राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में सहायक तत्व या कारक ( Rashtriya Andolan Ke Vikas Mein Sahayak Tattv Ya Karak )

1857 ईo क्रांति असफल हो गई थी परंतु इस क्रांति के पश्चात भारत में राष्ट्रीयता का तेजी से विकास होने लगा | 1857 ईo की क्रांति ने लोगों को इस बात का एहसास करा दिया कि अगर वे संगठित होकर अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन करें तो वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में सफल होंगे | 1857 की क्रांति के अतिरिक्त भी अन्य बहुत से कारण थे जिनके कारण भारत में धीरे-धीरे राष्ट्रीय आंदोलन को बल मिलने लगा | राष्ट्रीय आंदोलन के लिए राष्ट्रीयता की भावना का विकास होना आवश्यक था | भारत में राष्ट्रीयता के उदय / राष्ट्रवाद के उदय के लिए अनेक कारक उत्तरदायी थे जिनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है :-

1. भारतीयों का आर्थिक शोषण

अंग्रेजों ने भारत का खूब आर्थिक शोषण किया | भारतीय उद्योगों तथा कृषि को तहस-नहस कर दिया | अंग्रेजों ने ऐसी भू राजस्व व्यवस्था लागू की कि भारतीय किसान दयनीय स्थिति में पहुंच गए | भारतीय उद्योग भी धीरे-धीरे नष्ट होने लगे क्योंकि भारतीय बाजार में ब्रिटेन का सामान बिकने लगा | यह माल सस्ता भी था तथा सुंदर भी | अत: भारतीय कारीगर बेकार हो गए | इस प्रकार भारतीयों के मन में अंग्रेजों के प्रति असंतोष बढ़ने लगा क्योंकि अंग्रेजी उनकी इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार थे | इससे राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ |

2. एक समान प्रशासनिक व्यवस्था

1857 ईo तक अंग्रेजों ने लगभग सारे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था | उन्होंने सारे भारत में एक जैसी प्रशासनिक प्रणाली लागू की | समान न्याय प्रणाली, समान कानून, समान नागरिक सेवाएं तथा एक जैसी मुद्रा का चलन शुरू किया | इससे देश के विभिन्न देशों में रहने वाले लोग एक सूत्र में बंध गए | अब कोई भी समस्या एक क्षेत्र की समस्या नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या थी | उदाहरण के लिए भूमि कर में वृद्धि करने पर सारे देश के किसान अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए | इस प्रकार समान प्रशासनिक प्रणाली ने राष्ट्रीयता के उदय में सहायता की |

3. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास

19वीं सदी में यातायात तथा संचार के साधनों का तेजी से विकास हुआ | इससे देश के कोने-कोने में रहने वाले लोग एक दूसरे के साथ जुड़ने लगे | दूरी अब कोई समस्या नहीं थी | राष्ट्रवादी यातायात के साधनों के द्वारा दूर-दूर के स्थानों तक जाकर लोगों को जागृत करने लगे | इसी प्रकार संचार के साधनों के द्वारा एक खबर जल्दी ही पूरे देश की खबर बन जाती थी | इस प्रकार राष्ट्रीयता का प्रसार होने लगा |

4. धार्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण

19वीं शताब्दी में अनेक सामाजिक-धार्मिक आंदोलन हुए | इनमें से ब्रह्मसमाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसॉफिकल सोसायटी, प्रार्थना समाज आदि प्रमुख थे | इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज तथा धर्म के क्षेत्र में आई बुराइयों को दूर करना था | इन आंदोलनों के प्रभाव से सामाजिक असमानता दूर होने लगी | जाति-पाती के बंधन ढीले पड़ने लगे, रूढ़िवादिता तथा अंधविश्वास दूर होने लगे | इस प्रकार धार्मिक-सामाजिक आंदोलन भी राष्ट्रीयता के विकास में सहायक सिद्ध हुए |

5. अंग्रेजी भाषा, शिक्षा तथा साहित्य का प्रभाव

अंग्रेजों को भारत में शासन चलाने के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता थी | इतनी बड़ी संख्या में अंग्रेज कर्मचारियों को नियुक्त करना संभव नहीं था | अतः अंग्रेजों ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा लागू की | इसके पीछे अंग्रेजों के दो उद्देश्य थे – (1) एक सस्ते कर्मचारी प्राप्त करना, (2) भारतीयों को अंग्रेजी रंग में ढालना ; परंतु अंग्रेजों का यह काम भारतीयों के लिए वरदान सिद्ध हुआ भारतीयों को अंग्रेजी भाषा के रूप में एक सांझी भाषा मिल गई | अब तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती आदि सभी अंग्रेजी भाषा में एक दूसरे से बात कर सकते थे | दूसरा लाभ यह हुआ कि भारतीय यूरोपीय साहित्य पढ़ने लगे | अब भारतीय भी लोकतंत्र, समानता स्वतंत्रता आदि अवधारणाओं से परिचित होने लगे | अतः सभी भारतीय संगठित होने लगे तथा अपने लिए लोकतंत्र, स्वतंत्रता और समानता की मांग करने लगे | इससे राष्ट्रीयता का उदय हुआ |

6. प्रेस और साहित्य की भूमिका

प्रेस ने भारत में अखिल भारतीय चेतना जगाई | प्रेस ने देशभक्ति की भावना का प्रसार किया | प्रेस के कारण ही सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ | 1821 ईo में ‘संवाद कौमुदी’ , 1815 ईo में ‘अमृत बाजार पत्रिका’ , 1877 ईo में ‘द ट्रिब्यून’ जैसे पत्र प्रकाशित होने लगे | इन पत्रों में राष्ट्रीय नेताओं के विचार प्रकाशित होते थे तथा अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों की आलोचना की जाती थी |

इसके अतिरिक्त साहित्य ने भी लोगों में राष्ट्रीय चेतना का विकास किया | अनेक निबंध, कहानी, कविताएं, उपन्यास ऐसे थे जो अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर प्रहार करते थे | उदाहरण के लिए बालमुकुंद गुप्त ‘शिव शंभू के चिट्ठे’ नामक कॉलम में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर व्यंग्य करते थे | प्रेमचंद ने ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर प्रकाश डाला और भारतियों में देशभक्ति की भावना का विकास किया | बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास ‘आनंदमठ’ भी एक ऐसा ही उपन्यास था अतः स्पष्ट है कि प्रेस तथा साहित्य ने राष्ट्रीयता के उदय में निर्णायक भूमिका निभाई |

7. अतीत का गौरवगान

अंग्रेजों के शासन के कारण भारतीयों में हीन भावना आने लगी थी | अंग्रेजी लेखकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि भारतीय अपना शासन चलाने के योग्य नहीं हैं | उनमें प्रशासनिक योग्यता नहीं है | उनकी संस्कृति निकृष्ट है | परंतु भारतीय लेखकों ने इतिहास से ऐसे उदाहरण दिए जो यह सिद्ध करते हैं कि भारतीय विश्व में सर्वश्रेष्ठ रहे हैं | भारत ने ही दुनिया को ज्ञान दिया तथा सही रास्ता दिखाया | सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, अकबर आदि के शासनकाल का अध्ययन करने पर पता चलता है कि भारत की प्रशासनिक व्यवस्था विश्व में सर्वोत्तम थी | इससे भारतियों की हीन भावना दूर होने लगी और वे अपने स्वर्णिम अतीत को फिर से हासिल करने के लिए संगठित होने लगे | इससे संपूर्ण भारत में एकता की भावना उत्पन्न होने लगी |

8. अंग्रेजों की जातीय भेदभाव की नीति

अंग्रेज जातीय भेदभाव की नीति अपनाते थे | वे स्वयं को भारतीयों से श्रेष्ठ समझते थे तथा भारतीयों को हीन समझते थे | यूरोपीय लोगों के लिए विशेष क्लब, सिनेमाघर, रेस्तरां बने थे | भारतीय इन स्थानों पर नहीं जा सकते थे | अनेक सार्वजनिक स्थलों पर भी भारतीयों का जाना वर्जित होता था | अनेक होटलों के बाहर लिखा होता था – इंडियंस एंड डॉग्स आर नॉट अलाउड. अतः सभी भारतीय एकजुट होने लगे |

9. सांस्कृतिक पुनर्जागरण

स्वामी विवेकानंद, राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद आदि महापुरुषों ने भारतीयों को याद दिलाया कि भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ रही है | इससे भारतियों की सोई हुई आत्मा जाग उठी और भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ |

10. भारतीयों को उच्च पदों से वंचित रखना

अंग्रेज भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं करते थे | उन्हें केवल क्लर्क तक सीमित रखा जाता था | भारतीय सिविल सेवा की शर्तें भी इस ढंग से बनाई गई थी कि कोई भी भारतीय इस परीक्षा को पास न कर सके | जो भारतीय इस परीक्षा को पास कर जाता था उसे भी महत्वपूर्ण विभागों से दूर रखा जाता था तथा मामूली सी बात के लिए उनसे पद छीन लिया जाता था | सुरेंद्रनाथ बनर्जी के साथ ऐसा ही हुआ था | अतः भारतीयों में असंतोष था | सभी भारतीय एकजुट होकर अंग्रेजों की इस नीति का विरोध करने लगे | इससे राष्ट्रीयता का विकास हुआ और राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ावा मिला |

11. 1857 की क्रांति का प्रभाव

1857 ईo की क्रांति ने अंग्रेजों की जड़ें हिला दी थी | अंग्रेजों ने बल प्रयोग के द्वारा इस क्रांति का दमन कर दिया | उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया | अत: जनता में असंतोष था | शहीद क्रांतिकारी आम जनता में हीरो बन चुके थे | लोग उनसे प्रेरणा लेकर क्रांतिकारी बनना चाहते थे तथा अंग्रेजों के तख्ते को पलट देना चाहते थे | इस प्रकार अट्ठारह सौ सत्तावन ईस्वी की क्रांति राष्ट्रीयता के उदय में सहायक सिद्ध हुई |

12. लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीति

लॉर्ड लिटन ने अपने शासनकाल में अनेक गलत नीतियां अपनाई जिससे भारतीयों में आक्रोश बढ़ने लगा | लॉर्ड लिटन ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा के लिए आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी | 1877 ईस्वी में महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित किया गया था | इस अवसर पर दिल्ली में विशाल दरबार का आयोजन किया गया जिस पर अपार धन राशि खर्च की गई | इसी वर्ष भारतीय जनता अकाल से मर रही थी परंतु इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया | यही नहीं अनाज इंग्लैंड निर्यात भी कर दिया गया | 1878 ईस्वी में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट पास किया गया तथा भारतीय प्रेस पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए | लॉर्ड लिटन के इन कार्यों की वजह से भारतीयों में असंतोष बढ़ गया और वे अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए |

◼️ उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि 19वीं शताब्दी में ऐसी अनेक घटनाएं घटी कि भारतीय एकजुट होने लगे और भारत में राष्ट्रीयता का विकास होने लगा | इस दिशा में अंग्रेजों की दमनकारी तथा शोषणकारी नीति, धार्मिक व सामाजिक सुधार, अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार, प्रेस तथा साहित्य आदि तत्वों ने विशेष भूमिका निभाई |

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