संक्षेपण : अर्थ, विशेषताएं और नियम ( Sankshepan : Arth, Visheshtayen Aur Niyam )

संक्षेपण एक कला है जिसका संबंध किसी विस्तृत विषय वस्तु या संदर्भ को संक्षेप में प्रस्तुत करने से होता है | विभिन्न संस्थानों, कार्यालयों और विद्यार्थियों के लिए इसका विशेष महत्व है | इसके अंतर्गत अनावश्यक और अप्रासंगिक अंशों को छोड़कर मूल भाव को ध्यान में रखकर उपयोगी तथ्यों को संक्षेप में प्रकट किया जाता है | अनेक समानताएं होते हुए भी संक्षेपण सार, भावार्थ और निष्कर्ष से भिन्न होता है |

संक्षेपण की विशेषताएं

1. संक्षिप्तता

संक्षेपण सदा ही मूल पाठ से संक्षिप्त होता है | यह मूल पाठ का एक तिहाई होता है जिसे सूत्रात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है | इसमें विस्तार अथवा व्याख्या को किसी भी अवस्था में ग्रहण नहीं किया जाता |

2. पूर्णता

संक्षेपण में पूर्णता का गुण सदा विद्यमान रहना चाहिए | किसी अच्छे संक्षेपण की पहचान यही है कि उसे पढ़ने के बाद मूल भाव में दिए भावों को जानने की इच्छा नहीं रहनी चाहिए | संक्षेपण मूल पाठ से विकसित स्वत: पूर्ण रचना है जिसमें मूल पाठ के सभी तथ्य आवश्यक रूप से आ जाने चाहिए |

3. शुद्धता

संक्षेपण पूर्ण रूप से भाव और भाषा की दृष्टि से शुद्ध होना चाहिए | उसमें शुद्ध वाक्य संरचना के लिए सटीक शब्दों का चुनाव आवश्यक है | मुहावरों, लोकोक्तियां के अर्थ का सही ज्ञान अनिवार्य है | संक्षेपणकर्त्ता का शब्द-भंडार विशाल होना चाहिए |

4. क्रमबद्धता

संक्षेपण के अच्छे रूप के लिए मूल पाठ के सभी तथ्यों को सरल रूप में प्रस्तुत करने के साथ-साथ क्रमबद्धता का ध्यान रखना भी आवश्यक है | अगर तथ्यों में क्रमबद्धता नहीं है तो इससे संक्षेपण अव्यवस्थित होकर केवल महत्वपूर्ण तथ्यों का संकलन बनकर रह जाएगा | क्रमबद्धता से विषय प्रतिपादन ही अच्छा नहीं होता बल्कि सुसंबद्धता के कारण प्रभावोत्पादकता में भी वृद्धि होती है |

5. स्पष्टता

संक्षेपण कार्य में विषय और भावों की स्पष्टता निश्चित रूप से होनी चाहिए | इसके लिए ऐसी भाषा और शैली का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सहज होने के कारण अर्थ को स्पष्ट करने में समर्थ हो |शब्द और वाक्य सरल होने चाहिए |

6. मौलिकता

संक्षेपण में मौलिकता का होना आवश्यक है | कुछ शब्दों और वाक्यों को छोड़कर शेष सारी सामग्री को ज्यों का त्यों लिखना संक्षेपण नहीं होता | मूल भाव और तथ्यों को नए वाक्यों में संयोजित किया जाना चाहिए |

7. उपयुक्त शीर्षक

संक्षेपण करने के पश्चात उचित शीर्षक के चयन से विषय सामग्री को एक ही दृष्टि में जाना जा सकता है | शीर्षक लंबा-चौड़ा और कठिन नहीं होना चाहिए | उसका सटीक होना आवश्यक है | संक्षेपण का शीर्षक मूल पाठ के मूल भाव के अनुकूल होना चाहिए |

8. समाहार शक्ति

संक्षेपण में मूल पाठ के सभी तथ्यों को समाहित किया जाना चाहिए | कोई भी ऐसा तथ्य छूटना नहीं चाहिए जिससे मूल पाठ के भाव का ह्रास होता हो | तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर नहीं लिखना चाहिए | अनावश्यक बातों को निकाल देना चाहिए | तथ्यों को सूची के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए इससे नीरसता उत्पन्न होती है | रचनात्मकता का गुण विद्यमान रहना चाहिए |

संक्षेपण-प्रक्रिया के नियम

संक्षेपण एक कला है | इस कला में प्रवीण होने के लिए आवश्यक है कि संक्षेपणकर्त्ता को इसकी विधि व नियमों का पूरा ज्ञान हो | संक्षेपण-प्रक्रिया के नियमों का ज्ञान न होने की अवस्था में इसे सही प्रकार से लिखना कठिन है | सही भाषा के प्रयोग और रचनात्मक कौशल से संक्षेपण-कार्य सहज, सुंदर और प्रभावी बनता है | प्राय: संक्षेपण करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए : –

1. मूल पाठ का गहन अध्ययन

संक्षेपण के लिए दिए गए मूल पाठ को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसकी प्रमुख बातों को समझने का प्रयत्न करना चाहिए | यदि एक बार पढ़ने से समझ में न आए तो उसे तब तक पढ़ना चाहिए जब तक पूरी तरह समझ में न आ जाए | पाठ पर चिंतन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई मुख्य बात रह ना जाए |

2. प्रमुख तथ्यों का चुनाव

पाठ के मुख्य भागों और तथ्यों को चुनकर उन्हें रेखांकित कर लेना चाहिए | उन्हें एक ही स्थान पर लिखा भी जा सकता है | ऐसा करने से संक्षेपण कार्य करते समय किसी महत्त्वपूर्ण भाव या तथ्य के छूट जाने की आशंका नहीं रहती |

3. उपयुक्त शब्द-चयन

मूल पाठ के सभी भावों और तथ्यों को अपने शब्दों में लिखने का कार्य भी महत्वपूर्ण है | ऐसा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए कि तथ्यों में क्रमबद्धता बनी रहे | शब्द-चयन भी सर्वथा सरल, सरस व भावानुकूल होना चाहिए | जानबूझकर कठिन शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए | अलंकारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए | लेकिन भाषा में लय व प्रवाह का गुण रहना चाहिए |

4. मौलिकता

संक्षेपण करते समय मूल पाठ के वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए | अपितु स्वयं वाक्यों की रचना करनी चाहिए | इससे मौलिकता के गुण की प्राप्ति होगी और संक्षेपण प्रभावशाली होगा |

5. सूत्रात्मक भाषा का प्रयोग

संक्षेपण करते समय सूत्रात्मक भाषा का प्रयोग करना चाहिए | ऐसा करने से शब्द-संख्या सीमित रहती है और गागर में सागर का गुण बना रहता है जो संक्षेपण का मूल उद्देश्य है |

6. उद्धरणों को हटाना

मूल पाठ में यदि तरह-तरह के उद्धरण और उदाहरण दिए गए हैं तो उनकी उपेक्षा की जानी चाहिए | संक्षेपण में विचार-पुष्टि का कोई महत्व नहीं है जबकि मूल पाठ में उसका महत्व होता है |

7. अन्य पुरुष शैली का प्रयोग

संक्षेपण करते समय प्रत्यक्ष कथन को परोक्ष कथन में परिवर्तित कर देना चाहिए तथा उत्तम और मध्यम पुरुष के स्थान पर अन्य पुरुष कथन का प्रयोग करना चाहिए |

8. भूतकालिक क्रियाओं का प्रयोग

संक्षेपण में यथासंभव भूतकालिक क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिए | जहां पर सार्वभौमिक सत्य का भाव होता है केवल वहीं पर वर्तमान काल का प्रयोग करना चाहिए |

9. विराम चिह्नों का उचित प्रयोग

संक्षेपण करते समय उचित विराम चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे पाठ में संक्षिप्तता का विकास होता है और सही अर्थ की अभिव्यक्ति होती है | भाषा को सरलता और शुद्धता प्राप्त होती है |

10. विवरणात्मक शैली का प्रयोग

मूल पाठ में यदि संवादात्मक शैली का प्रयोग किया गया है तो उसके स्थान पर विवरणात्मक शैली का प्रयोग करना चाहिए |

11. शब्द-सीमा का निर्धारण

संक्षेपण करते समय शब्द-सीमा का ध्यान रखना चाहिए | उसे मूल पाठ का लगभग एक तिहाई होना चाहिए | बढ़ने या घटने पर उसके वाक्यों को छोटा या बड़ा कर उसे उचित आकार दिया जाना चाहिए |

12. मूल पाठ से मिलान

संक्षेपण कर लेने के पश्चात उसका मूल पाठ से मिलान कर लेना चाहिए | यदि मूल पाठ का कोई महत्वपूर्ण तथ्य छूट गया हो उसे जोड़ लेना चाहिए | यदि कोई अंश प्रतिकूल लगता है या ऐसा लगता है कि जो अनावश्यक रूप से इसको विस्तार प्रदान कर रहा है तो उसे निकाल देना चाहिए या उसके वाक्यों में परिवर्तन करके उसका आकार छोटा या बड़ा किया जा सकता है |

संक्षेप में कहा जा सकता है कि संक्षेपण एक कला है जिसका मुख्य उद्देश्य किसी बड़ी रचना को छोटे आकार में प्रस्तुत करके उसके संपूर्ण भाव को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना है |

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