सदाचार का ताबीज : हरिशंकर परसाई ( Sadachar Ka Tabeez : Harishankar Parsai )

( यहाँ हरिशंकर प्रसाद द्वारा रचित व्यंग्य लेख ‘सदाचार का ताबीज’ का मूल पाठ तथा उसके मूल भाव को दिया गया है | )

सदाचार का ताबीज
सदाचार का ताबीज

एक राज्य में हल्ला मचा कि भ्रष्टाचार बहुत फैल गया है |

राजा ने एक दिन दरबारियों से कहा, “प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है | हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा | तुम लोगों को कहीं दिखा हो तो बताओ |”

दरबारियों ने कहा – “जब हुजूर को नहीं दिखा तो हमें कैसे दिख सकता है?”

राजा ने कहा – “नहीं, ऐसा नहीं है | कभी-कभी जो मुझे नहीं दिखता, वह तुम्हें दिखता होगा | जैसे मुझे बुरे सपने कभी नहीं दिखते, पर तुम्हें दिखते होंगे!”

दरबारियों ने कहा – “जी, दिखते हैं | पर वह सपनों की बात है |”

राजा ने कहा – “फिर भी तुम लोग सारे राज्य में ढूंढकर देखो कि कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं है | अगर कहीं मिल जाए तो हमारे देखने के लिए नमूना लेते आना | हम भी तो देखें कि कैसा होता है |”

एक दरबारी ने कहा – “हुजूर, वह हमें नहीं दिखेगा | सुना है वह बहुत बारीक होता है | हमारी आंखें आपकी विराटता देखने की इतनी आदती हो गई हैं कि हमें बारीक चीज नहीं दिखती | हमें भ्रष्टाचार दिखा भी तो उसमें हमें आपकी ही छवि दिखेगी, क्योंकि हमारी आँखों में तो आपकी ही सूरत बसी है | पर अपने राज्य में एक जाति रहती है जिसे “विशेषज्ञ” कहते हैं | इस जाति के पास कुछ ऐसा अंजन ( काजल ) होता है कि उसे आंखों में आँजकर वे बारीक से बारीक चीज भी देख लेते हैं | मेरा निवेदन है कि इन विशेषज्ञों को ही हुजूर भ्रष्टाचार ढूंढने का काम सौंपें |”

राजा ने “विशेषज्ञ” जाति के पाँच आदमी बुलाए और कहा – “सुना है, हमारे राज्य में भ्रष्टाचार है | पर वह कहाँ है, यह पता नहीं चलता | तुम लोग उसका पता लगाओ | अगर मिल जाए तो पकड़कर हमारे पास ले आना | अगर बहुत हो तो नमूने के लिए थोड़ा-सा ले आना |”

विशेषज्ञों ने उसी दिन से छानबीन शुरू कर दी |

दो महीने बाद वे फिर से दरबार में हाजिर हुए | राजा ने पूछा – “विशेषज्ञो, तुम्हारी जाँच पूरी हो गई?”

“जी, सरकार |”

“क्या, तुम्हें भ्रष्टाचार मिला |”

“जी, बहुत सा मिला |”

राजा ने हाथ बढ़ाया – “लाओ, मुझे दिखाओ | देखूँ, कैसा होता है |”

विशेषज्ञों ने कहा – “हुजूर, वह हाथ की पकड़ में नहीं आता | वह स्थूल नहीं, सूक्ष्म है, अगोचर है | पर वह सर्वत्र व्याप्त है | उसे देखा नहीं जा सकता, अनुभव किया जा सकता है |”

राजा सोच में पड़ गए | बोले – “विशेषज्ञो, तुम कहते हो कि वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है | यह गुण तो ईश्वर के हैं | तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है?”

विशेषज्ञों ने कहा – “हाँ, महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है |”

एक दरबारी ने पूछा – “पर वह है कहाँ? कैसे अनुभव होता है?”

विशेषज्ञों ने जवाब दिया – “वह सर्वत्र है | वह इस भवन में है | वह महाराज के सिहासन में है |”

“सिहासन में है!” कहकर राजा साहब उछलकर दूर खड़े हो गए |

विशेषज्ञों ने कहा – “हाँ, सरकार, सिहासन में है | पिछले माह इस सिंहासन पर रंग करने के जिस बिल का भुगतान किया गया है, वह बिल झूठा है | वह वास्तव में दुगुने दाम का है | आधा पैसा बीच वाले खा गए | आपके पूरे शासन में भ्रष्टाचार है और वह मुख्यतः घूस के रूप में है |”

विशेषज्ञों की बात सुनकर राजा चिंतित हुए और दरबारियों के कान खड़े हुए । राजा ने कहा – ” यह तो बड़ी चिंता की बात है । हम भ्रष्टाचार बिलकुल मिटाना चाहते हैं । विशेषज्ञो , तुम बता सकते हो कि वह कैसे मिट सकता है ?”
विशेषज्ञों ने कहा – ”हाँ महाराज , हमने उसकी भी योजना तैयार की है । भ्रष्टाचार मिटाने के लिए महाराज को व्यवस्था में कुछ परिवर्तन करने होंगे । एक तो भ्रष्टाचार के मौके मिटाने होंगे । जैसे ठेका है तो ठेकेदार है और ठेकेदार है तो अधिकारियों को घूस है । ठेका मिट जाए तो उसकी घूस मिट जाए । इसी तरह और भी बहुत से चीज हैं । किन कारणों से आदमी घूस लेता है , यह भी विचारणीय है ।”
राजा ने कहा – ”अच्छा , तुम अपनी पूरी योजना रख जाओ । हम और हमारा दरबार उस पर विचार करेंगे ।”
विशेषज्ञ चले गए ।

राजा ने और दरबारियों ने भ्रष्टाचार मिटाने की योजना को पढ़ा । उस पर विचार किया ।
विचार करते दिन बीतने लगे और राजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा ।
एक दिन एक दरबारी ने कहा – ”महाराज , चिंता के कारण आपका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है । उन विशेषज्ञों ने आपको झंझट में डाल दिया ।”
राजा ने कहा – ”हाँ , मुझे रात को नींद नहीं आती ।”
दूसरा दरबारी बोला – ”ऐसी रिपोर्ट को आग के हवाले कर देना चाहिए जिससे महाराज की नींद में ख़लल पड़े ।”

राजा ने कहा – ”पर करें क्या ? तुम लोगों ने भी भ्रष्टाचार मिटाने की योजना का अध्ययन किया है । तुम्हारा क्या मत है ? क्या उसे काम में लाना चाहिए ?”
दरबारियों ने कहा – ”महाराज , वह योजना क्या है , एक मुसीबत है । उसके अनुसार कितने उलट-फेर करने पड़ेंगे ! कितनी परेशानी होगी ! सारी व्यवस्था उलट-पलट हो जाएगी । जो चला आ रहा है , उसे बदलने से नई -नई कठिनाइयाँ पैदा हो सकती हैं । हमें तो कोई ऐसी तरकीब चाहिए जिससे बिना कुछ उलट-फेर किए भ्रष्टाचार मिट जाए ।”
राजा साहब बोले – ”मैं भी यही चाहता हूँ । पर यह हो कैसे ? हमारे प्रपितामह को तो जादू आता था ; हमें वह भी नहीं आता । तुम लोग ही कोई उपाय खोजो ।”
एक दरबारी ने राजा के सामने एक साधु को पेश किया और कहा – ”महाराज , एक कन्दरा में तपस्या करते हुए इस महान साधक को हम ले आये हैं । इन्होंने सदाचार का ताबीज़ बनाया है । वह मंत्रों से सिद्ध है और उसके बाँधने से आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है ।”
साधु ने अपने झोले में से एक ताबीज़ निकालकर राजा को दिया । राजा ने उसे देखा । बोले – ”हे साधु , इस ताबीज के विषय में मुझे विस्तार से बताओ । इससे आदमी सदाचारी कैसे हो जाता है ?”

साधु ने समझाया – ”महाराज , भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है ; बाहर से नहीं होता । विधाता जब मनुष्य को बनाता है तब किसी की आत्मा में ईमान की कल ( पुर्जा / यंत्र ) फ़िट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की । इस कल में से ईमान या बेईमानी के स्वर निकलते हैं , जिन्हें ‘आत्मा की पुकार’ कहते हैं । आत्मा की पुकार के अनुसार ही आदमी काम करता है | प्रश्न यह है कि जिनकी आत्मा से बेईमानी के स्वर निकलते हैं , उन्हें दाबकर ईमान के स्वर कैसे निकाले जाएँ । मैं कई वर्षों से इसी के चिंतन में लगा हूँ । अभी मैंने यह सदाचार का ताबीज बनाया है । जिस आदमी की भुजा पर यह बँधा होगा , वह सदाचारी हो जाएगा । मैंने कुत्ते पर भी इसका प्रयोग किया है । यह ताबीज गले में बाँध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता । बात यह है कि इस ताबीज में से सदाचार के स्वर निकलते हैं । जब किसी की आत्मा बेईमानी के स्वर निकालने लगती है तब इस ताबीज की शक्ति आत्मा का गला घोंट देती है और आदमी को ताबीज से ईमान के स्वर सुनाई पड़ते हैं । वह इन स्वरों को आत्मा की आवाज़ समझकर सदाचार की ओर प्रेरित होता है । यही इस ताबीज का गुण है , महाराज !”

दरबार में हलचल मच गई । दरबारी उठ-उठकर ताबीज को देखने लगे ।
राजा ने ख़ुश होकर कहा – ”मुझे नहीं मालूम था कि मेरे राज्य में ऐसे चमत्कारी साधु भी हैं । महात्मन् , हम आपके बहुत आभारी हैं । आपने हमारा संकट हर लिया । हम सर्वव्यापी भ्रष्टाचार से बहुत परेशान थे । मगर हमें लाखों नहीं , करोड़ों ताबीज चाहिए । हम राज्य की ओर से ताबीजों का कारख़ाना खोल देते हैं । आप उसके जनरल मैनेजर बन जाएँ और अपनी देख-रेख में बढ़िया ताबीज बनवाएँ ।”

एक मंत्री ने कहा – ”महाराज , राज्य क्यों झंझट में पड़े ? मेरा तो निवेदन है कि साधु बाबा को ठेका दे दिया जाए । वे अपनी मंडली से ताबीज बनवाकर राज्य को सप्लाई कर देंगे ।”
राजा को यह सुझाव पसंद आया । साधु को ताबीज बनाने का ठेका दे दिया गया । उसी समय उन्हें पाँच करोड़ रुपए कारख़ाना खोलने के लिए पेशगी मिल गए ।
राज्य के अख़बारों में ख़बरें छपीं – ‘सदाचार के ताबीज की खोज ! ताबीज बनाने का कारख़ाना खुला !’
लाखों ताबीज बन गए । सरकार के हर सरकारी कर्मचारी की भुजा पर एक-एक ताबीज बाँध दिया गया ।
भ्रष्टाचार की समस्या का ऐसा सरल हल निकल आने से राजा और दरबारी सब ख़ुश थे ।
एक दिन राजा की उत्सुकता जागी । सोचा – ”देखें तो कि यह ताबीज कैसे काम करता है !”
वह वेश बदलकर एक कार्यालय गए । उस दिन दो तारीख़ थी । एक दिन पहले तनख़्वाह मिली थी ।
वह एक कर्मचारी के पास गए और कई काम बताकर उसे पाँच रुपए का नोट देने लगे ।

कर्मचारी ने उन्हें डाँटा – ”भाग जाओ यहाँ से ! घूस लेना पाप है !”
राजा बहुत ख़ुश हुए । ताबीज ने कर्मचारी को ईमानदार बना दिया था ।
कुछ दिन बाद वह फिर वेश बदलकर उसी कर्मचारी के पास गए । उस दिन इकतीस तारीख़ थी – महीने का आख़िरी दिन ।
राजा ने फिर उसे पाँच रुपए का नोट दिखाया और उसने लेकर जेब में रख लिया ।
राजा ने उसका हाथ पकड़ लिया । बोले – ”मैं तुम्हारा राजा हूँ । क्या तुम आज सदाचार का ताबीज बाँधकर नहीं आए ?”
”बाँधा है , सरकार , यह देखिए !”
उसने आस्तीन चढ़ाकर ताबीज दिखा दिया ।
राजा असमंजस में पड़ गया । फिर ऐसा कैसे हो गया ?
उन्होंने ताबीज पर कान लगाकर सुना । ताबीज में से स्वर निकल रहे थे – ”अरे , आज इकतीस है । आज तो ले ले !”

‘सदाचार का ताबीज’ निबंध में निहित व्यंग्यात्मकता / मूल भाव / उद्देश्य या सार ( Sadachar Ka Taweez Nibandh Mein Nihit Vyangyatmakta / Mul Bhav / Uddeshy Ya Saar )

‘सदाचार का ताबीज’ प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक श्री हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक प्रसिद्ध व्यंग्य लेख है | इस निबंध का प्रमुख उद्देश्य देश में सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या पर कटाक्ष करना है |

प्रस्तुत निबंध लेख में लेखक ने एक कल्पित राज्य की कथा को प्रस्तुत किया है | राज्य में जब चारों तरफ भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठने लगती है तो राजा भ्रष्टाचार के विषय पर अपने मंत्रियों से बातचीत करता है | भ्रष्टाचार क्या है और इसे कैसे दूर किया जाता है यह जानने के लिए वह अपने मंत्रियों से पूछता है | लेकिन मंत्री कहते हैं कि उन्हें तो कहीं भी भ्रष्टाचार नजर नहीं आता | तब विशेषज्ञों को बुलाया जाता है | राजा के पूछने पर विशेषज्ञ महाराज को भ्रष्टाचार के विषय में बताते हुए कहते हैं कि वह अत्यंत सूक्ष्म, अगोचर और सर्वव्यापी है, उसे देखा नहीं जा सकता, केवल महसूस किया जा सकता है | राजा को अचरज होता है और कहता है कि ये लक्षण तो ईश्वर के हैं | विशेषज्ञ कहते हैं कि आज के युग में बहुत लोगों के लिए भ्रष्टाचार ही ईश्वर है |

भ्रष्टाचार के उन्मूलन करने के लिए विशेषज्ञ एक योजना तैयार करते हैं | इसके उन्मूलन के लिए वह सबसे पहले ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करना चाहते हैं, उनके अनुसार ठेका पाने के लिए ठेकेदार अधिकारियों को रिश्वत देते हैं | विशेषज्ञ एक लंबी-चौड़ी योजना तैयार करते हैं | राजा और उसके मंत्री उस योजना पर विचार करते हैं और उस योजना के क्रियान्वयन को एक मुसीबत करार देते हैं |विशेषज्ञों की योजना को नकार दिया जाता है |

अंत में एक साधु महाराज को बुलाया जाता है | वे एक ताबीज तैयार करते हैं और कहते हैं कि जिस कर्मचारी की भुजा पर इस ताबीज को बांध दिया जाएगा वह भ्रष्टाचारी नहीं रहेगा | राज्य के सभी कर्मचारियों की भुजा पर ताबीज बांध दिया जाता है | ताबीज के प्रभाव को जांचने के लिए राजा एक कार्यालय में जाता है | उस दिन दो तारीख थी | एक दिन पहले तनख्वाह मिली थी | राजा कर्मचारी को पाँच रुपये देकर उससे कुछ काम कराना चाहता है, कर्मचारी मना कर देता है | उसी महीने की इकतीस तारीख को राजा फिर उस कर्मचारी के पास जाता है और उसे पाँच रुपए की पेशकश करता है, कर्मचारी ले लेता है | राजा ताबीज पर कान लगाकर सुनता है | उसमें से आवाज आ रही थी – “अरे, आज इकतीस है | आज तो ले ले |”

इस प्रकार लेखक ने एक रोचक कहानी के माध्यम से भ्रष्टाचार के कारणों पर प्रकाश डाला है | इस व्यंग्य लेख के माध्यम से लेखक ने बताया है कि ठेकेदारी प्रथा, सरकार का अपनी जिम्मेदारियों से बचना, प्रशासन की शिथिलता व कमजोर इच्छाशक्ति, लोगों में नैतिक मूल्यों की कमी तथा कर्मचारियों को पर्याप्त वेतन न मिलना आदि भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण हैं |

यह भी देखें

उत्साह : आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( Utsah : Acharya Ramchandra Shukla )

आशा का अंत : बालमुकुंद गुप्त ( Asha Ka Ant : Balmukund Gupt )

देवदारु : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ( Devadaru : Aacharya Hajari Prasad Dwivedi )

गिल्लू : महादेवी वर्मा ( Gillu : Mahadevi Verma )

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है : विद्यानिवास मिश्र ( Mere Ram Ka Mukut Bheeg Raha Hai : Vidyaniwas Mishra )

तिब्बत के पथ पर : राहुल सांकृत्यायन ( Tibbat Ke Path Par : Rahul Sankrityayan )