पथिक ( रामनरेश त्रिपाठी )

( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित कविता ‘पथिक’ ( रामनरेश त्रिपाठी ) की व्याख्या तथा प्रतिपाद्य दिया गया है )

पथिक ( रामनरेश त्रिपाठी )
पथिक ( रामनरेश त्रिपाठी )

प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला |

रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला |

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है |

घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है || 1️⃣

रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है |

हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है |

इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के –

कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के || 2️⃣

निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा |

कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा |

लाने को निजी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी |

रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी || 3️⃣

निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है |

लहरों पर लहरों का आना सुंदर अति सुंदर है |

कहो यहां से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?

अनुभव करो ह्रदय से हे अनुराग-भरी कल्याणी | 4️⃣

जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है |

अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है |

सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है |

तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है | 5️⃣

उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है |

वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है |

पक्षी हर्ष संभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं |

फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं – 6️⃣

वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं |

मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं |

पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी |

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी || 7️⃣

कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम कहानी |

जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी |

स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है |

अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है || 8️⃣

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