में बांटा जा सकता है – (क ) नकारात्मक पक्ष तथा ( ख ) सकारात्मक पक्ष |

असहयोग आंदोलन का नकारात्मक कार्यक्रम

🔹 सरकारी स्कूल कॉलेजों में न जाना

🔹 सरकारी अदालतों और सरकारी समारोहों का बहिष्कार करना

🔹 सरकारी उपाधियों को त्यागना

🔹 विदेशी माल को त्यागना

🔹 सरकारी नौकरियों को छोड़ना

🔹 चुनावों का बहिष्कार करना

असहयोग आंदोलन का सकारात्मक कार्यक्रम

🔹 अपनी शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना करना

🔹 आपसी झगड़ों को पंचायतों में सुलझाना

🔹 स्वदेशी माल को अपनाना

🔹 चरखे का प्रचार करना

🔹 हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना

असहयोग आंदोलन का आरंभ व प्रसार

असहयोग आंदोलन का प्रसार करने के लिए गांधीजी ने सारे देश का भ्रमण किया | जल्दी ही यह आंदोलन सारे देश में फैल गया | क्योंकि यह आंदोलन खिलाफत आंदोलन के साथ-साथ चलाया गया था ; अतः इस आंदोलन में हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमानों ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया | लाखों लोग सड़कों पर उतर आए | सरकारी स्कूल-कॉलेजों में विद्यार्थियों ने जाना छोड़ दिया | सरकारी अदालतों का बहिष्कार किया गया | सरकार द्वारा दी गई उपाधियों को त्याग दिया गया | विदेशी माल का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी का प्रचार किया गया | विदेशी माल विशेषकर विदेशी कपड़े की होली जलाई गई | इस प्रकार इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया | अत: आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दमन की नीति का सहारा लिया | हजारों लोग मार दिए गए | लगभग पाँच लाख लोगों को बंदी बना लिया गया परंतु फिर भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई | ऐसा लगता था कि अब जल्दी ही भारत स्वतंत्र हो जाएगा |

असहयोग आंदोलन का अंत / चौरी-चौरा की घटना

5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर किसानों के जुलूस पर पुलिस ने गोलियां चलवा दी | इससे भीड़ उत्तेजित हो गए और उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी | एक थानेदार सहित 21 पुलिस कर्मी जिंदा जल गए | गांधी जी इस हिंसात्मक घटना से बहुत दुखी हुए | अतः उन्होंने असहयोग आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी | इस प्रकार सफलता की ओर बढ़ रहे असहयोग आंदोलन का अंत हो गया |

असहयोग आंदोलन का महत्व

यह सही है कि असहयोग आंदोलन अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ परंतु फिर भी इस आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती प्रदान की | ‘स्वदेशी’ और ‘बहिष्कार’ जैसे हथियार दिए जिन्होंने आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाई | इस आंदोलन में पहली बार सारे देश की जनता अपनी पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर एक समान उद्देश्य से अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित हुई | इस आंदोलन ने अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर भारत पर शासन करना है तो भारतीयों की मांगों को अनसुना नहीं किया जा सकता ; उन्हें कुछ ना कुछ सुविधाएं देनी होंगी | यही कारण है कि इस आंदोलन के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था में अनेक सुधार किये | इस आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के भविष्य को भी निर्धारित किया | इस आंदोलन के पश्चात विभिन्न प्रांतों में आंदोलनों को बढ़ावा मिला | अब देश का कोई भी क्षेत्र राष्ट्रीय भावना से अछूता नहीं रहा और सारे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध की भावना पनपने लगी |

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