वे मुस्काते फूल नहीं ( Ve Muskate Fool Nahin ) : महादेवी वर्मा

वे मुस्काते फूल नहीं –

जिनको आता है मुरझाना,

वे तारों के दीप नहीं –

जिनको भाता है बुझ जाना ; (1)

वे नीलम के मेघ नहीं –

जिनको है घुल जाने की चाह,

वह अनंत ऋतुराज, नहीं-

जिसने देखी जीने की राह | (2)

वे सूने से नयन, नहीं-

जिनमें बनाते आँसू-मोती,

वह प्राणों की सेज नहीं –

जिसमें बेसुध पीड़ा सोती ; (3)

ऐसा तेरा लोक, वेदना –

नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं-

जिसने जाना मिटने का स्वाद | (4)

क्यों अमरों का लोक मिलेगा

तेरी करुणा का उपहार

रहने दो हे देव ! अरे

यह मेरा मिटने का अधिकार ! (5)