महात्मा गाँधी : असहयोग आंदोलन ( Mahatma Gandhi : Asahyog Aandolan )

         असहयोग आंदोलन : कारण और प्रमुख घटनाएं 

( Asahyog Andolan : Karan और Pramukh Ghatnayen )

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् महात्मा गाँधी  ने भारतीय राजनीति  में प्रवेश किया | कुछ दिनों के पश्चात् वे कांग्रेस  के अपरिहार्य सदस्य बन गए | महात्मा गाँधी के नेतृत्त्व में कांग्रेस व भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने नई दिशा प्राप्त की | राजनीति में प्रवेश करने से पहले महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में सत्य,  अहिंसा और सत्याग्रह का सफल प्रयोग कर चुके थे |
🔷  उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजो का समर्थन दिया | उनकी सेवाओं के बदले ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1915 में ‘केसर- ए -हिंद’ की उपाधि दी |
🔷  सन 1917 ( चम्पारण आंदोलन ) में आंदोलन चलाकर उन्होंने चंपारण के किसानों को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई  |
🔷 1918 ईस्वी  में उन्होंने अहमदाबाद के मिल मालिकों और मजदूरों के बीच समझौता कराने के लिए अनशन प्रारंभ कर दिया है जिसमें उन्हें सफलता मिली इन्हीं सब घटनाओं से गांधी जी को असहयोग आंदोलन चलाने की प्रेरणा मिली |
🔷 गांधीजी के असहयोग आंदोलन शुरू करने के पीछे सबसे प्रमुख कारण था अंग्रेजी सरकार की अस्पष्ट नीतियां | सरकार के सुधारों से जनता असंतुष्ट थी |  सर्वत्र आर्थिक संकट छाया हुआ था | महामारी और अकाल के कारण स्थिति और भी बदतर हो गई थी |
🔷  1919 ईo में रोलट एक्ट ( Rowlatt Act ) प्रस्तुत किया गया | इस  कानून के आधार पर किसी भी भारतीय को बिना किसी अपराध के केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था | इस प्रकार यह एक काला कानून ( Black Act ) था | पूरे देश में इस क़ानून का विरोध करने का निर्णय लिया गया |
🔷 रोलट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग़ ( Jaliyanwala Bagh )में एक सभा बुलाई गयी | जनरल डायर ने इस सभा पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी | इस घटना को भारतीय इतिहास में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड कर नाम से जाना जाता है |
🔷 देश के हर कोने में इस कानून का विरोध किया गया परंतु भारतीयों के विरोध के बावजूद  इस विधेयक को पारित कर दिया गया |

              असहयोग आंदोलन का आरंभ

🔷 9 जून,  1920 को इलाहाबाद में खिलाफत कमेटी ने गांधी जी की एक अहिंसक आंदोलन चलाने की सलाह को स्वीकार कर लिया |
🔷 सितंबर,  1920 में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कोलकाता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें असहयोग आंदोलन को चलाने की स्वीकृति दे दी गई |
🔷 इस आंदोलन का समर्थन करने वाले नेताओं में मोतीलाल नेहरु, मोहम्मद अली, शौकत अली आदि का नाम प्रमुख है जबकि चितरंजन दास, एनी बेसेंट,  लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल,  मदन मोहन मालवीय,  मोहम्मद अली जिन्ना आदि अनेक नेताओं ने गांधीजी के कुछ विचारों के प्रति अपना विरोध जताया |
🔷 दिसंबर, 1920 में कांग्रेस ने अपने नियमित वार्षिक  अधिवेशन ( नागपुर अधिवेशन, अध्यक्ष – वीर राघवाचार्या )  में इस प्रस्ताव को दोबारा मंजूरी प्रदान कर दी जबकि इससे पहले खिलाफत पार्टी की तरफ से 1 अगस्त, 1920 को आंदोलन की शुरुआत पहले ही कर दी गई थी |
 1 अगस्त,  1920 को ही बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु ( मुंबई में ) हो गई | पूरे देश में शोक छा गया जगह-जगह हड़ताल की गई अनेक प्रदर्शन हुए तथा बहुत से लोगों ने उपवास रखा |
🔷 अप्रैल 1921 में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन विजयवाड़ा ( Andhra Pradesh )  में हुआ | इस अधिवेशन में तिलक स्वराज कोष के लिए एक करोड़ राशि एकत्रित करने कांग्रेस में 1 करोड़  सदस्य भर्ती करने और 20 लाख चरखे  लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया |

▪️ इस अधिवेशन में गांधी जी ने सिर्फ लंगोटी पहनने का निश्चय किया | 

▪️ इसी अधिवेशन में पिंगली वेंकैया ने गांधीजी को तिरंगा झंडा प्रस्तुत किया | 

🔷  दिसंबर, 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता हकीम अजमल खां ने की | इस अधिवेशन में कांग्रेस के इतिहास में पहली बार हसरत मोहानी ने पूर्ण स्वतंत्रता की बात कही जो पूरी तरह से विदेशी नियंत्रण से मुक्त हो लेकिन गांधी जी द्वारा इसका विरोध किया गया | 

                   आंदोलन का कार्यक्रम

 असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को दो भागों में बांटा जा सकता है – नकारात्मक और सकारात्मक | नकारात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत सरकार विरोधी कार्यक्रम आता है जबकि सकारात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत रचनात्मक कार्यक्रम को लिया जा सकता है |

  ◼️ नकारात्मक कार्यक्रम ( सरकार विरोधी )

🔹 सरकारी उपाधियों का त्याग करना | इस क्रम में महात्मा गांधी जी ने अपनी ‘केसर-ए-हिंद’ की उपाधि का त्याग कर दिया तथा जमनालाल बजाज ने अपनी ‘राय बहादुर’ की उपाधि त्याग दी |
🔹 सरकारी स्कूलों और सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार करना
🔹 सरकारी अदालतों का बहिष्कार करना | मोतीलाल नेहरू,  जवाहरलाल नेहरू, चितरंजन दास, सी राजगोपालाचारी, सैफुद्दीन किचलू, वल्लभभाई पटेल,  आसफ अली और राजेंद्र प्रसाद आदि ने वकालत छोड़ दी |
🔹 सेना में भर्ती में न होना
🔹 सरकारी कार्यक्रमों और उत्सवों में भाग न लेना
🔹 विदेशी माल का बहिष्कार करना

◼️ सकारात्मक कार्यक्रम ( रचनात्मक कार्यक्रम )

🔹 स्वदेशी को बढ़ावा देना – खादी का प्रचार करना
🔹 तिलक स्मारक कोष की स्थापना करना और उसमें एक करोड रुपए एकत्र करने का लक्ष्य रखना
🔹 20 लाख चरखो का लक्ष्य
🔹 अपने विद्यालयों तथा महाविद्यालयों की स्थापना करना | इस मिशन के तहत काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया इस्लामिया कॉलेज आदि की स्थापना की गई | इसी क्रम में सुभाष चंद्र बोस को नेशनल कॉलेज कोलकाता का प्रधानाचार्य बनाया गया |
🔹 झगड़ों का निपटारा पंचायत में करना |

    चौरी चौरा कांड और असहयोग आंदोलन का अंत

        ( Chauri- Chaura Ki Ghatna )

 5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा (गोरखपुर, उत्तर प्रदेश ) नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने एक पुलिस चौकी में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई | इस हिंसक घटना के कारण गांधीजी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया |
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