जैव विविधता (Biodiversity) पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले जीवों की विभिन्नता को संदर्भित करती है। यह पृथ्वी पर जीवन की समृद्धि और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जैव विविधता की परिभाषा
जैव विविधता का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र में विभिन्न जीवों, पौधों, सूक्ष्मजीवों और पारिस्थितिकी तंत्रों की विभिन्नता। यह जीवन के सभी रूपों को कवर करती है और पृथ्वी की पारिस्थितिक प्रणाली में संतुलन बनाए रखने में सहायता करती है।
जैव विविधता के प्रकार
(1) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity): यह किसी प्रजाति के भीतर आनुवंशिक भिन्नताओं को दर्शाती है। यह विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवों के अनुकूलन को सुनिश्चित करती है।
(2) प्रजातीय विविधता (Species Diversity): यह किसी विशेष क्षेत्र में विभिन्न जीव प्रजातियों की संख्या और उनकी जनसंख्या को दर्शाती है।
(3) पारिस्थितिकी तंत्र विविधता (Ecosystem Diversity): यह पारिस्थितिकी तंत्रों की विविधता को संदर्भित करता है, जैसे कि जंगल, महासागर, रेगिस्तान, और घास के मैदान।
जैव विविधता का महत्व
(1) पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना: जैव विविधता पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
(2) पोषण चक्र को बनाए रखना: यह पोषक तत्वों के संचरण में सहायता करती है, जिससे खाद्य श्रृंखला (Food Chain) सुचारू रूप से कार्य करती है।
(3) चिकित्सा और औद्योगिक उपयोग: कई औषधियाँ और उत्पाद जैव विविधता पर निर्भर होते हैं।
(4) पर्यावरणीय सेवाएँ: जैव विविधता जल शुद्धिकरण, जलवायु नियंत्रण, और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायक होती है।
जैव विविधता के ह्रास के कारण
जैव विविधता के ह्रास ( Biodiversity loss ) के कारणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है : (1) मानव निर्मित कारण, तथा (2) प्राकृतिक कारण |
(1) मानव निर्मित कारण (Man-made Causes)
(i) वनों की कटाई (Deforestation): आवास, खेती व उद्योग के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई जैव विविधता को नष्ट करती है। इससे कई जीवों का प्राकृतिक आवास समाप्त हो जाता है और वे विलुप्ति की कगार पर पहुँच जाते हैं।
(ii) प्रदूषण (Pollution): जल, वायु और भूमि प्रदूषण से प्रजातियाँ विषाक्त वातावरण में जीवित नहीं रह पातीं।
रासायनिक अपशिष्ट और प्लास्टिक कचरा नदियों, समुद्रों और जंगलों की पारिस्थितिकी को बर्बाद कर देते हैं।
(iii) अत्यधिक शिकार और मत्स्यन (Overhunting and Overfishing): व्यापार, भोजन या खेल के लिए जीवों का अंधाधुंध शिकार प्रजातियों को विलुप्त कर देता है। इससे पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बिगड़ता है और खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है।
(iv) पर्यावरणीय परिवर्तन (Habitat Fragmentation): सड़क, बांध, कॉलोनी आदि निर्माण से प्राकृतिक आवास टुकड़ों में बंट जाते हैं जिससे जीवों का जीवन चक्र बाधित होता है। इससे प्रजातियाँ एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं और प्रजनन दर घट जाती है।
(v) विदेशी प्रजातियों का प्रवेश (Invasive Species): मनुष्य द्वारा लायी गई बाहरी प्रजातियाँ स्थानीय जैव विविधता को प्रतिस्पर्धा में हरा देती हैं। ये बाहरी प्रजातियाँ संसाधनों पर कब्जा कर लेती हैं और स्थानीय प्रजातियों को समाप्त कर देती हैं।
(2) प्राकृतिक कारण (Natural Causes)
(i) प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters): ज्वालामुखी, भूकंप, बाढ़ व सूखा जैसे आपदाएँ कई प्रजातियों का विनाश कर देती हैं। इनके कारण पूरे पारिस्थितिक क्षेत्र तबाह हो जाते हैं जिससे जीवों को पुनः बसने का अवसर नहीं मिलता।
(ii) जलवायु परिवर्तन (Climate Change): प्राकृतिक तौर पर होने वाले दीर्घकालिक तापमान या वर्षा के बदलाव कई प्रजातियों के लिए विनाशकारी सिद्ध होते हैं।
इससे उनकी जीवनशैली, प्रजनन व भोजन के स्रोत बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
(iii) बीमारियाँ और संक्रमण (Diseases and Epidemics): पशु-पक्षियों में फैलने वाले रोग उनके जीवन चक्र को समाप्त कर सकते हैं। कुछ रोगों की रोकथाम असंभव होती है जिससे प्रजातियों की पूरी आबादी नष्ट हो जाती है।
(iv) प्राकृतिक चयन व विलुप्ति (Natural Extinction): कुछ प्रजातियाँ समय के साथ विकास की दौड़ में पीछे रह जाती हैं और प्राकृतिक रूप से विलुप्त हो जाती हैं। वे बदलते पर्यावरण या अन्य प्रजातियों की प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पातीं।
(v) भूवैज्ञानिक परिवर्तन (Geological Changes): महाद्वीपीय विस्थापन या समुद्र तल में परिवर्तन के कारण कुछ प्रजातियों का आवास समाप्त हो जाता है।
इससे उनके अस्तित्व के लिए जरूरी परिस्थितियाँ खत्म हो जाती हैं।
संरक्षण के उपाय
जैव विविधता के संरक्षण के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाये जा सकते हैं :
(1) वनों की कटाई रोककर और अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर प्राकृतिक आवासों की रक्षा की जा सकती है ।
(2) संरक्षित क्षेत्र जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और बायोस्फीयर रिज़र्व की संख्या बढ़ा कर ।
(3) लुप्तप्राय प्रजातियों की पहचान कर उनके लिए विशेष संरक्षण योजनाएँ चलाकर ।
(4) प्रदूषण नियंत्रण हेतु कठोर नियम बनाकर उद्योगों और वाहनों पर निगरानी रखनी चाहिए ।
(5) पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से लोगों में जागरूकता और सहभागिता बढ़ाई जानी चाहिए।
(6) जैव विविधता से संबंधित अनुसंधान और वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।
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