जागो फिर एक बार ( Jago Fir Ek Bar ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

जागो फिर एक बार ( निराला ) : सप्रसंग व्याख्या जागो फिर एक बार ! समर में अमर कर प्राण, गान गाये महासिंधु-से, सिंधु-नद तीरवासी ! सेंधव सुरंगों पर चतुरंग-चमू-संग ; “सवा-सवा लाख पर एक को चढाऊंगा, गोविंद सिंह निज नाम जब कहाऊंगा |” किसी ने सुनाया यह वीर-जनमोहन, अति दुर्जय संग्राम-राग, फाग था खेला … Read more