पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण : अंतर्राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत ( Paribhshik Shabdavali ka Nirman : Antarrashtriytavadi Siddhant )

पारिभाषिक शब्दावली : अंतरराष्ट्रीयतावादी सिद्धांत

( Paribhashik Shabdavali : Antarrashtriytavadi Siddhant )

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में  आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय  | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी सम्प्रदाय के अनुसार होना चाहिए| इस मत के समर्थक मानते हैं कि भारत में प्रयुक्त होने वाली पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए | अंतर्राष्ट्रीयवादी संप्रदाय के समर्थक अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना चाहते हैं जबकि समन्वयवादी संप्रदाय के समर्थक दोनों संप्रदायों के समन्वित रूप को स्वीकार करने पर बल देते हैं |

अंतर्राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत / संप्रदाय

  ( Antarrashtriytavadi Sampraday )

 भारत के अनेक विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि हमें पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना चाहिए | सन 1946 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार समिति ने भी ऐसी ही सलाह दी थी | गंगा प्रसाद मुखर्जी और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी इसी मत का समर्थन किया था |

◼️ समर्थन में तर्क

इस सिद्धांत के समर्थक इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं :

1. अंतर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को स्वीकार करने से अतिरिक्त धन और समय की बचत होगी |
2. विज्ञान जैसे क्षेत्रों में पूरे विश्व में एक जैसी शब्दावली होने से नवीन अनुसंधानों को बल मिलेगा |
3. नवोदित शोधकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों के लिए सरल होगा |
4. अंतरराष्ट्रीय शब्दावली से जुड़ने में सहायता मिलेगी |
5. वैश्वीकरण के दौर में यह संप्रदाय सबसे अधिक उचित है |

◼️ विपक्ष में तर्क

अनेक विद्वान अंतरराष्ट्रीयतावादी सिद्धांत के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं :-

1. अंतर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली विश्व के सभी देशों ने मिलकर निर्मित नहीं की है |
2. यह शब्दावली विश्व के केवल कुछ देशों में ही प्रचलित है | यह सभी देशों के द्वारा स्वीकृत शब्दावली नहीं है |
3. अंतरराष्ट्रीय शब्दावली को  ज्यों का त्यों स्वीकार करना किसी भी भाषा के लिए उचित नहीं है |
4. प्रत्येक भाषा में नए शब्दों के निर्माण का सामर्थ्य होता है | ऐसे में अंतरराष्ट्रीय शब्दावली स्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं बनता |
5. अंतरराष्ट्रीय शब्दावली का उच्चारण दूसरी भाषा के लोगों के लिए सरल नहीं है क्योंकि लोगों का वाग्यंत्र अपनी भाषा के ध्वनि-विज्ञान के अनुकूल बन जाता है और उसे दूसरी भाषा के ध्वनि-विज्ञान के अनुकूल ढालना सरल नहीं होता |

◼️ निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि  पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए अंतर्राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय की पूर्णत: अनदेखी  नहीं की जा सकती | यह सही है कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करते समय हमें राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत को प्राथमिकता देनी चाहिए लेकिन जिन अंतरराष्ट्रीय शब्दों का रूपांतरण अपनी भाषा में संभव नहीं है या जो अंतरराष्ट्रीय शब्द बहुत अधिक प्रचलन में आ चुके हैं उन्हें ज्यों का त्यों अपनी भाषा में स्वीकार कर लेना ही उचित होगा |

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