सूरदास व्याख्या ( Surdas Vyakhya )
विनय तथा भक्ति (1) चरण-कमल बंदौ हरिराइ। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघऎ ,अंध कौ सब कुछ दरसाई।। बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बौले, रंक चलै सिर छत्र धराइ। सूरदास स्वामी करुनामय, बार बार बदों तिहिं पाइ।। प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा बी ए द्वितीय सेमेस्टर के लिए निर्धारित हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित सूरदास … Read more