मैला आँचल : नायकत्व पर विचार ( Maila Aanchal : Nayaktv Par Vichar )

मैला आंचल ( Maila Aanchal ) फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है | अनेक विद्वान मैला आंचल उपन्यास को न केवल आंचलिक उपन्यास धारा का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास मानते हैं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं | यही कारण है कि यह उपन्यास फणीश्वरनाथ रेणु का प्रतिनिधि उपन्यास बन गया है |

प्रायः सभी उपन्यासों का कोई न कोई नायक अवश्य होता है परंतु मैला आंचल में उपन्यासकार ने किसी भी पात्र को इतना अधिक महत्व नहीं दिया कि उसे नायक घोषित किया जा सके | मैला आंचल उपन्यास में प्रमुख पात्र हैं – डॉक्टर प्रशांत, तहसीलदार विश्वनाथ, कालीचरण और बालदेव | इनमें से किसी भी पात्र को उपन्यास का नायक माना जा सकता है परंतु इनमें से कोई भी नायकत्व के लिए निर्धारित मानदंडों पर खरा नहीं उतरता परंतु किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले नायकत्व के लिए निर्धारित मानदंडों पर विचार करना आवश्यक है |

नायकत्व के मानदंड

मैला आंचल ( Maila Anchal ) उपन्यास के पर नायकत्व विचार करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि नायकत्व के मापदंड-मानदंड क्या होते हैं |

भारतीय नाट्यशास्त्रियों के अनुसार – ” नायक को नेता कहा जाता है तथा यह नेता ही कथा को परिणाम या फल तक पहुंचाता है यही फल का स्वामी है तथा इसका इतिवृत्त आरंभ से अंत तक रचना में रहता है |”

भारतीय नाट्य शास्त्रियों ने नायक के अनेक गुण बताएं हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं – विनीत, त्यागी, दक्ष, बुद्धिमान, वीर, उत्साही, प्रतिज्ञा पालन में दृढ़, तेजस्वी, अनुरागी, शीलवान |

अरस्तु के अनुसार – “नायक वह होता है जो अन्य पात्रों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली व गुण संपन्न होता है |”

यद्यपि समय के साथ-साथ नायकत्व कि इस विचारधारा में काफी परिवर्तन आया है | जैसे आरंभ की रचनाओं में प्रायः नायक कुलीन परिवारों से होता था लेकिन कालांतर में नायक मध्यम वर्ग व निम्न वर्ग से भी होने लगा | जैसे गोदान उपन्यास में होरी नायक है परंतु वह कुलीन व संपन्न नहीं है |

उपर्युक्त विवेचन के आलोक में यह तो निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि नायक रचना के अन्य पात्रों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता है | वह कथानक को फल तक पहुंचाता है तथा रचना में आरंभ से लेकर अंत तक उसका इतिवृत्त रहता है | भले ही उसमें आदर्श नैतिक गुण हों या न हों | कुछ रचनाओं में खल पात्र भी नायक बनकर उभरे हैं |

मैला आंचल : नायकत्व

मैला आंचल उपन्यास में रेणु ( Renu ) ने यद्यपि एक छोटे से अंचल का वर्णन किया है परंतु फिर भी उपन्यास में पात्रों की भरमार है | मैला आंचल में कुल 196 पात्र हैं | इसमें 140 तो मेरीगंज के निवासी हैं, 24 पात्र ऐसे हैं जो अपने कार्य क्षेत्र के आधार पर मेरीगंज के ही माने जा सकते हैं और 32 पात्र मेरीगंज के बाहर के हैं जो मेरीगंज को अपने आसपास व पूरे देश से जोड़ते हैं |

मैला आँचल में कुल पात्र = 196

मेरीगंज के मूल निवासी =140

कार्यक्षेत्र के आधार पर मेरीगंज के निवासी = 24

बाहर के निवासी = 32

इन पात्रों में से चार पात्र ऐसे हैं जो अपने गुणों, विशेषताओं व प्रभाव के कारण इस उपन्यास का नायक हो सकते हैं | यह हैं – डॉक्टर प्रशांत, तहसीलदार विश्वनाथ, कालीचरण और बालदेव |

मैला आंचल के नायक का चुनाव करने के लिए इन चारों पात्रों की भूमिकाओं का विवेचन करना अत्यावश्यक हो जाता है |

डॉ प्रशांत : – डॉ प्रशांत अज्ञात कुल से संबंध रखता है परंतु लोक सेवा, परोपकार जैसे आदर्श गुण उसके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरे हुए हैं | वह केवल रोगियों का इलाज ही नहीं करता बल्कि उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ता भी है | उसकी सेवा-भावना से प्रभावित होकर लोग उसे देवता समझने लगते हैं | वह कथाकार के सपनों व आदर्श का प्रतीक है | रेणु ( Renu ) के आशावाद और भविष्य के सपनों का आलंबन भी प्रशांत ही है | प्रशांत एक सजीव पात्र के रूप में पूरे उपन्यास में विद्यमान रहता है | उसके हृदय में लोक-सेवा की भावना प्रबल है | वह लोक-कल्याण करना चाहता है, मनुष्य के जीवन का क्षय करने वाले रोगों के कारणों का पता लगाकर नई दवा का आविष्कार करना चाहता है | डॉ प्रशांत की ही एक उक्ति के आधार पर उपन्यास का नाम मैला आंचल पड़ा है | उपन्यास के अंत में भी वह संकल्प व्यक्त करता है – “ममता ! मैं फिर काम शुरू करूंगा | यही इसी गांव में मैं प्यार की खेती करना चाहता हूँ | आंसू से भीगी हुई धरती पर प्यार के पौधे लहराएंगे |”

हालांकि उपन्यास की घटनाओं के विकास में उसका अधिक योगदान नहीं है परंतु फिर भी वह उपन्यास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र है |

तहसीलदार विश्वनाथ : – तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद उपन्यास का एक प्रमुख पात्र है | उपन्यास की घटनाओं के विकास में उसका महत्वपूर्ण योगदान है | कानूनी दांव- पेंच में वह माहिर है | उसके इसी गुण के कारण लोग उससे भय खाते हैं और उनसे वैर-भाव रखना नहीं चाहते | वह शोषण पर आधारित व्यवस्था का प्रतीक पात्र है | वह किसानों पर अत्याचार करता है परंतु अप्रत्यक्ष रूप से | वह धूर्त और काइयाँ इंसान है | सरकारी अफसरों की चापलूसी करने की कला में वह माहिर है | उपन्यास के पात्रों में उसका महत्वपूर्ण स्थान कहा जा सकता है | वह उपन्यास के प्रथम परिच्छेद में कथानक में प्रवेश करता है और उपन्यास के अंतिम परिच्छेद में अन्याय और शोषण द्वार कमाई गई संपत्ति और जमीन को लौटाते हुए अपने पापों का प्रायश्चित करता है | इस प्रकार उपन्यास के अंत में विश्वनाथ प्रसाद का हृदय परिवर्तन उनके पात्र को और ऊंचा उठा देता है | उनके चरित्र में उदारता आ जाती है परंतु फिर भी उन्हें उपन्यास का नायक स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि पूरे उपन्यास में वह खल पात्र नजर आता है जिसमें अनेक कमियांं हैं |

कालीचरण :- कालीचरण को मैला आंचल उपन्यास का सर्वाधिक जीवंत पात्र कहा जा सकता है परंतु वह भी नायकत्व के पद पर आसीन होने के योग्य नहीं है | वह अन्याय और अत्याचार का कट्टर विरोधी है | वह दीन-हीन, दलित, पीड़ित, शोषित व उपेक्षित वर्ग का हितैषी है | कालीचरण के विषय में एक प्रसिद्ध विद्वान लिखते हैं – ” कालीचरण मैला आँचल उपन्यास का सर्वाधिक जीवंत पात्र है | वह हिंदी उपन्यास में होरी और बलचनमा की परंपरा की अगली कड़ी है |”

सेवा-भावना व परोपकार उसके विशिष्ट गुण हैं | यह गुण उसके चरित्र को उदात्तता प्रदान करते हैं | जब गांव में हैजा फैलता है तो वह कुँओं में दवा डालने व लोगों को हैजा निरोधक सुई लगाने में डॉ प्रशांत की सहायता करता है | वह चरित्रवान है | अपने गुरु के निर्देशानुसार वह स्त्रियों से पाँच हाथ दूर रहकर बात करता है | उसमें नेतृत्व व संगठन की शक्ति है | वह मेरीगंज की पिछड़ी जातियों के लोगों को संगठित करता है |

निःसन्देह उसमें नायक के अनेक गुण हैं परंतु फिर भी उसे नायक स्वीकार नहीं किया जा सकता | मेरीगंज का पिछड़ापन उसके नायकत्व की संभावनाओं को निगल जाता है |

बालदेव गोप : – बालदेव का चरित्र भी बहुत रोचक है | वह एक ओर अपने समाज के पिछड़ेपन और अज्ञानता को उजागर करता है तो दूसरी ओर गांधीवाद के विद्रूप को | वह दिखाता है कि किस प्रकार गांधीवादियो ने गांधीवाद को विकृत कर दिया है | वे अपनी चारित्रिक कमजोरियों के कारण गांधीवाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं | गांधीवादी गांधीवाद का सहारा लेकर अपने हित साध रहे हैं | बालदेव के चरित्र का सबसे उज्ज्वल पक्ष यह है कि वह स्वतंत्रता सेनानी रहा है | सन 1930 में कांग्रेसी नेता से प्रभावित होकर वह ‘सुराजी दल’ में शामिल होता है | उसके जीवन का ध्येय है – मेरीगंज गांव को उन्नत व विकसित करना | बालदेव गांधी जी की विचारधारा में गहरी आस्था रखता है | वह अहिंसा, त्याग, आत्म-शुद्धि और अनशन में गहरी आस्था रखता है | उपन्यास की बहुत सी घटनाओं में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | यथा – अस्पताल के निर्माण कार्य में वह ग्राम वासियों का सहयोग दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | जब मठाधीश सेवादास ग्रामवासियों को भोज देता है तो बालदेव बहुत से महत्वपूर्ण कार्य संभालता है | अतः स्पष्ट है कि बालदेव उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पात्र है परंतु फिर भी उसे उपन्यास का नायक नहीं माना जा सकता | वह कथानक में अनेक घटनाओं को प्रभावित करता है परंतु कथानक का बहुत सा भाग उसके प्रभाव से अछूता है | वह कहानी को अकेले अपने दम पर निष्कर्ष तक पहुंचाने में असफल रहा है | वह उपन्यास के मूल भाव को उजागर करने में भी असफल रहा है |

🔷 नायक होने के पात्र आधिकारिक कथा से संबंधित होने चाहिएं और उपन्यास में आरंभ से अंत तक उनकी उपस्थिति रहनी चाहिए लेकिन उपन्यास में ऐसा कोई पात्र नहीं है जो इन दोनों कसौटियों पर खरा उतरे | उपन्यास के चारों प्रमुख पात्र – डॉ प्रशांत, तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद, कालीचरण व बालवीर गोप – उपन्यास में महत्वपूर्ण भूमिका तो निभाते हैं परंतु उपन्यास की अनेक घटनाओं में उनका कोई प्रभाव नहीं है |

किसी विद्वान ने मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास के नायकत्व के विषय में कहा है – “मैला आंचल में नायक और नायिका के रूप में कोई स्मरणीय चरित्र नहीं है | डॉक्टर प्रशांत और कमला सब पात्रों में घुल मिल गए हैं | वह भी नायक और नायिका की छवि प्रस्तुत नहीं करते |”

जहां तक आरंभ से लेकर अंत तक उपस्थिति का प्रश्न है तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद अन्य पात्रों की अपेक्षा उपन्यास में सबसे पहले आते हैं और उपन्यास के अंत में भी तहसीलदार साहब विद्यमान रहते हैं | उपन्यास के अन्त में उपन्यासकार उनका हृदय परिवर्तन कर देता है और तहसीलदार साहब किसानों को उनकी जमीन वापस लौटा देते हैं परंतु फिर भी उनके चरित्र में उदात्तता नहीं मिलती क्योंकि उपन्यास में उनका चित्रण धूर्त व्यक्ति के रूप में हुआ है |

निष्कर्ष : – अतः स्पष्ट है कि मैला आंचल में एक भी पात्र ऐसा नहीं है जिसे केंद्रीय पात्र कहा जा सके | उपन्यासकार ने किसी भी पात्र को नायकत्व का लबादा नहीं पहनाया | आलोचकों की दृष्टि में सभी पात्र नायकत्व के मानदंडों पर असफल हो जाते हैं | कोई भी पात्र नायकत्व के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता | अधिकांश आलोचकों के अनुसार मैला आंचल उपन्यास का नायक मेरीगंज नामक गांव या उस क्षेत्र का अंचल ही हो सकता है | उपन्यास के सभी पात्र भी मिलकर मेरीगंज को समग्र व्यक्तित्व प्रदान करते हैं | दूसरा, आंचलिक उपन्यासों में अंचल की स्थिति नायक की सी होती है | उपन्यासकार का मुख्य उद्देश्य भी उस अंचल का वास्तविक चित्रण होता | मैला आंचल उपन्यास में उपन्यासकार ने मेरीगंज और उसके अंचल की कल्पना एक पात्र के समान ही की है | इसका पुख्ता प्रमाण यह है कि रेणु ( Renu ) ने मेरीगंज के नामकरण व इसकी विशिष्ट पहचान तक के सभी पक्षों का उद्घाटन किसी पात्र की भांति किया है | उपन्यासकार ने किसी भी पात्र को मेरीगंज के अंचल से अधिक प्रमुखता नहीं दी | सभी पात्र मेरीगंज के अंचल के समक्ष फीके नजर आते हैंं | अतः मेरीगंज ही मैला आंचल उपन्यास का वास्तविक नायक है |

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