‘ईदगाह’ कहानी की समीक्षा

‘ईदगाह’ कहानी मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है | बाल मनोविज्ञान पर आधारित यह कहानी साहित्य समीक्षकों तथा सामान्य पाठकों द्वारा समान रूप से सराही गई है | ‘ईदगाह’ कहानी की समीक्षा निम्नलिखित तत्त्वों के आधार पर की जा सकती है —

'ईदगाह' कहानी की समीक्षा
‘ईदगाह’ कहानी की समीक्षा

(1) कथानक या कथावस्तु

(2) पात्र या चरित्र चित्रण

(3) देशकाल व वातावरण

(4) संवाद व कथोपकथन

(5) भाषा शैली

(6) उद्देश्य

इन छह तत्त्वों के आधार पर ‘ईदगाह’ कहानी की समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है : —

(1) कथानक या कथावस्तु ( Idgah ka kathanak )

‘ईदगाह’ ( Eidgah ) कहानी का कथानक संक्षिप्त है | यद्यपि प्रेमचंद जी ने अपनी टिप्पणीप्रधान शैली और वर्णनात्मकता के द्वारा इसे विस्तार प्रदान किया है परंतु फिर भी कहानी अपनी गति नहीं खोती बल्कि इस विस्तार से पाठक कहानी के साथ जुड़ता चला जाता है |

कहानी का कथानक माता-पिता विहीन बालक हामिद के इर्द-गिर्द घूमता है जो अपनी दादी माँ अमीना के साथ रहता है | दोनों अत्यंत निर्धनता में जीवन जी रहे हैं | ईद का त्यौहार आ गया है | अन्य बच्चों की भांति हामिद भी रोमांचित है | उसे ईदगाह जाने और मेला देखने की उत्सुकता है | लेकिन अमीना चिंतित है | उसके पास हामिद को देने के लिए पैसे नहीं हैं | हामिद के पहनने के लिए न अच्छे कपड़े हैं और न उसके पैर में जूते हैं | फिर भी अमीना उसे तीन पैसे देती है | हामिद अपने साथियों के साथ मेला देखने जाता है | उसके साथियों के पास काफी पैसे हैं | वह मेले में झूला झूलते हैं, मिठाइयां खाते हैं और अपने लिए खिलौने खरीदते हैं लेकिन हामिद दूर खड़ा उनकी तरफ देखता रहता है | वह इन चीजों पर अपने तीन पैसे खर्च नहीं करना चाहता | अंत में हामिद लोहे का एक चिमटा खरीदता है | उसे लगता है कि यह चिमटा उसकी दादी के काम आएगा और रसोई में रोटियाँ सेंकते हुए उसकी उंगलियां नहीं जलेंगी |

बाकी सभी बच्चों के मिट्टी के खिलौने एक-एक करके टूट जाते हैं जबकि हामिद का लिया हुआ चिमटा अनश्वर बना रहता है | उसकी दादी हामिद द्वारा लाए गए तोहफे को देखकर भावविह्वल हो जाती है और उसे अपनी छाती से लगा लेती है |

इस प्रकार चार-पांच साल के एक छोटे बच्चे ने अपनी इच्छाओं को जब्त करके अपनी दादी माँ के प्रति जिस स्नेह, सद्भाव व विवेक का परिचय दिया है, वह पाठकों के हृदय को द्रवित कर देता है |

कथानक संक्षिप्त है परंतु प्रेमचंद जी ने इस कथानक का विस्तार ईद के ग्रामीण उत्साह, नगर वर्णन, ईदगाह व मेले के दृश्य का स्वाभाविक वर्णन करके किया है | इस प्रकार इस संक्षिप्त कथानक में मौलिकता, गंभीरता, जिज्ञासा, सरसता आदि सभी गुण मिलते हैं |

(2) पात्र या चरित्र-चित्रण

‘ईदगाह’ कहानी का मुख्य पात्र हामिद है | सारी कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है | वह अपनी बाल सुलभ मासूमियत, इच्छाओं, आकांक्षाओं, सपनों, जिज्ञासाओं आदि से जहाँ अपने बचपन की झलक प्रदान करता है वहीं अपनी सभी इच्छाओं को दबाकर अपनी बूढ़ी दादी माँ के लिए चिमटा खरीदकर अपनी दादी के प्रति अपने प्रेम तथा परिपक्वता का परिचय देता है |

कहानी का दूसरा मुख्य पात्र बूढ़ी अमीना है जो अपने पुत्र तथा पुत्रवधू की मृत्यु के बाद अपने पोते हामिद का पालन पोषण कर रही है | वह लोगों के कपड़े सिल कर तथा दूसरे छोटे-मोटे काम करके अपना और अपने पोते का गुजारा कर रही है | अपनी पोते को सभी सुख-साधन न दे पाने की उसकी लाचारी पाठकों के हृदय को द्रवित कर देती है | कहानी के अंत में हामिद और अमीना का भावपूर्ण दृश्य कहानी को नये आयाम प्रदान करता है |

इसके अतिरिक्त कहानी में महमूद,मोहसिन, सम्मी, नूरे आदि पात्र भी हैं | यद्यपि यह पात्र गौण पात्र हैं परंतु फिर भी कहानी को अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने में इनके महत्वपूर्ण भूमिका है |

(3) देशकाल व वातावरण

देशकाल और वातावरण का संबंध कहानी के स्थान, समय और परिवेश से होता है | देशकाल एवं वातावरण की दृष्टि से ‘ईदगाह’ एक उत्कृष्ट कहानी कही जा सकती है | कहानी पूरी तरह कल्पित होने पर भी अपने समय के सजीव वातावरण की सृष्टि करती है | कहानी में प्रेमचंद जी ने पिछली सदी के प्रारंभिक समय व ग्रामीण और शहरी ; दोनों परिवेश का चित्रण किया है | ईद के त्यौहार का वर्णन, रोजे, ईदगाह के दृश्य व मेले की रौनक का सजीव वर्णन करके प्रेमचंद जी ने कहानी को वातावरण व देशकाल की दृष्टि से सफल बनाया है |

(4) संवाद व कथोपकथन

संवादों का कहानी में महत्वपूर्ण स्थान होता है | संवाद कहानी को रोचक एवं गतिमान बनाते हैं | संवाद कहानी को नाटकीय बनाते हैं | यद्यपि संवादों के बिना भी वर्णनात्मक शैली में कहानी कही जा सकती हैं परंतु उसमें रोचकता, स्वाभाविकता और नाटकीयता का अभाव होता है |

ईदगाह’ कहानी में संवाद व कथोपकथन ( Idgah Kahani Mein Samvad ) कथानक के अनुसार रचे गए हैं | ईदगाह जाते समय बच्चों के संवाद कहीं-कहीं किसी बुद्धिजीवी के संवाद लगते हैं लेकिन अधिकांशत: बच्चों की आयु व मनोदशा के अनुरूप हैं | संवाद प्राय: संक्षिप्त हैं और पात्रों के चरित्रों को उजागर करते हैं | इन संवादों के माध्यम से तत्कालीन समाज की बुराइयों को भी दर्शाया गया है | इस दृष्टि से पुलिस लाइन का प्रसंग अत्यंत उल्लेखनीय है | संवादों की भाषा सरल एवं भावानुकूल है |

अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘ईदगाह’ कहानी में सफल संवाद-योजना का निर्वाह हुआ है |

(5) भाषा व भाषा शैली

प्रेमचंद की अधिकांश कहानियों की भाषा सरलता के गुणों से परिपूर्ण होती है | उनकी भाषा शैली में स्वाभाविकता एवं व्यवहारिकता बराबर बनी रहती है | इस दृष्टि से प्रस्तुत कहानी भी कोई अपवाद नहीं है | ‘ईदगाह’ कहानी की भाषा ( Eidgah Kahani Ki Bhasha ) में तत्सम, तद्भव, उर्दू-फारसी व अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया गया है | क्योंकि कहानी ईद के त्यौहार और एक मुस्लिम समुदाय की कहानी है, ऐसी अवस्था में उर्दू-फारसी के शब्दों का होना स्वाभाविक है | उर्दू के शब्द रमजान, रोजे, अजीब, रौनक, अब्बाजान, अम्मीजान, बदहवास, खबर, ईमान, बिसात, खैरियत, तकदीर, सलामत, अदालत, मदरसे, वजू, जाजिम आदि का सुन्दर प्रयोग कहानी में मिलता है | अंग्रेजी के भी अनेक शब्द मिलते हैं ; जैसे – कॉलेज, बैट, क्लब, रैटन, कानिसटिबल आदि | तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग भी बहुलता में मिलता है | मुहावरों और लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया गया है |

शैली की दृष्टि से यह कहानी वर्णनात्मक शैली में लिखी गई है | परंतु साथ ही संवादात्मकता, मनोविश्लेषणात्मकता व चित्रात्मक शैलियों का प्रयोग भी हुआ है | कुछ स्थलों पर भावात्मक शैली के भी उत्कृष्ट उदाहरण देकर जा सकते हैं | कहानी का अंतिम दृश्य भावात्मक शैली का उत्कृष्ट उदाहरण कहा जा सकता है |

(6) उद्देश्य

प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है |इस दृष्टि से ‘ईदगाह’ भी कोई अपवाद नहीं है | प्रेमचंद जी वैसे भी सामाजिक सरोकार के कहानीकार माने जाते हैं | उनकी कोई भी साहित्यिक रचना निरुद्देश्य नहीं हो सकती |

इस कहानी का मुख्य उद्देश्य इस तथ्य की अभिव्यक्ति है कि गरीबी, लाचारी और बेबसी में बच्चे छोटी उम्र में ही परिपक्व हो जाते हैं | हामिद द्वारा अपनी इच्छाओं को जब्त करके अपनी बूढ़ी दादी माँ के लिए चिमटा खरीदना इसी तथ्य को प्रमाणित करता है |

इसके अतिरिक्त माता-पिता विहीन गरीब बच्चों की मनोदशा, उनके अभिशप्त जीवन, बुढ़ापे में बेसहारा औरत के लिए जीवन-यापन की समस्या, समाज में व्याप्त आर्थिक-विषमता, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं का चित्रण करना भी प्रस्तुत कहानी के उद्देश्य कहे जा सकते हैं |

यह भी देखें

ईदगाह : मुंशी प्रेमचंद ( Idgah : Munshi Premchand )

पुरस्कार ( जयशंकर प्रसाद )

फैसला ( मैत्रेयी पुष्पा )

‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय

ठेस ( फणीश्वर नाथ रेणु )

मलबे का मालिक ( मोहन राकेश )

पच्चीस चौका डेढ़ सौ : ( ओमप्रकाश वाल्मीकि )

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