सिंदूर तिलकित भाल ( Sindur Tilkit Bhal ) : नागार्जुन

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल !

याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल !

कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज?

कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज?

चाहिए किसको नहीं सहयोग?

चाहिए किसको नहीं सहवास?

कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छवास?

हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण ! 1️⃣

जिसको डाल दे कोई कहीं भी

करेगा वह कभी कुछ न विरोध

करेगा वह कभी नहीं अनुरोध

वेदना ही नहीं उसके पास

फिर उठेगा कहाँ से नि:श्वास

मैं न साधारण, सचेतन जंतु

यहाँ हाँ-ना-किंतु और परंतु

यहां हर्ष-विषाद-चिंता-क्रोध

यहाँ है सुख-दुख का अवबोध

यहाँ है प्रत्यक्ष औ’ अनुमान

यहाँ स्मृति-विस्मृति के सभी के स्थान

तभी तो तुम याद आती प्राण,

हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण ! 2️⃣

याद आते स्वजन

जिनकी स्नेह से भीगी अमृतमय आँख

स्मृति विहंगम की कभी थकने न देगी पाँख

याद आता मुझे अपना वह ‘तरउनी’ ग्राम

याद आती लीचियाँ, वे आम

याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग

याद आते धान

याद आते कमल-कुमुदिनी और तालमखान

याद आते शस्य-श्यामल जनपदों के

रूप-गुण-अनुसार ही रखे गए वे नाम

याद आते वेणुवन वे निलिमा के नीलय, अति अभिराम

धन्य वे जिनके मृदुलतम अंक

हुए थे मेरे लिए पर्यंक

धन्य वे जिनकी उपज के भाग

अन्न-पानी और भाजी-साग ! 3️⃣

फूल-फल औ’ कंद-मूल, अनेक विध मधु-मांस

विपुल उनका ऋण, सधा करता न मैं दशमांश

ओह ! यद्यपि पड़ गया हूँ दूर उनसे आज

फिर से पर आ रही आवाज –

धन्य वे जन, वही धन्य समाज

यहाँ भी तो हूँ न मैं असहाय

यहाँ भी हैं व्यक्ति औ’ समुदाय

किंतु जीवन भर रहूँ फिर भी प्रवासी ही कहेंगे हाय !

मरूंगा तो चिता पर दो फूल देंगे डाल

समय चलता जाएगा निर्बाध अपनी चाल

सुनोगे तुम तो उठेगी हूक

मैं रहूंगा सामने ( तस्वीर में ) पर मूक

सांध्य नभ में पश्चिमांत-समान –

लालिमा का जब करुणा आख्यान

सुना करता हूँ सुमुखी उस काल

याद आता तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल | 4️⃣

Leave a Comment