भारतेन्दु हरिश्चंद्र कृत ‘अंधेर नगरी’ नाटक की समीक्षा

भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटक ‘अंधेर नगरी’ एक प्रहसन है जो एक काल्पनिक कहानी के माध्यम से दूषित प्रशासनिक व्यवस्था और पतन की ओर अग्रसर प्रजा पर व्यंग्य करता है | किसी नाटक की समीक्षा करने के लिये विद्वानों ने साथ तत्त्व बताये हैं — कथानक या कथावस्तु, पात्र व चरित्र-चित्रण, संवाद या कथोपकथन, देशकाल व वातावरण, भाषा, अभिनेयता और उद्देश्य ||

नाटक के उपर्युक्त तत्त्वों के आधार पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कृत ‘अंधेर नगरी’ नाटक की समीक्षा निम्नलिखित है :

1. कथानक या कथावस्तु

‘अंधेर नगरी’ का कथानक एक काल्पनिक नगरी पर आधारित है, जहाँ सब कुछ एक टके में बिकता है। यह मूर्खतापूर्ण शासन और सामाजिक अन्याय को दर्शाता है। गोबरधन दास, एक भोला-भाला व्यक्ति, इस नगरी में आता है और अन्याय का शिकार होता है। कहानी हास्य के साथ गंभीर सामाजिक संदेश देती है। कथानक सरल और रोचक है, जो दर्शकों को बाँधता है। यह तत्कालीन समाज की कुरीतियों पर व्यंग्य करता है। नाटक का अंत दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है।

2. पात्र या चरित्र-चित्रण

नाटक के पात्र सामाजिक विसंगतियों को दर्शाते हैं। गोबरधन दास एक साधारण, भोला व्यक्ति है, जो अन्याय का शिकार होता है। राजा मूर्ख और तर्कहीन शासक का प्रतीक है। अन्य पात्र, जैसे कोतवाल और व्यापारी, नगरी की अराजकता को उजागर करते हैं। पात्रों का चित्रण सरल लेकिन प्रभावी है। प्रत्येक पात्र कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है। ये प्रतीकात्मक पात्र समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।

3. संवाद या कथोपकथन

नाटक के संवाद सरल, हास्यपूर्ण और व्यंग्यात्मक हैं। ये सामाजिक कुरीतियों और मूर्ख शासन पर कटाक्ष करते हैं। संवाद छोटे और प्रभावी हैं, जो पात्रों के चरित्र को उजागर करते हैं। ये दर्शकों को हँसाते हुए सोचने पर मजबूर करते हैं। संवाद नाटक की गति को तेज रखते हैं। ये बोलचाल की भाषा में हैं, जो आम जन से जुड़ते हैं। संवाद नाटक की अभिनेयता को और बढ़ाते हैं।

4. देशकाल या वातावरण

नाटक का वातावरण काल्पनिक ‘अंधेर नगरी’ पर आधारित है। यह तत्कालीन भारतीय समाज की अराजकता और मूर्ख शासन का प्रतीक है। नगरी का माहौल हास्य और व्यंग्य से भरा है। यह दर्शकों को सामाजिक समस्याओं से जोड़ता है। वातावरण सरल लेकिन प्रभावी ढंग से बनाया गया है। यह नाटक की थीम को और गहरा करता है। देशकाल कथानक के साथ पूर्ण रूप से मेल खाता है।

5. भाषा

नाटक की भाषा सरल, बोलचाल की खड़ी बोली है। यह आम जन तक आसानी से पहुँचती है। भाषा में हास्य, व्यंग्य और लोकप्रिय मुहावरों का उपयोग है। यह पात्रों और परिस्थितियों को जीवंत बनाती है। भाषा नाटक की अभिनेयता को बढ़ाती है। यह सामाजिक संदेश को प्रभावी ढंग से व्यक्त करती है। सरल भाषा नाटक को सभी के लिए समझने योग्य बनाती है।

6. अभिनेयता

‘अंधेर नगरी’ की अभिनेयता इसकी सरलता और हास्य में निहित है। संवाद और पात्रों की गतिविधियाँ मंच पर जीवंत हो उठती हैं। कथानक का सरल प्रवाह मंचन को आसान बनाता है। हास्य और व्यंग्य दर्शकों को बाँधे रखते हैं। पात्रों की भाव-भंगिमाएँ मंच पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की जा सकती हैं। नाटक का माहौल मंचन के लिए उपयुक्त है। यह दर्शकों को मनोरंजन के साथ संदेश देता है।

7. उद्देश्य

नाटक का उद्देश्य सामाजिक कुरीतियों और मूर्ख शासन पर व्यंग्य करना है। यह अन्याय, अज्ञानता और तर्कहीनता के खिलाफ जागरूकता फैलाता है। हास्य के माध्यम से यह गंभीर संदेश देता है। नाटक समाज सुधार की प्रेरणा देता है। यह दर्शकों को तत्कालीन सामाजिक समस्याओं पर विचार करने को प्रेरित करता है। यह शिक्षा और मनोरंजन का संतुलन बनाए रखता है। ‘अंधेर नगरी’ आज भी प्रासंगिक है।निष्कर्ष: ‘अंधेर नगरी’ एक प्रभावी व्यंग्यात्मक नाटक है, जो अपने सरल कथानक, जीवंत पात्रों, हास्यपूर्ण संवादों, प्रासंगिक वातावरण, सरल भाषा, उत्कृष्ट अभिनेयता और सामाजिक उद्देश्य के कारण आज भी लोकप्रिय और प्रासंगिक है।

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